"भारतकोश:Quotations/मंगलवार": अवतरणों में अंतर
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*पुष्पों के गुच्छे की तरह महापुरूषों की दो ही गतियाँ होती हैं - या तो वे सब लोगों के सिर पर विराजते हैं अथवा वन में ही मुरझा जाते हैं। - | *पुष्पों के गुच्छे की तरह महापुरूषों की दो ही गतियाँ होती हैं - या तो वे सब लोगों के सिर पर विराजते हैं अथवा वन में ही मुरझा जाते हैं। -भर्तृहरि (नीतिशतक,33) | ||
* | *यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - [[गीता|श्रीमद्भागवत गीता]] [[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]] | ||
06:25, 11 मई 2011 का अवतरण
- पुष्पों के गुच्छे की तरह महापुरूषों की दो ही गतियाँ होती हैं - या तो वे सब लोगों के सिर पर विराजते हैं अथवा वन में ही मुरझा जाते हैं। -भर्तृहरि (नीतिशतक,33)
- यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता .... और पढ़ें