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| {{लेख प्रगति|आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= प्रकृति}}
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| <big><big>===प्रकृति का सरंक्षण===</big></big>
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| प्रकृति का करो तुम संरक्षण
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| यही करती है जीवन का सृजन
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| वृक्षों को तुम लहलहाने दो
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| पशु पक्षियों से तुम प्रेम करो
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| करो नित्य सौंदर्य का अवलोकन
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| तुम्हे देना होगा ये वचन
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| करोगे कर्तव्यों का निर्वहन
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| नदियों ने तुमको जल दिया
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| मत रोको उनके धारा को
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| वृक्षों ने तुमको फल दिया
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| मत उनका करो तुम दोहन
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| कुदरत देती तुम्हे जीवन दान
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| तुम कर लो इसका अब नमन
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| सोचो जब वर्षा न होगी
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| क्या खाओगे क्या पिओगे
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| जब नदियाँ सुख जाएँगी
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| झुलसेगी ये धरती जब
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| तब सह न सकोगे तुम तपन
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| अगर बचाना है मानवता को
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| तो मानना होगा ये कथन
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| तुम्हे रोकना होगा प्रदुषण
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| अगर तुम अब भी न सुनोगे ये पुकार
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| तुम न करोगे इसका सम्मान
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| तो कब तक करेगी ये तुझको वहन
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| तुम्हे देखना होगा तब रौद्र रूप
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| तब करना होगा सब सहन
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| इसलिए तुम्हे मैं कहता हूँ
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| ये प्रकृति देती है तुमको जीवन
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| समझो तुम इसको अपना मित्र
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| खोलो तुम अपना अंतर्मन
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| प्रकृति का करो तुम संरक्षण
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| यही करती है जीवन का सृजन
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| यही करती है जीवन का सृजन
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