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| *यह [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|लोकोक्ति]] एक प्रचलित कहावत है। | | *यह [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|लोकोक्ति]] एक प्रचलित कहावत है। |
| *इसका अर्थ - जो व्यक्ति बहुत कम जानता है, वह विद्वान ही होने का दिखावा ज़्यादा करता है। | | *इसका अर्थ - जो व्यक्ति बहुत कम जानता है, वह विद्वान ही होने का दिखावा ज़्यादा करता है। |
| ==कथा==
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| हमारे गाँव में लाजो - ताजो नामक दो बहनें रहती थी, वो पानी भरने के लिए गाँव से बाहर कुएं पर जाती थी, दूसरी महिलाओं की तरह। तब तो गाँव के रास्ते भी कच्चे थे, स्वाभिक था ऐसे में पाँव पर मिट्टी का पाऊडर लगना। ताजो का घड़ा बिल्कुल नया था, जबकि लाजो के घड़े के ऊपर वाले हिस्से में छोटा सा सुराख था, इसलिए वो हमेशा अपने घड़े को अधभरा रखती। जब वो घड़ा लेकर चलती तो पानी घड़े के भीतर छलकता, ऐसे में कुछ पानी जमीं पर गिर जाता और कुछ उसके जिस्म पर, जो उसके जिस्म को ठंड पहुंचाता। ताजो का घड़ा, लाजो के सुराख वाले घड़े को देखकर अक्सर सोचता, एक तो मुझसे आधा पानी लाता है, ऊपर से लाजो को भिगोता है, फिर भी मुझसे ज्यादा लाजो इसकी तरफ ज्यादा ध्यान देती है। कुछ समय बाद सुराख वाला घड़ा टूट गया, उसके टूटने पर लाजो को वैसा ही सदमा पहुंचा, जैसा किसी अपने के चले जाने पर पहुंचता है। रोती हुई लाजो से दूसरे घड़े ने सवाल किया कि तुम इसके लिए क्यों रो रही हो, ये घड़ा तो अक्सर तुम्हें भिगोता था, और पानी भी मुझसे आधा लाता था। तो लाजो ने कहा, 'तुम्हें याद है, जब तुम हमारे घर नए नए आए थे।' घड़ा बोला, 'हाँ, मुझे याद है।' लाजो ने कहा, 'तुमने देखा था तब उस रास्ते को जहाँ से हम रोज गुजरते हैं।' घड़ा ने कहा, ‘हाँ’, तब वो बिल्कुल घास रहित था।' घास रहित शब्द सुनते ही लाजो ने कहा, 'अगर उस रास्ते पर घास उग आई है, तो सिर्फ और सिर्फ इस सुराख वाले घड़े के कारण, अगर ये घड़ा छलकता न, तो कभी भी उस रास्ते पर आज सी हरियाली न आती।' इतना सुनते ही दूसरा घड़ा चुप हो गया।
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| ;शिक्षा
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| ज़रूरी नहीं कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब, बाईबल, [[गीता]] और कुरान का तोता रटन करने वाला ज्ञानी हो, ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई व्यक्ति इन सब धार्मिक ग्रंथों की अच्छी अच्छी बातें ग्रहण कर, अच्छी तरह से अपने जीवन में उतार ले। इस मतलब यह तो न होगा कि सामने वाले के पास अल्प ज्ञान है, सिर्फ इस आधार पर कि उसको पूरे ग्रंथ याद नहीं। मुझे लगता है, जितना उसके पास है, वो उसके लिए काफी है, क्योंकि वो तोता रटन करने की बजाय, उसको समझकर जीवन में उतरा रहा है, जो लोग तोता रटन पर जोर देते हैं, वो धार्मिक होकर भी ताजो के भरे हुए घड़े की तरह किसी दूसरे का फायदा नहीं कर सकते, और ताजो की घड़े की तरह अधजल वाले लाजो के घड़े से ईष्या करते रहते हैं। ग्रंथों में ईष्या को त्यागने के बारे में सिखाया गया है।<ref>{{cite web |url=http://yuvatime.blog.com/2010/04/23/%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%9C/ |title=चर्चा विराम का नुस्खा : अधजल गगरी छलकत जाय|accessmonthday=20मई |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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