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चित्तरंजन दास ([[5 नवंबर]], [[1870]] - [[16 जून]], [[1925]]) [[कलकत्ता]] उच्च न्यायालय के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम केस में अरविन्द घोष की पैरवी की थी। चित्तरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।  
चित्तरंजन दास ([[5 नवंबर]], [[1870]] - [[16 जून]], [[1925]]) [[कलकत्ता]] उच्च न्यायालय के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम केस में अरविन्द घोष की पैरवी की थी। चित्तरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।  
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==राजनीति में प्रवेश==
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चित्तरंजन दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर [[गांधीजी]] के [[असहयोग आंदोलन]] में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए। उन्होंने विलासी जीवन व्यतीत करना छोड़ दिया और [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया। उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति और विशाल प्रासाद राष्ट्रीय हित में समर्पण कर दिया। वे कलकत्ता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए। उनके साथ [[सुभाषचन्द्र बोस]] कलकत्ता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त हुए। इस प्रकार श्री दास ने कलकत्ता निगम को यूरोपीय नियंत्रण से मुक्त किया और निगम साधनों को कलकत्ता के भारतीय नागरिकों के हित के लिए उन्हें नौकरियों में अधिक जगह देकर [[हिन्दू]]-[[मुसलमान|मुस्लिम]] मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया।
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==अध्यक्ष==
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11:04, 8 जून 2011 का अवतरण

चित्तरंजन दास
Chittaranjan Das

चित्तरंजन दास (5 नवंबर, 1870 - 16 जून, 1925) कलकत्ता उच्च न्यायालय के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम केस में अरविन्द घोष की पैरवी की थी। चित्तरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।

राजनीति में प्रवेश

चित्तरंजन दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए। उन्होंने विलासी जीवन व्यतीत करना छोड़ दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया। उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति और विशाल प्रासाद राष्ट्रीय हित में समर्पण कर दिया। वे कलकत्ता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए। उनके साथ सुभाषचन्द्र बोस कलकत्ता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त हुए। इस प्रकार श्री दास ने कलकत्ता निगम को यूरोपीय नियंत्रण से मुक्त किया और निगम साधनों को कलकत्ता के भारतीय नागरिकों के हित के लिए उन्हें नौकरियों में अधिक जगह देकर हिन्दू-मुस्लिम मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया। इन्हें भी देखें: असहयोग आंदोलन

अध्यक्ष

चित्तरंजन दास सन 1922 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए, लेकिन उन्होंने भारतीय शासन विधान के अंतर्गत संवर्द्धित धारासभाओं से अलग रहना ही उचित समझा। इसीलिए उन्होंने मोतीलाल नेहरू और एन. सी. केलकर के सहयोग से 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था कि धारासभाओं में प्रवेश किया जाए और आयरलैण्ड के देशभक्त श्री पार्नेल की कार्यनीति अपनाते हुए 1919 ई. के भारतीय शासन विधान में सुधार करने अथवा उसे नष्ट करने का प्रयत्न किया जाए। यह एक प्रकार से सहयोग की नीति थी। स्वराज्य पार्टी ने शीघ्र ही धारासभाओं में बहुत सी सीटों पर क़ब्ज़ा कर लिया।

मृत्यु

बंगाल और बम्बई की धारासभाओं में तो यह इतनी शक्तिशाली हो गई कि वहाँ द्वैध शासन प्रणाली के अंतर्गत मंत्रिमंडल तक का बनना कठिन हो गया। श्री दास के नेतृत्व में स्वराज्य पार्टी ने देश में इतना अधिक प्रभाव बढ़ा लिया कि तत्कालीन भारतमंत्री लार्ड बर्केनहैड के लिए भारत में सांविधानिक सुधारों के लिए चित्तरंजन दास से कोई न कोई समझौता करना ज़रूरी हो गया लेकिन दुर्भाग्यवश अधिक परिश्रम करने और जेल जीवन की कठिनाइयों को न सह सकने के कारण श्री चित्तरंजन दास बीमार पड़ गए और 16 जून, 1925 ई. को उनका निधन हो गया।

शोक

चित्तरंजन दास की मृत्यु के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार से वार्ता की बात समाप्त हो गई और भारतीय स्वाधीनता की समस्या के शान्तिमय समाधान का अवसर नष्ट हो गया। चित्तरंजन दास के निधन का शोक संम्पूर्ण देश में मनाया गया। सारे देशवासी उन्हें प्यार से 'देशबंधु' कहते थे। उनके मरने पर विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके प्रति असीम शोक और श्रद्धा प्रकट करते हुए लिखा-

एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमी करे गेले दान।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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