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| {{सूचना बक्सा कलाकार
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| |चित्र=rajkumar.jpg
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| |चित्र का नाम=राजकुमार
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| |पूरा नाम=राजकुमार
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| |अन्य नाम=कुलभूषण पंडित
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| |जन्म=[[8 अक्तूबर ]] सन [[1929]] ई.
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| |जन्म भूमि=ब्लूचिस्तान, [[पाकिस्तान]]
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| |अविभावक=
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| |पति/पत्नी=गायत्री
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| |संतान=पुत्र- पुरु राजकुमार, पाणिनी राजकुमार, पुत्री- वास्तविकता राजकुमार
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| |कर्म भूमि=[[मुम्बई]]
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| |कर्म-क्षेत्र=सब इंस्पेक्टर, अभिनेता
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| |मृत्यु=[[3 जुलाई ]], [[1996]] ई.
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| |मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]]
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| |मुख्य रचनाएँ=
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| |मुख्य फ़िल्में=पैगाम, काजल, वक्त, नीलकमल, पाकीजा
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| |विषय=
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| |शिक्षा=स्नातक
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| |विद्यालय=
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| |पुरस्कार-उपाधि=
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| |प्रसिद्धि=संवाद अदायगी के बेताज बादशाह
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| |विशेष योगदान=
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| |नागरिकता=
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| |संबंधित लेख=
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| |शीर्षक 1=
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| |पाठ 1=
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |अन्य जानकारी=
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=
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| *'''संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कुलभूषण पंडित उर्फ राजकुमार''' (जन्म- [[8 अक्तूबर]] [[1926]], ब्लूचिस्तान [[पाकिस्तान]], मृत्यु- [[3 जुलाई]] [[1996]] [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) हिंदी फिल्मों में एक भारतीय अभिनेता थे। इनका नाम फ़िल्मजगत की आकाशगंगा में एक धुव्रतारे की तरह है। उनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फ़िल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा।
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| ==जीवन परिचय==
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| राजकुमार का जन्म [[पाकिस्तान]] के ब्लूचिस्तान प्रांत में [[8 अक्तूबर]] [[1926]] को एक मध्यम वर्गीय कश्मीरी [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजकुमार [[मुंबई]] के माहिम पुलिस स्टेशन में बतौर सब इंस्पेक्टर काम करने लगे। राजकुमार मुंबई के जिस थाने मे कार्यरत थे वहाँ अक्सर फ़िल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था।
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| ==अभिनेता के रूप में शुरूआत==
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| एक बार पुलिस स्टेशन में फ़िल्म निर्माता कुछ जरूरी काम के लिए आए हुए थे और वह राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफ़ी प्रभावित हुए। उन्होंने राजकुमार को यह सलाह दी कि अगर आप फ़िल्म अभिनेता बनने की ओर क़दम रखे तो उसमे काफ़ी सफल हो सकते है। राजकुमार को फ़िल्म निर्माता की बात काफ़ी अच्छी लगी। इसके कुछ समय बाद राजकुमार ने अपनी नौकरी छोड़ दी और फ़िल्मों में बतौर अभिनेता बनने की ओर अपना रूख कर लिया। वर्ष [[1952]] में प्रदर्शित फ़िल्म रंगीली मे सबसे पहले बतौर अभिनेता राजकुमार को काम करने का मौका मिला। वर्ष 1952 से वर्ष [[1957]] तक राजकुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फ़िल्म रंगीली के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने 'अनमोल सहारा- [[1952]], 'अवसर- [[1953]]', 'घमंड- [[1955]]', 'नीलमणि- 1957', 'कृष्ण सुदामा- 1957' जैसी कई फ़िल्मों र्मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर सफल नहीं हुई।
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| ====फ़िल्म जगत में सफलता====
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| वर्ष 1957 में प्रदर्शित [[महबूब ख़ान]] की फ़िल्म [[मदर इंडिया]] में राजकुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि यह फ़िल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी फिर भी राजकुमार अपनी छोटी सी भूमिका में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फ़िल्म की सफलता के बाद राजकुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।
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| ;फ़िल्मों में मिली कामयाबी
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| {{दाँयाबक्सा|पाठ=दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफसाने बन जाते हैं मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते है|विचारक=}}
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| वर्ष [[1959]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'पैगाम' में उनके सामने हिन्दी फ़िल्म जगत के अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] थे लेकिन राजकुमार ने यहाँ भी अपनी सशक्त भूमिका के जरिये दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद राजकुमार 'दिल अपना और प्रीत पराई-[[1960]]', 'घराना- [[1961]]', 'गोदान- [[1963]]', 'दिल एक मंदिर- [[1964]]', 'दूज का चांद- 1964' जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी के जरिये राज कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गये जहाँ वह फ़िल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष [[1965]] में प्रदर्शित फ़िल्म काजल की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राजकुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1965 बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म वक्त में अपने लाजवाब अभिनय से वह एक बार फिर से अपनी ओर दर्शक का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। फ़िल्म वक्त में राजकुमार का बोला गया एक संवाद "चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते या फिर चिनाय सेठ ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज नहीं हाथ कट जाये तो खून निकल आता है" दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। फ़िल्म वक्त की कामयाबी से राज कुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। ऐसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो वह मनमानी करने लगता है और ख्याति छा जाने की उसकी प्रवृति बढ़ती जाती है और जल्द ही वह किसी ख़ास इमेज में भी बंध जाता है। लेकिन राज कुमार कभी भी किसी खास इमेज में नही बंधे इसलिये अपनी इन फ़िल्मो की कामयाबी के बाद भी उन्होंने 'हमराज- [[1967]]', 'नीलकमल- [[1968]]', 'मेरे हूजूर- [[1968]]', 'हीर रांझा- [[1970]]' और 'पाकीजा- [[1971]]' में रूमानी भूमिका भी स्वीकार की जो उनके फ़िल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी इसके बावजूद भी राजकुमार यहाँ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।
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| ====फ़िल्म पाकीजा की सफलता====
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| कमाल अमरोही फ़िल्म पाकीजा पूरी तरह से मीना कुमारी पर केन्द्रित फ़िल्म थी इसके बावजूद राजकुमार ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। फ़िल्म पाकीजा में राजकुमार का बोला गया एक संवाद "आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें जमीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें" इस क़दर लोकप्रिय हुआ कि लोग राजकुमार की आवाज की नक़्ल करने लगे।
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| ====अभिनय और विविधता====
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| वर्ष 1978 में प्रदर्शित फ़िल्म कर्मयोगी में राजकुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले इस फ़िल्म में उन्होंने दो अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। अभिनय में एकरुपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए राजकुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में वर्ष [[1980]] में प्रदर्शित फ़िल्म बुलंदी में वह चरित्र भूमिका निभाने से भी नही हिचके और इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शको का मन मोहे रखा। इसके बाद राजकुमार ने 'कुदरत- [[1981]]', 'धर्मकांटा- [[1982]]', 'शरारा- [[1984]]', 'राजतिलक- [[1984]]', 'एक नयी पहेली- [[1984]]', 'मरते दम तक- [[1987]]', 'सूर्या- [[1989]]', 'जंगबाज- [[1989]]', 'पुलिस पब्लिक- [[1990]]' जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के जरिये दर्शको के दिल पर राज किया।
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| ====अभिनय के नये आयाम====
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| वर्ष [[1991]] में प्रदर्शित फ़िल्म सौदागर में राज कुमार के अभिनय के नये आयाम देखने को मिले। सुभाष घई की निर्मित फ़िल्म सौदागर में दिलीप कुमार और राज कुमार वर्ष 1959 में प्रदर्शित पैगाम के बाद दूसरी बार आमने सामने थे। फ़िल्म में दिलीप कुमार और राजकुमार जैसे अभिनय की दुनिया के दोनो महारथी का टकराव देखने लायक था। फ़िल्म सौदागर में राजकुमार का बोला एक संवाद "दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफसाने बन जाते हैं मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते है" आज भी सिने प्रेमियों के दिमाग में गूंजता रहता है। ‘बूलंदी’ में ‘ना तलवार की धार से ना गोलियों की बौछार से...'आज भी हमारे दिलों में गूंजता है।'
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| ==नब्बे का दशक==
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| {{दाँयाबक्सा|पाठ=देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फ़िल्म उद्योग को सूचित करना।|विचारक=}}
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| नब्बे के दशक में राजकुमार ने फ़िल्मों मे काम करना काफ़ी कम कर दिया। इस दौरान राजकुमार की 'तिरंगा- [[1992]]', 'पुलिस और मुजरिम इंसानियत के देवता- [[1993]]', 'बेताज बादशाह- [[1994]]', 'जवाब- [[1995]]', 'गॉड और गन' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। नितांत अकेले रहने वाले राजकुमार ने शायद यह महसूस कर लिया था कि मौत उनके काफ़ी करीब है इसीलिए अपने पुत्र पुरू राजकुमार को उन्होने अपने पास बुला लिया और कहा, "देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फ़िल्म उद्योग को सूचित करना।"
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| ==मृत्यु==
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| अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राजकुमार [[3 जुलाई]] [[1996]] के दिन इस दुनिया को अलविदा कह गए।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_872.html |title=संवाद अदायगी के बेताज बादशाह: राजकुमार |accessmonthday=[[13 जून]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| <references/>
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