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-प्रकाश का प्रकीर्णन | -प्रकाश का प्रकीर्णन | ||
-प्रकाश का ध्रुवण | -प्रकाश का ध्रुवण | ||
||बरसात के मौसम में जब पानी की बूँदे [[सूर्य]] पर पड़ती है तब सूर्य की किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण बनता है। आकाश में संध्या के समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी रंगों का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। यह इंद्रधनुष कहलाता है।{{अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इंद्रधनुष]] | ||बरसात के मौसम में जब पानी की बूँदे [[सूर्य]] पर पड़ती है तब सूर्य की किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण बनता है। आकाश में संध्या के समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी रंगों का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। यह इंद्रधनुष कहलाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इंद्रधनुष]] | ||
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||सूत्रकार कणाद के अनुसार रूप, रस, स्पर्श नामक गुणों का आश्रय तथा स्निग्ध द्रव्य ही जल है। प्रशस्तपाद ने [[पृथ्वी]] के समान [[जल]] में भी समवाय सम्बन्ध से चौदह गुणों के पाये जाने का उल्लेख किया है। जल का [[रंग]] अपाकज और अभास्वर शुक्ल होता है। [[यमुना]] के जल में जो नीलापन है, वह यमुना के स्रोत में पाये जाने वाले पार्थिव कणों के संयोग के कारण औपाधिक है। जल में स्नेह के साथ-साथ सांसिद्धिक द्रवत्व हैं।{{अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जल]] | ||सूत्रकार कणाद के अनुसार रूप, रस, स्पर्श नामक गुणों का आश्रय तथा स्निग्ध द्रव्य ही जल है। प्रशस्तपाद ने [[पृथ्वी]] के समान [[जल]] में भी समवाय सम्बन्ध से चौदह गुणों के पाये जाने का उल्लेख किया है। जल का [[रंग]] अपाकज और अभास्वर शुक्ल होता है। [[यमुना]] के जल में जो नीलापन है, वह यमुना के स्रोत में पाये जाने वाले पार्थिव कणों के संयोग के कारण औपाधिक है। जल में स्नेह के साथ-साथ सांसिद्धिक द्रवत्व हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जल]] | ||
{[[प्रकाश]] का [[वेग]] अधिकतम किसमें होता है? | {[[प्रकाश]] का [[वेग]] अधिकतम किसमें होता है? |
08:39, 20 जून 2011 का अवतरण
विज्ञान
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