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-[[अमीर ख़ुसरो]] | -[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
-[[स्वामी हरिदास]] | -[[स्वामी हरिदास]] | ||
||[[चित्र:Akbar-Tansen-Haridas.jpg|अकबर तानसेन-हरिदास|100px|right]]हर युग एक महान गायक हुआ करता है। तानसेन सिर्फ एक महान गायक ही नहीं बल्कि एक महान संगीतशास्त्री एवं रागों के रचयिता भी थे। जाति एवं रागों की प्राचीन मान्यताओं को तोड़ कर नये प्रयोगों की परंपरा को प्रारम्भ करने में वे अग्रणी थे। भारतीय संगीत में स्वरलिपि की कोई पद्धति नहीं होने के कारण प्राचीन गायकों की स्वररचना को जानने का कोई साधन नहीं है। संगीत के क्षेत्र में आज भी तानसेन का प्रभाव जीवित है। उसका कारण है ‘‘मियाँ की मल्हार’’ ‘‘दरबारी कानडा’’ और ‘‘मियाँ की तोड़ी’’ जैसी मौलिक स्वर रचनाओं का सदाबहार आकर्षण। | ||[[चित्र:Akbar-Tansen-Haridas.jpg|अकबर तानसेन-हरिदास|100px|right]]हर युग एक महान गायक हुआ करता है। तानसेन सिर्फ एक महान गायक ही नहीं बल्कि एक महान संगीतशास्त्री एवं रागों के रचयिता भी थे। जाति एवं रागों की प्राचीन मान्यताओं को तोड़ कर नये प्रयोगों की परंपरा को प्रारम्भ करने में वे अग्रणी थे। भारतीय संगीत में स्वरलिपि की कोई पद्धति नहीं होने के कारण प्राचीन गायकों की स्वररचना को जानने का कोई साधन नहीं है। संगीत के क्षेत्र में आज भी तानसेन का प्रभाव जीवित है। उसका कारण है ‘‘मियाँ की मल्हार’’ ‘‘दरबारी कानडा’’ और ‘‘मियाँ की तोड़ी’’ जैसी मौलिक स्वर रचनाओं का सदाबहार आकर्षण।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तानसेन]] | ||
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-[[छत्तीसगढ़]] | -[[छत्तीसगढ़]] | ||
-[[बिहार]] | -[[बिहार]] | ||
||[[चित्र:Tajmahal-1.jpg|ताजमहल, आगरा|100px|right]]उत्तर प्रदेश के कला संग्रहालयों में [[लखनऊ]] स्थित राज्य संग्रहालय, मथुरा स्थित पुरातात्विक संग्रहालय, बौद्ध पुरातात्विक संग्रहालय, सारनाथ संग्रहालय प्रमुख हैं। लखनऊ स्थित [[कला]] एवं हिन्दुस्तानी संगीत के महाविद्यालय और इलाहाबाद स्थित प्रयाग संगीत समिति ने देश में कला व शास्त्रीय संगीत के विकास में बहुत योगदान दिया है। नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन और हिन्दुस्तानी अकादमी [[हिन्दी साहित्य]] के विकास में सहायक रही हैं। | ||[[चित्र:Tajmahal-1.jpg|ताजमहल, आगरा|100px|right]]उत्तर प्रदेश के कला संग्रहालयों में [[लखनऊ]] स्थित राज्य संग्रहालय, मथुरा स्थित पुरातात्विक संग्रहालय, बौद्ध पुरातात्विक संग्रहालय, सारनाथ संग्रहालय प्रमुख हैं। लखनऊ स्थित [[कला]] एवं हिन्दुस्तानी संगीत के महाविद्यालय और इलाहाबाद स्थित प्रयाग संगीत समिति ने देश में कला व शास्त्रीय संगीत के विकास में बहुत योगदान दिया है। नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन और हिन्दुस्तानी अकादमी [[हिन्दी साहित्य]] के विकास में सहायक रही हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तर प्रदेश]] | ||
{[[जाकिर हुसैन]] को निम्नलिखित में से किस वाद्ययंत्र को बजाने में विशिष्टता प्राप्त है? | {[[जाकिर हुसैन]] को निम्नलिखित में से किस वाद्ययंत्र को बजाने में विशिष्टता प्राप्त है? | ||
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+[[तबला]] | +[[तबला]] | ||
-संतूर | -संतूर | ||
||[[चित्र:Alla-Rakha.jpg|अल्ला रक्खा ख़ाँ|100px|right]]आधुनिक काल में गायन, वादन तथा नृत्य की संगति में तबले का प्रयोग होता है। तबले के पूर्व यही स्थान | ||[[चित्र:Alla-Rakha.jpg|अल्ला रक्खा ख़ाँ|100px|right]]आधुनिक काल में गायन, वादन तथा नृत्य की संगति में तबले का प्रयोग होता है। तबले के पूर्व यही स्थान पखावज अथवा [[मृदंग]] को प्राप्त था । कुछ दिनों से तबले का स्वतन्त्र-वादन भी अधिक लोक-प्रिय होता जा रहा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तबला]] | ||
{[[संगीत]] यंत्र [[तबला]] का प्रचलन किसने किया- | {[[संगीत]] यंत्र [[तबला]] का प्रचलन किसने किया- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आदिलशाह ने | -आदिलशाह ने | ||
-[[तानसेन]] | -[[तानसेन]] ने | ||
-[[बैजू बावरा]] ने | -[[बैजू बावरा]] ने | ||
+[[अमीर ख़ुसरो]] | +[[अमीर ख़ुसरो]] ने | ||
||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|अमीर ख़ुसरो और ह्ज़रत निज़ामुद्दीन औलिया|100px|right]]कहा जाता है कि तबला हजारों साल पुराना वाद्ययंत्र है किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ [[अमीर ख़ुसरो]] ने पखावज के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|अमीर ख़ुसरो और ह्ज़रत निज़ामुद्दीन औलिया|100px|right]]कहा जाता है कि तबला हजारों साल पुराना वाद्ययंत्र है किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ [[अमीर ख़ुसरो]] ने पखावज के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
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-[[चैत्र]] मास में | -[[चैत्र]] मास में | ||
-[[श्रावण]] मास में | -[[श्रावण]] मास में | ||
+[[आश्विन]] मास | +[[आश्विन]] मास में | ||
-[[कार्तिक]] मास में | -[[कार्तिक]] मास में | ||
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-[[कश्मीर]]में | -[[कश्मीर]]में | ||
-[[आन्ध्र प्रदेश]]में | -[[आन्ध्र प्रदेश]]में | ||
+[[केरल]]में | +[[केरल]] में | ||
-[[पश्चिम बंगाल]]में | -[[पश्चिम बंगाल]]में | ||
||[[चित्र:Muzhappilangad-Beach-Kannur.jpg|मुजुपिलंगड बीच, कन्नूर|100px|right]]केरल भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी सिरे पर स्थित है। स्वतंत्र [[भारत]] में जब छोटी छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोरे तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर 1 जुलाई, 1949 को 'त्रावनकोर कोचीन' राज्य बना दिया गया, लेकिन मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन ही रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के अंतर्गत 'त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार' को मिलाकर 1 नवंबर, 1956 को 'केरल राज्य' का निर्माण किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केरल]] | ||[[चित्र:Muzhappilangad-Beach-Kannur.jpg|मुजुपिलंगड बीच, कन्नूर|100px|right]]केरल भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी सिरे पर स्थित है। स्वतंत्र [[भारत]] में जब छोटी छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोरे तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर 1 जुलाई, 1949 को 'त्रावनकोर कोचीन' राज्य बना दिया गया, लेकिन मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन ही रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के अंतर्गत 'त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार' को मिलाकर 1 नवंबर, 1956 को 'केरल राज्य' का निर्माण किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केरल]] |
13:08, 28 जून 2011 का अवतरण
कला और संस्कृति
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