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*'''जीवक चिंतामणि''' [[जैन धर्म|जैन]] [[मुनि]] एवं महाकवि 'तिरुतक्कदेवर' की अमर कृति है।
*'''जीवक चिन्तामणि''' [[जैन धर्म|जैन]] [[मुनि]] एवं महाकवि 'तिरुतक्कदेवर' की अमर कृति है।
*इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है।
*इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है।
*13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल क़रीब 3,145 पद हैं।
*13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल क़रीब 3,145 पद हैं।
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*वह जीवन के समस्त सुख और दुःख को भोग लेने के उपरान्त राज्य और परिवार का त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लेता है।
*वह जीवन के समस्त सुख और दुःख को भोग लेने के उपरान्त राज्य और परिवार का त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लेता है।
*अन्ततः उसे सशरीर मुक्ति मिल जाती है।
*अन्ततः उसे सशरीर मुक्ति मिल जाती है।
*'जीवक चिंतामणि' के लेखक ने जैन मतानुसार गृहस्थ जीवन के स्वरूप को स्पष्ट किया है।
*'जीवक चिन्तामणि' के लेखक ने जैन मतानुसार गृहस्थ जीवन के स्वरूप को स्पष्ट किया है।
*इस ग्रंथ में मुख्य रूप से [[श्रृंगार रस]] का प्रयोग किया गया है।
*इस ग्रंथ में मुख्य रूप से [[श्रृंगार रस]] का प्रयोग किया गया है।
*इस ग्रंथ में आठ विवाहों का वर्णन किया गया है, इसलिए इसे ‘मणनूल’ (विवाह ग्रंथ) भी कहा जाता है।
*इस ग्रंथ में आठ विवाहों का वर्णन किया गया है, इसलिए इसे ‘मणनूल’ (विवाह ग्रंथ) भी कहा जाता है।

06:31, 30 जून 2011 का अवतरण

  • जीवक चिन्तामणि जैन मुनि एवं महाकवि 'तिरुतक्कदेवर' की अमर कृति है।
  • इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है।
  • 13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल क़रीब 3,145 पद हैं।
  • 'जीवक चिन्तामणि' महाकाव्य में कवि ने 'जीवक' नामक राजकुमार का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया है।
  • इस काव्य का नायक आठ विवाह करता है।
  • वह जीवन के समस्त सुख और दुःख को भोग लेने के उपरान्त राज्य और परिवार का त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लेता है।
  • अन्ततः उसे सशरीर मुक्ति मिल जाती है।
  • 'जीवक चिन्तामणि' के लेखक ने जैन मतानुसार गृहस्थ जीवन के स्वरूप को स्पष्ट किया है।
  • इस ग्रंथ में मुख्य रूप से श्रृंगार रस का प्रयोग किया गया है।
  • इस ग्रंथ में आठ विवाहों का वर्णन किया गया है, इसलिए इसे ‘मणनूल’ (विवाह ग्रंथ) भी कहा जाता है।
  • अलंकारों में कुछ महत्वपूर्ण, जैसे उपमा, रूपक आदि का प्रयोग किया गया है।
  • छंद में 'तिरुत्तम छन्द' का प्रयोग हुआ है।
  • इस महाकाव्य का साहित्यक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व अक्षुण्ण है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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