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[[चित्र:Kambojika-1.jpg|thumb|महाराज्ञी [[कम्बोजिका]]<br />Kambojika<br />[[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]|250px]]
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*प्राचीन [[संस्कृत]] साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में अनेक उल्लेख हैं जिनसे जान पड़ता है कि कंबोज देश का विस्तार स्थूल रूप से [[कश्मीर]] से हिन्दूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में कंबोज औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।   
*प्राचीन [[संस्कृत]] साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में अनेक उल्लेख हैं जिनसे जान पड़ता है कि कंबोज देश का विस्तार स्थूल रूप से [[कश्मीर]] से [[हिन्दूकुश पर्वत|हिन्दूकुश]] तक था। वंश ब्राह्मण में कंबोज औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।   
*वाल्मीकि-[[रामायण]] में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों के श्रेष्ठ घोड़ों का [[अयोध्या]] में होना वर्णित है- 'कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:<ref>वाल्मीकि-रामायण बाल0 6,22</ref>
*वाल्मीकि-[[रामायण]] में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों के श्रेष्ठ घोड़ों का [[अयोध्या]] में होना वर्णित है- 'कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:<ref>वाल्मीकि [[रामायण]] बाल काण्ड 6,22</ref>
*[[महाभारत]] के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था- 'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:'<ref>महाभारत सभा0 27,23। महाभारत शांति0 207,43; </ref>
*[[महाभारत]] के अनुसार [[अर्जुन]] ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था- 'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:'<ref>[[सभा पर्व महाभारत]] 27,23। [[शांतिपर्व महाभारत]] 207,43; </ref>
*[[अंगुत्तरनिकाय]] <ref>अंगुत्तरनिकाय 1,213; 4,252, 256-261</ref> और [[अशोक]] के पांचवें शिलालेख में कंबोज का [[गांधार|गंधार]] के साथ उल्लेख है।  
*[[अंगुत्तरनिकाय]] <ref>अंगुत्तरनिकाय 1,213; 4,252, 256-261</ref> और [[अशोक]] के पांचवें शिलालेख में कंबोज का [[गांधार|गंधार]] के साथ उल्लेख है।  
*महाभारत <ref> महाभारत/ शांति0 207,43</ref> और राजतरंगिणी <ref>राजतरंगिणी4,163-165</ref> में कंबोज की स्थिति [[उत्तरापथ]] में बताई गई है।  
*महाभारत <ref> [[शांतिपर्व महाभारत]] 207,43</ref> और राजतरंगिणी <ref>राजतरंगिणी 4,163-165</ref> में कंबोज की स्थिति [[उत्तरापथ]] में बताई गई है।  
*महाभारत में कहा गया है कि [[कर्ण]] ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। <ref> महाभारत द्रोण0 4,5</ref>
*महाभारत में कहा गया है कि [[कर्ण]] ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। <ref>[[द्रोण पर्व महाभारत]] 4,5</ref>
*[[ईशानपुर]] प्राचीन कम्बोडिया का एक नगर था।
*[[ईशानपुर]] प्राचीन कम्बोडिया का एक नगर था।
*[[कनिंघम|कर्निघम]] के अनुसार राजपुर कश्मीर में स्थित राजौरी है <ref>(एशेंट ज्योग्रेफी आफ इंडिया, पृ0 148)</ref>
*[[कनिंघम|कर्निघम]] के अनुसार राजपुर कश्मीर में स्थित राजौरी है <ref>(एशेंट ज्योग्रेफी आफ इंडिया, पृ. 148)</ref>
[[चित्र:Lion-capitol.jpg|सिंह शीर्ष|thumb|250px]]
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*[[कालिदास]] ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है— 'काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:'<ref> रघुवंश 4,69।</ref>इस उद्धरण में कालिदास ने कंबोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर में सिद्ध होती हैं।  
*[[कालिदास]] ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है— 'काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:'<ref> [[रघुवंश]] 4,69।</ref> इस उद्धरण में कालिदास ने कंबोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर में सिद्ध होती हैं।  
*[[हुएन-सांग|युवानच्वांग]] ने भी राजपुर का उल्लेख किया है <ref> युवानच्वांग, भाग 1, पृ0 284)</ref>।  
*[[हुएन-सांग|युवानच्वांग]] ने भी राजपुर का उल्लेख किया है <ref>(युवानच्वांग, भाग 1, पृ. 284)</ref>।  
*वैदिक काल में कंबोज आर्य-संस्कृति का केंद्र था जैसा कि वंश-ब्राह्मण के उल्लेख से सूचित होता है, किंतु कालांतर में जब आर्यसभ्यता पूर्व की ओर बढ़ती गई तो कंबोज आर्य-संस्कृति से बाहर समझा जाने लगां।  
*वैदिक काल में कंबोज आर्य-संस्कृति का केंद्र था जैसा कि वंश-ब्राह्मण के उल्लेख से सूचित होता है, किंतु कालांतर में जब आर्यसभ्यता पूर्व की ओर बढ़ती गई तो कंबोज आर्य-संस्कृति से बाहर समझा जाने लगां।  
*यास्क और भूरिदत्तजातक <ref>काँवेल 6,110)</ref> में कंबोजों के प्रति अवमान्यता के विचार प्रकट किए गए हैं। युवानच्वांग ने भी कांबोजों को असंस्कृत तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों वाला बताया है। कंबोज के राजपुर, नंदिनगर <ref> लूडर्स, इसंक्रिप्शंस, 176, 472)</ref> और राइसडेवीज के अनुसार [[द्वारका]] नामक नगरों का उल्लेख साहित्य में मिलता है।  
*यास्क और भूरिदत्तजातक <ref>काँवेल 6,110)</ref> में कंबोजों के प्रति अवमान्यता के विचार प्रकट किए गए हैं। युवानच्वांग ने भी कांबोजों को असंस्कृत तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों वाला बताया है। कंबोज के राजपुर, नंदिनगर <ref>(लूडर्स, इसंक्रिप्शंस, 176, 472)</ref> और राइसडेवीज के अनुसार [[द्वारका]] नामक नगरों का उल्लेख साहित्य में मिलता है।  
*महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। [[चाणक्य|कौटिल्य]] अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि [[मौर्यकाल]] से पूर्व यहाँ गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में [[चंद्रगुप्त मौर्य|चंद्रगुप्त]] के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
*महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। [[चाणक्य|कौटिल्य]] अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि [[मौर्यकाल]] से पूर्व यहाँ गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में [[चंद्रगुप्त मौर्य|चंद्रगुप्त]] के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
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11:29, 1 जुलाई 2011 का अवतरण

महाराज्ञी कम्बोजिका
Kambojika
राजकीय संग्रहालय, मथुरा
  • प्राचीन संस्कृत साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में अनेक उल्लेख हैं जिनसे जान पड़ता है कि कंबोज देश का विस्तार स्थूल रूप से कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में कंबोज औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।
  • वाल्मीकि-रामायण में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों के श्रेष्ठ घोड़ों का अयोध्या में होना वर्णित है- 'कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:[1]
  • महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था- 'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:'[2]
  • अंगुत्तरनिकाय [3] और अशोक के पांचवें शिलालेख में कंबोज का गंधार के साथ उल्लेख है।
  • महाभारत [4] और राजतरंगिणी [5] में कंबोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है।
  • महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। [6]
  • ईशानपुर प्राचीन कम्बोडिया का एक नगर था।
  • कर्निघम के अनुसार राजपुर कश्मीर में स्थित राजौरी है [7]
सिंह शीर्ष
  • कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है— 'काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:'[8] इस उद्धरण में कालिदास ने कंबोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर में सिद्ध होती हैं।
  • युवानच्वांग ने भी राजपुर का उल्लेख किया है [9]
  • वैदिक काल में कंबोज आर्य-संस्कृति का केंद्र था जैसा कि वंश-ब्राह्मण के उल्लेख से सूचित होता है, किंतु कालांतर में जब आर्यसभ्यता पूर्व की ओर बढ़ती गई तो कंबोज आर्य-संस्कृति से बाहर समझा जाने लगां।
  • यास्क और भूरिदत्तजातक [10] में कंबोजों के प्रति अवमान्यता के विचार प्रकट किए गए हैं। युवानच्वांग ने भी कांबोजों को असंस्कृत तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों वाला बताया है। कंबोज के राजपुर, नंदिनगर [11] और राइसडेवीज के अनुसार द्वारका नामक नगरों का उल्लेख साहित्य में मिलता है।
  • महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहाँ गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।

इन्हें भी देखें: कंबुज एवं कंबुपुरी


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण बाल काण्ड 6,22
  2. सभा पर्व महाभारत 27,23। शांतिपर्व महाभारत 207,43;
  3. अंगुत्तरनिकाय 1,213; 4,252, 256-261
  4. शांतिपर्व महाभारत 207,43
  5. राजतरंगिणी 4,163-165
  6. द्रोण पर्व महाभारत 4,5
  7. (एशेंट ज्योग्रेफी आफ इंडिया, पृ. 148)
  8. रघुवंश 4,69।
  9. (युवानच्वांग, भाग 1, पृ. 284)
  10. काँवेल 6,110)
  11. (लूडर्स, इसंक्रिप्शंस, 176, 472)

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