"बछेंद्री पाल": अवतरणों में अंतर
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मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला। जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इस से बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। यहाँ से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी।<ref name="apne"/> | मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला। जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इस से बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। यहाँ से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी।<ref name="apne"/> | ||
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1984 में [[भारत]] का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। दुनिया में अब तक सिर्फ 4 महिलाऐं एवरेस्ट की चढ़ाई में | 1984 में [[भारत]] का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। दुनिया में अब तक सिर्फ 4 महिलाऐं एवरेस्ट की चढ़ाई में क़ामयाब हो पाई थीं। 1984 के इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरूषों को शामिल किया गया था। 1 बजे 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर सागरमाथा (एवरेस्ट) पर भारत का झंडा लहराया गया। इस के साथ एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाले वे दुनिया की 5वीं महिला बनीं। केंद्र सरकार ने उन्हें [[पद्मश्री]] से सम्मानित किया।<ref name="apne"/> | ||
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08:02, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
'पहाड़ों की रानी' बछेंद्री पाल पर्वत शिखर एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं और भारत की पहली महिला पर्वतारोही हैं।
जीवन परिचय
बछेंद्री पाल ने उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी की पहाड़ों की गोद में सन 1954 को जन्म लिया। बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। यह चढ़ाई उन्होंने किसी योजनाबद्ध तरीके से नहीं की थी। दरअसल, वे स्कूल पिकनिक पर गई हुए थीं। चढ़ाई चढ़ती गईं। लेकिन तब तक शाम हो गई। जब लौटने का खयाल आया तो पता चला की उतरना सम्भव नहीं है। जाहिर है, रातभर ठहरने के लिये उन के पास पूरा इंतजाम नहीं था। बगैर भोजन और टैंट के उन्होंने खुले आसमान के नीचे रात गुजार दी।[1]
बुलंद हौसला
मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला। जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इस से बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। यहाँ से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी।[1]
एवरेस्ट अभियान
1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। दुनिया में अब तक सिर्फ 4 महिलाऐं एवरेस्ट की चढ़ाई में क़ामयाब हो पाई थीं। 1984 के इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरूषों को शामिल किया गया था। 1 बजे 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर सागरमाथा (एवरेस्ट) पर भारत का झंडा लहराया गया। इस के साथ एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाले वे दुनिया की 5वीं महिला बनीं। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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