"काँग्रेस": अवतरणों में अंतर
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मिथक यह है कि ए.ओ. ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज़ सरकार के इशारे पर ही ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना की थी। उस समय के मौजूदा वाइसराय ‘लॉर्ड डफ़रिन’ के निर्देश, मार्गदर्शन और सलाह पर ही ‘हयूम’ ने इस संगठन को जन्म दिया था, ताकि [[1857]] की क्रान्ति के विफलता के बाद भारतीय जनता में पनपते- बढ़ते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके, और असतोष की वाष्प’ को सौम्य, सुरक्षित, शान्तिपूर्ण और संवैधानिक विकास या ‘सैफ्टीवाल्व’ उपलब्ध कराया जा सकें। ‘यंग इंडिया’ में [[1961]] प्रकाशित अपने लेख में गरमपथी नेता लाला लाजपत राय ने ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल कांग्रेस की नरमपंथी पक्ष पर प्रहार करने के लिये किया था। इस पर लंम्बी चर्चा करते हुए लाला जी ने अपने लेख में लिखा था? कि "कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।" इसके बाद अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लिखा था कि, "कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आज़ादी हासिल करने से कही ज़्यादा यह था कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य पर आसन्न खतरो से उसे बचाया जा सकें।" | मिथक यह है कि ए.ओ. ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज़ सरकार के इशारे पर ही ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना की थी। उस समय के मौजूदा वाइसराय ‘लॉर्ड डफ़रिन’ के निर्देश, मार्गदर्शन और सलाह पर ही ‘हयूम’ ने इस संगठन को जन्म दिया था, ताकि [[1857]] की क्रान्ति के विफलता के बाद भारतीय जनता में पनपते- बढ़ते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके, और असतोष की वाष्प’ को सौम्य, सुरक्षित, शान्तिपूर्ण और संवैधानिक विकास या ‘सैफ्टीवाल्व’ उपलब्ध कराया जा सकें। ‘यंग इंडिया’ में [[1961]] प्रकाशित अपने लेख में गरमपथी नेता लाला लाजपत राय ने ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल कांग्रेस की नरमपंथी पक्ष पर प्रहार करने के लिये किया था। इस पर लंम्बी चर्चा करते हुए लाला जी ने अपने लेख में लिखा था? कि "कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।" इसके बाद अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लिखा था कि, "कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आज़ादी हासिल करने से कही ज़्यादा यह था कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य पर आसन्न खतरो से उसे बचाया जा सकें।" | ||
यही नहीं उदारवादी सी. एफ. एंड्रूज और गिरजा मुखर्जी ने भी [[1938]] में प्रकाशित ‘भारत में कांग्रेस का उदय और विकास’ में ‘सुरक्षता बाल्ब’ की बात पूरी तरह स्वीकार की थी।<br /> | यही नहीं उदारवादी सी. एफ. एंड्रूज और गिरजा मुखर्जी ने भी [[1938]] में प्रकाशित ‘भारत में कांग्रेस का उदय और विकास’ में ‘सुरक्षता बाल्ब’ की बात पूरी तरह स्वीकार की थी।<br /> | ||
1939 में [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] के सर संचालक एम. एस. गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के कारण उसे गैर- राष्ट्रवादी ठहराने के लिए ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपने परचे ‘वी’ (हम) में कहा था कि हिन्दू राष्ट्रीय चेतना को उन लोगो ने तबाह कर दिया जो ‘राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं। गोलवलकर के अनुसार, ह्यूम कॉटर्न और वेडरबर्न द्वारा [[1885]] में तय की गई नीतियां ही | 1939 में [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] के सर संचालक एम. एस. गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के कारण उसे गैर- राष्ट्रवादी ठहराने के लिए ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपने परचे ‘वी’ (हम) में कहा था कि हिन्दू राष्ट्रीय चेतना को उन लोगो ने तबाह कर दिया जो ‘राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं। गोलवलकर के अनुसार, ह्यूम कॉटर्न और वेडरबर्न द्वारा [[1885]] में तय की गई नीतियां ही ज़िम्मेदार थीं- इन लोगो ने उस समय ‘उबल रहे राष्ट्रवार’ के ख़िलाफ़ सुरक्षा वाल्व के तौर पर कांग्रेस की स्थापना की थी।<ref>{{cite web |url=http://www.pravakta.com/story/17829 |title=कांग्रेस की स्थापना का सच |accessmonthday=30 दिसंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=प्रवक्ता डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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16:04, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
कांग्रेस | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कांग्रेस (बहुविकल्पी) |
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। इस दल की वर्तमान अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी है। कांग्रेस दल का युवा संगठन, भारतीय युवा कांग्रेस है।
इतिहास
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नामक संगठन आरंभ, भारत के अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोगों द्वारा किया गया और यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इसके पहले बाद के कुछ ऐसे अध्यक्ष हुये जिन्होंने विलायत में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। पहले तीन अध्यक्ष, श्री डब्ल्यू सी. बैनर्जी, श्री दादाभाई नौरोजी तथा श्री बदरुद्दीन तैयबजी ग्रेट ब्रिटेन से ही बैरिस्टरी पढ़ कर आये थे। श्री जार्ज युल तथा सर विलियम बैडरवर्न तो अंग्रेज़ ही थे और यही बात उनके कुछ अन्य अनुयायियों जैसे कि एलफर्ड बेब तथा सर हेनरी काटन के बारे में भी कही जा सकती है। उन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के उस दौर में शिक्षा प्राप्त की जबकि इंग्लैंड में लोकतांत्रिक मूल्यों तथा स्वाधीनता का बोलबाला था। कांग्रेस के आरंभिक नेताओं का ब्रिटेन के सुधारवादी (रेडिकल) तथा उदारवादी (लिबरल) नेताओं में पूरा विश्वास था। भारतीय कांग्रेस के संस्थापक भी एक अंग्रेज़ ही थे जो 15 वर्षों तक कांग्रेस के महासचिव रहे। श्री ऐ. ओ. ह्यूम ब्रिटिश संस्कृति की ही देन थे। इसलिए कांग्रेस का आरंभ से ही प्रयास रहा कि ब्रिटेन के जनमत को प्रभावित करने वाले नेताओं से सदा सम्पर्क बनाये रखा जाये ताकि भारतीय लोगों के हित के लिए अपेक्षित सुधार कर उन्हें उनके राजनीतिक अधिकार दिलवाने में सहायता मिल सके। यहाँ तक कि वह नेता जिन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा नहीं पाई थी, उनकी भी मान्यता थी कि अंग्रेज़ लोकतंत्र को बहुत चाहते हैं। पंडित मदन मोहन मालवीय ने अपने पहले भाषण में, जो कि उन्होंने 1886 में कलकत्ता में हुये दूसरे कांग्रेस अधिवेशन में दिया था, कहा, प्रतिधिक संस्थाओं के बिना अंग्रेज़ भला क्या होगा। "प्रतिनिधिक संस्थान ब्रिटेन का उतना ही अनिवार्य अंग है जितना कि उसकी भाषा तथा साहित्य"। कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में श्री जार्ज युल की अध्यक्षता में हुआ जिसमें मांग की गई कि एक संसदीय समिति की नियुक्ति की जाये जो कांग्रेस की 1858 की उद्घोषणा को लागू करने तथा राजनीतिक सुधार स्वीकार करने की मांगों पर विचार करे। यह निर्णय भी किया गया कि संसद-सदस्य श्री ब्रैडला से अनुरोध किया जाये कि वह इसके लिए उन्हें अपना समर्थन दें।
श्री चार्ल्स ब्रैडला ने 1889 में बम्बई कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया तथा सर विलियम बेडरवर्न को अध्यक्ष चुना गया। इस अधिवेशन में श्री ब्रैडला को एक मानपत्र भेंट किया गया जिसे सर विलियम रेडरवर्न ने पढ़ा। इसी अधिवेशन में वह संकल्प स्वीकार किया गया जिसमें कहा गया है, "कि यह अधिवेशन सर विलियम बेडरवर्न, बार्ट तथा मैसर्ज डब्ल्यू एस. केनी, एम. पी., डब्ल्यू. एस. ब्राईट मैकलारिन एम.पी., जे.ई. इलियस एम.पी., दादाभाई नौरोजी तथा जार्ज युल की समिति (जिसके पास अपनी संस्था बढ़ाने की शक्ति होगी) के रूप में नियुक्ति की पुष्टि करता है तथा यह समिति नेशनल कांग्रेस एजेंसी के कार्य संचालन तथा नियंत्रण के बारे में दिशानिर्देश देती रहेगी तथा उन महानुभावों का धन्यवाद करती है तथा उनके साथ ही श्री डब्ल्यू. दिग्बे, सी.आई.सी. सचिव का भारत को दी जाने वाली सेवा के लिए धन्यवाद करती है।"
इस संकल्प से पता चलता है कि समिति, कांग्रेस के पांचवे अधिवेशन से पहले भी कार्यरत रही होगी और यह 20वीं शताब्दी के दूसरे दशक तब तक कार्यरत रही जब तक कि महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कलकत्ता में 1920 के विशेष अधिवेशन में अपना असहयोग आंदोलन का संकप पारित करवाने में सफल नहीं हो गयी। यह समिति इतनी सशक्त होती चली गई कि दादा भाई नौरोजी ने, 1906 में कलकत्ता में होने वाले अपने अध्यक्षीय भाषण में इस तथ्य का उल्लेख करते हुये कहा कि भारतीय संसदीय कमेटी के सदस्यों की संख्या 200 तक पहुंच गई है। उन्होंने कहा, "भारतीय संसदीय कमेटी के सदस्यों की संख्या 200 है। लेबर सदस्यों, आयरिश नेशनल सदस्यों तथा रेडीकल सदस्यों की हमारे साथ पूर्ण सहानुभूति है। हम इसे भारत का एक सशक्त अंग बनाना चाहते हैं। हमने देखा है कि सभी दलों के लोग चाहे वह लेबर पार्टी के हरें सर छेमरेक्रेटिक पार्टी के हों, ब्रिटिश नेशनल पार्टी के, या फिर उग्र-सुधारवादी (रेडिकल) या उदारबादी (लिबरल) सभी भारत के मामलों में गहरी दिलचस्पी लेते हैं।"[1]
स्थापना दिवस
भारतीयों के सबसे बड़े इस राजनीतिक संगठन की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 ई. को की गयी। इसका पहला अधिवेशन बम्बई में कलकत्ता हाईकोर्ट के बैरेस्टर उमेशचन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ। कहा जाता है कि वाइसराय लॉर्ड डफ़रिन (1884-88 ई.) ने कांग्रेस की स्थापना का अप्रत्यक्ष रीति से समर्थन किया। यह सही है कि एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज़ अधिकारी एनल आक्टेवियन ह्यूम कांग्रेस का जन्मदाता था और 1912 ई. में उसकी मृत्यु हो जाने पर कांग्रेस ने उसे अपना 'जन्मदाता और संस्थापक' घोषित किया था। गोखले के अनुसार 1885 ई. में ह्यूम के सिवा और कोई व्यक्ति कांग्रेस की स्थापना नहीं कर सकता था। परन्तु वस्तुस्थिति यह प्रतीत होती है, जैसा कि सी.वाई. चिन्तामणि का मत है, राजनीतिक उद्देश्यों से राष्ट्रीय सम्मेलन का विचार कई व्यक्तियों के मन में उठा था और वह 1885 ई. में चरितार्थ हुआ।
- उद्देश्य
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की नींव, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी द्वारा 1876 में कोलकाता में भारत संघ के गठन के साथ रखी गई। संघ का उद्देश्य शिक्षित मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करना, भारतीय समाज को संगठित कार्रवाई के लिए प्रेरित करना था। एक प्रकार से भारतीय संघ, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसकी स्थापना सेवा निवृत्त ब्रिटिश अधिकारी ए.ओ.ह्यूम की सहायता से की गई थी, की पूर्वगामी थी। 1895 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्म से नव शिक्षित मध्यम वर्ग के राजनीति में आने के लक्षण दिखाई देने लगे तथा इससे भारतीय राजनीति का स्वरूप ही बदल गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन दिसंबर 1885 में मुम्बई में वोमेश चन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ तथा कांग्रेस गठन में पूरे देश से 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था[2]
कांग्रेस की स्थापना का सच
28 दिसम्बर, 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अवकाश प्राप्त आई.सी.एस. अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (ए.ओ. ह्यूम) ने थियोसोफिकल सोसाइटी के मात्र 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से इसकी नींव रखी थी। अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रवार की पहली सुनियोजित अभिव्यक्ति थी। आखिर इन 72 लोगो ने कांग्रेस की स्थापना क्यों की और इसके लिए यही समय क्यों चुना?
यह प्रश्न के साथ एक मिथक अरसे से जुड़ा है, और वह मिथक अपने आप में काफ़ी मजबूती रखता है। ‘सेफ्टी वाल्ट (सुरक्षा वाल्व) का यह मिथक पिछली कई पीढ़ियों से विद्यार्थियों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के जेहन में घुट्टी में पिलाया जा रहा है। लेकिन जब हम इतिहास के गहराईयों को झाकते हैं, तो हमे पता चलेगा कि इस मिथक में उतना दम नहीं है, जितना कि आमतौर पर इसके बारे में माना जाता है। 125 साल पूरे होने के अवसर पर आज यह सही मौक़ा है कि इस मिथक के रहस्य पर से परदा उठाया जायें, हालाँकि इसके लिए इतिहास में काफ़ी गहरे जाकर खोजबीन करनी पड़ेगी।
मिथक यह है कि ए.ओ. ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज़ सरकार के इशारे पर ही ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना की थी। उस समय के मौजूदा वाइसराय ‘लॉर्ड डफ़रिन’ के निर्देश, मार्गदर्शन और सलाह पर ही ‘हयूम’ ने इस संगठन को जन्म दिया था, ताकि 1857 की क्रान्ति के विफलता के बाद भारतीय जनता में पनपते- बढ़ते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके, और असतोष की वाष्प’ को सौम्य, सुरक्षित, शान्तिपूर्ण और संवैधानिक विकास या ‘सैफ्टीवाल्व’ उपलब्ध कराया जा सकें। ‘यंग इंडिया’ में 1961 प्रकाशित अपने लेख में गरमपथी नेता लाला लाजपत राय ने ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल कांग्रेस की नरमपंथी पक्ष पर प्रहार करने के लिये किया था। इस पर लंम्बी चर्चा करते हुए लाला जी ने अपने लेख में लिखा था? कि "कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।" इसके बाद अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लिखा था कि, "कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आज़ादी हासिल करने से कही ज़्यादा यह था कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य पर आसन्न खतरो से उसे बचाया जा सकें।"
यही नहीं उदारवादी सी. एफ. एंड्रूज और गिरजा मुखर्जी ने भी 1938 में प्रकाशित ‘भारत में कांग्रेस का उदय और विकास’ में ‘सुरक्षता बाल्ब’ की बात पूरी तरह स्वीकार की थी।
1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संचालक एम. एस. गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के कारण उसे गैर- राष्ट्रवादी ठहराने के लिए ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपने परचे ‘वी’ (हम) में कहा था कि हिन्दू राष्ट्रीय चेतना को उन लोगो ने तबाह कर दिया जो ‘राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं। गोलवलकर के अनुसार, ह्यूम कॉटर्न और वेडरबर्न द्वारा 1885 में तय की गई नीतियां ही ज़िम्मेदार थीं- इन लोगो ने उस समय ‘उबल रहे राष्ट्रवार’ के ख़िलाफ़ सुरक्षा वाल्व के तौर पर कांग्रेस की स्थापना की थी।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास (हिन्दी) (पी.एच.पी) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। अभिगमन तिथि: 30 दिसंबर, 2010।
- ↑ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (हिन्दी) भारत की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 25 नवंबर, 2010।
- ↑ कांग्रेस की स्थापना का सच (हिन्दी) (पी.एच.पी) प्रवक्ता डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 30 दिसंबर, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
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