"धर्मपरायण कुट्टवन": अवतरणों में अंतर
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*उसने अपनी | *उसने अपनी मज़बूत नौसेना द्वारा 'मोहुर प्रदेश' पर विजय प्राप्त की थी। | ||
*धर्मपरायण कुट्टवन ने 'शेनकुट्टवन' की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की थी। | *धर्मपरायण कुट्टवन ने 'शेनकुट्टवन' की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की थी। | ||
*इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को प्राप्त करने का कारण था- दक्षिणी प्रायद्वीप में सर्वप्रथम 'पत्तिनी' या 'कण्णगी' [[पूजा]] की प्रथा को प्रारम्भ करना। | *इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को प्राप्त करने का कारण था- दक्षिणी प्रायद्वीप में सर्वप्रथम 'पत्तिनी' या 'कण्णगी' [[पूजा]] की प्रथा को प्रारम्भ करना। |
16:21, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
- धर्मपरायण कुट्टवन (लगभग 180 ई.) चेर वंश का वीर प्रतापी राजा था।
- चेर वंश के इस महानतम शासक को 'लालचेर' भी कहा जाता था।
- इसकी प्रशंसा संगम कालीन कवियों में सर्वाधिक कवि 'परणर' ने की है।
- चेर कालीन इतिहास में इसे महान योद्धा एवं कला व साहित्य के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है।
- उसने अपनी मज़बूत नौसेना द्वारा 'मोहुर प्रदेश' पर विजय प्राप्त की थी।
- धर्मपरायण कुट्टवन ने 'शेनकुट्टवन' की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की थी।
- इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को प्राप्त करने का कारण था- दक्षिणी प्रायद्वीप में सर्वप्रथम 'पत्तिनी' या 'कण्णगी' पूजा की प्रथा को प्रारम्भ करना।
- इस पूजा के अन्तर्गत एक आदर्श तथा पति धर्म की प्रतीक पत्नी की देवी के रूप में मूर्ति बनाकर पूजा की जाती थी।
- शेनगुट्टवन ने सती 'कण्णगी' की याद में एक विशाल मंदिर एवं उसकी प्रतिमा का निर्माण करवाया था।
- उसने 'अधिराज' की भी उपाधि को धारण किया था।
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