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=पं॰ नेहरू के स्वप्न : मथुरा रिफाइनरी=
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आज के युग में पैट्रोलियम पदार्थों का महत्व सतत रूप से बढ़ता जा रहा है। चाहे कृषि का क्षेत्र हो या उद्योग, देश की सीमाओं की सुरक्षा का सवाल हो या घर की रसोई, यातायात के साधन हों अथवा गाँव के लालटेन की रोशनी हर जगह पैट्रोलियम पदार्थ महत्वपूर्ण है। इन्ही पैट्रोलियम पदार्थों  को देश के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों की आवश्यक्ता पूर्ति के लिए भगवान [[कृष्ण]] की इस कर्मभूमि में 60 लाख टन प्रतिवर्ष कच्चा तेल साफ करने वाली देश की अत्याधुनिक रिफाइनरी की स्थापना की गई। हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री [[पं॰ जवाहरलाल नेहरू]] ने इन्हीं कारखानों को आधुनिक मन्दिर की संज्ञा दी थी।


राज्य, पश्चिमोत्तर भारत। यह पश्चिमोत्तर में पंजाब राज्य और केंद्रशासित प्रदेश चंडिगढ़, उत्तर में हिमाचल प्रदेश, पूर्व में उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और एक छोटा सा हिस्सा उत्तरांचल से और दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य से धिरा हुआ है। इसका क्षेत्रफल 44,212 वर्ग किमी है। केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ न केवल पंजाब की, बल्कि हरियाणा की भी राजधानी है।
==कच्चे तेल का शोधन==
रिफाइनरी द्वारा 50 प्रतिशत बाम्बे हाई तथा 50 प्रतिशत कच्चे तेल का शोधन किया जाता है। आयातित तथा बाम्बे हाई दोनों कच्चे तेल सलाया से मथुरा रिफाइनरी 1085 मिलोमीटर लम्बी पाइपलाइन के जरिए लाया जाता है। पैट्रोलियम पदार्थों को देश के विभिन्न भागों में टेंकरों तथा रेल वैगनों से भेजने के अलावा [[दिल्ली]], [[जालन्धर]] व [[अम्बाला]] 513 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन के जरिए भेजा जाता है।
भाषाई आधार पर भूतपूर्व पंजाब प्रांत के दो राज्यों में पुनर्गठन के फलस्वरूप 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अस्तित्व में आया। पंजाबीभाषी क्षेत्र पंजाब बन गया और हिंदीभाषी क्षेत्र हरियाणा बन गया। हरियाणा का अर्थ है '''‘भगवान का घर’''', ''हरि (विष्णु) और अयन (घर) से मिलकर हरियाणा शब्द बना है।''


==भौतिक एवं मानव भूगोल==
==इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन==
===भू-आकृति===
देश की 12वीं तथा इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की इस छटी रिफाइनरी में तेल शोधन की आधुनिकतम तकनीक का उपयोग किया गया है। मथुरा रिफाइनरी के  निर्माण में देशीय क्षमताओं का अधिकतम उपयोग किया गया है। इस रिफाइनरी के लिए एक भारतीय कम्पनी ने (मैसर्स इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड) एक प्रमुख सलाहकार तथा तकनीकी ठेकेदार के रूप में काम किया। रिफाइनरी में निर्माण कार्य पूर्णतः भाकतीय ठेकेदारों द्वारा किया गया। सयंत्रों और उपकरणों की सप्लाई भी मुख्यतया भारतीय स्त्रोतों के द्वारा ही की गई। रिफाइनरी द्वारा उत्पादित मुख्य पैट्रोलियम पदार्थ है घरेलू काम में आने वाली एल॰ पी॰ जी॰, फ्यूल गैस, नैप्था, कैरोसिन, एवीएशन टरवाइन फ्यूल, हाई स्पीड डीजल, लाइट ऑयल, फ्यूल ऑयल, बिटूमिन तथा सल्फर। यहाँ से दिल्ली, [[उत्तर प्रदेश]], [[हरियाणा]], [[जम्मू कश्मीर]], [[हिमाचल प्रदेश]] तथा [[राजस्थान]] को पैट्रोलियम पदार्थ भेजे जाते हैं।


हरियाणा में दो बड़े भू-क्षेत्र है, राज्य का एक बडा हिस्सा समतल जलोढ़ मैदानों से युक्त है और पूर्वोत्तर में तीखे ढ़ाल वाली शिवालिया पहाड़ियां तथा संकरा पहाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की सतह 210 मीटर से 270 मीटर ऊंचे मैदानी इलाकों से पानी बहकर एकमात्र बारहमासी नदी यमुना में आता है, यह राज्य की पूर्वी सीमा से होकर बहती है। शिवालिक पहाड़ियों से निकली अनेक मौसमी नदीयां मैदानी भागों से गुज़रति है। इनमें सबसे प्रमुख घग्घर (राज्य की उत्तरी सीमा के निकट) नदी है। ऐसा माना जाता है कि कभी यह नदी सिंधु नदी में मिलती थी, जो अब पाकिस्तान में है। इस नदी के निचले क्षेत्र में आर्य-पूर्व सभ्यता के अवशेस मिलते हैं। इसके अलावा दक्षिण हरियाणा के महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और गुड़गांव ज़िलों में दक्षिण से उत्तर की ओर दिल्ली तक विस्तृत अरावली पर्वत श्रृंखला के भी अवशेष मिलते हैं।
==प्रतिवर्ष की क्षमता==
मथुरा रिफाइनरी विगत 5 वर्षों से अपनी 60 लाख टन प्रतिवर्ष की क्षमता से अधिक कच्चे तेल का शोधन कर पश्चिमी प्रान्तों में पैट्रोलियम पदार्थों की उपलब्धता बेहतर बनाने के लिए लगतार प्रयत्नशील है। मथुरा रिफाइनरी ने वर्ष 1988-89 के दौरान 60.56 लाख टन कच्चे तेल का शोधन किया कीर्तिमान है। इससे पूर्व वर्ष 1987-88 में रिफाइनरी ने 65.53 लाख टन तेल का शोधन किया।


हरियाणा के अधिकांश क्षेत्र में शुष्क और अर्द्ध शुष्क  परिस्थितियां हैं। केवल पुर्वोतर में थोड़ी आर्द्रता पाईन जाती है। यद्यपि राज्य में नहर सिंचाई प्रणाली और बड़े पैमाने पर नलकूप हैं। इसके बावजूद यहां कुछ अत्यधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र हैं, ख़ासकर दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में, तथापि यमुना व घग्घर नदी की सहायक नदीयों में कभी-कभी बाढ़ भी जाती है। गर्मियों में ख़ुब गर्मी पड़ती है और सर्दियों में खूब सर्दी। गर्मियों में (मई-जून) अधिकतम तापमान 46 डिग्री से। तक पहुंच जाता है। जनवरी में कभी-कभी न्युनतम तापमान जमाव बिंदु तक पहुंच जाता है। राज्य के हिसार शहर में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ती है।
रिफाइनरी के लिए वर्ष 1988-89 का मार्च महा उपलब्धियों से परिपूर्ण रहा जिसके दौरान 7325 हजार मैट्रिक टन तेल शोधन किया गया जो कि एक माह में तेल शोधन का कीर्तिमान है। मार्च के दौरान, एक माह में औसत ब्रॉड गैज रेल बैगन भी 558 की कितिमान संख्या में भरे गये। मथुरा रिफाइनरी की द्वितीय इकाई फ्ल्यूड कैटेलिटिक क्रोकिंग यूनिट ने भी वर्ष 1988-89 के दौरान 1073 मिलियन मैट्रिक का थ्रू पूट अर्जित किया जो कि निर्धारित क्षनता का 107.3 प्रतिशत है।
पूर्वोतर में पहाड़ के तलहटी वाले क्षेत्र को छोड़कर पूरे राज्य में  मिट्टी गहरी व उर्वर है और दक्षिण-प्श्चिम में राजस्थान के मरुस्थल से सटे सीमावर्ती क्षेत्र में ज़मीन रेतीलि है। राज्य के कुल क्षेत्र के 4/5 भाग में खेती होती है और इसमें से लगभग तीन-चौथाई क्षेत्र सिंचित है। यद्यपि राज्य के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी भागों में सिंचाई नलकूपों के ज़रिये होती है, वहीं दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में अधिकांश सिंचाई नहर के ज़रिये होती है। राज्य में वन क्षेत्र नगण्य हैं। राजमार्गों के किनारे और ऊसर ज़मीनों पर यूकलिप्टस के पेड़ उगाए गए हैं। राज्य के उत्तरी भागों में सड़क किनारे आमतौर पर शीशम (डालबर्गिया सिस्सू) के पेड़ पाए जाते हैं, जबकी दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा में कीकर (अकेशिया अरेबिका) के पेड़ व झाड़ियां आमतौर पर मिलती हैं।


===जनजीवन===
==पैट्रोलियम पदार्थ==
मथुरा रिफाइनरी में इस वर्ष पैट्रोलियम हाई स्पीड डीजल, लाइट डीजल ऑयल तथा बिटूमन का कीर्तिम्पन उत्पादन किया। इसके अलावा, पैट्रोल, हाई स्पीड डीजल, लाइट डीजल ऑयल, रैजीडुअल फ्यूल ऑयल तथा सल्फर कीर्तिमान मात्रा में रिफाइनरी से भेजे गये।


2001 में हरियाणा की कुल जनसंख्या 2,10,82,989 का लगभग 90 प्रतिशक हिंदू (इनमें 1/5 अनुसूचित जाति) और शेष सिक्ख, मुसलमान व अन्य जातियों के हैं। सिक्खों की अधिकांश आवादी पुर्वोत्तर व पश्चिमोत्तर में और मुसलमानों की आबादी दिल्ली के आसपास दक्षिण-पूर्वी ज़िलों में संकेंद्रित है। हिंदू जाट (एक कृषक जाति) हरियाणा की कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं और पंजाब के सिक्खों की तरह भारत की सशस्त्र सेनाओं में इनका प्रमुख स्थान है। यद्यपि राज्य के 75 प्रतिशक आबादी गांवों मे/न रहती हैं, किंतु औद्योगिक, व्यापारिक और कृषि विपणन केंद्रों के रूप में शहर भी तेज़ी से उभर रहे हैं। एक लाख या उससे अधिल आबादी वाले शहर में फ़रीदाबाद संकुल, यमुना नगर, रोहतक, पानीपत, हिसार, करनाल, सोनीपत, अंबाला (शहर और छावनी), गुड़गांव, भिवानी और सिस्सा शामिल है।
मथुरा रिफाइनरी को कच्चा तेल उपलब्ध करने वाली सलाया मथुरा पाइप लाइन ने 657 मिलियन मैट्रिक टन तेल प्राप्त किया, यह भी एक नया कीतिमान है। इस प्रकार, दिल्ली, जालन्धर, अम्बाला को पैट्रोलियम पदार्थ भेजने वाली 513 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन के मथुरा टर्मिनल के 3.2 मिलियन मैट्रिक टन पैट्रोलियम पदार्थ प्रेषित कर 1987-88 के 3.00 मिलियन मैट्रिक टन के कीर्तिमान को बेहतर किया है।


===अर्थव्यवस्था===
विभिन्न क्षेत्रों को परम्परागत पैट्रोलियम पदार्थ की सप्लाई करने के अतिरिक्त मथुरा रिफाइनरी फूलपुर, कोटा तथा पनकी को उर्वकर उत्पादन के लिए नेप्था और पानीपत नॉगल तथा भटिंडा उर्वरक कारखानों को फीड स्ट के रूप में हैवी पैट्रोलियम भी प्रदान करती है। मथुरा रिफाइनरी घरेलू काम में आने वाली एल॰ पी॰ जी॰ के उत्तरी क्षेत्र की 30 प्रतिशत से अधिक माँग को पूरा कर रही है तथा 87 स्थानों पर 155 इण्डेन डिस्ट्र्व्यूटरों की मार्फत एल॰ पी॰ जी॰ उपभोक्ताओं तह पहुँचाने के लिए सप्लाई कर रही है।


कृषि की दृष्टि से हरियाणा एक समृद्ध राज्य है और यह केंद्रीय भंडार (अतिरिक्त खाद्यान्न की राष्ट्रीय संग्रहण प्रणाली) में बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल देता है। कपास, राई, सरसों, बाजरा, चना, गन्ना, ज्वार, मक्का और आलू अन्य प्रमुख फ़सलें हैं, राज्य की कृषि प्रधानता ने हरित क्रांति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसके अंतर्गत सिंचाई उर्वरक और उच्च गुणवत्ता के बिजों में बड़े पैमाने पर निवेश शामिल है। हरियाणा के कुल श्रम बल का लगभग 58 प्रतिशत कृषि में संलग्न है।
==क्षमता विस्तार==
पैट्रोलियम जीवन के हर क्षेत्र में आज हमारी बाध्यता बनने जा रहे हैं और उनकी माँग लगातार बढ़ती जा रही है। इस बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए कुछ घरेलू तकनीली परिवर्तन करके रिफाइनरी की वर्तमान की वर्तमान क्षमता 60 लाख टन प्रतिवर्ष से बढ़ाकर 75 लाख टन प्रतिवर्ष की जा रही है।


हरियाणा ने कृषि आधारित और निर्माण उद्योगों में उल्लेखनीय प्रगति की है। इनमें प्रमुख हैं, कपास और चीनी प्रसंस्करण, कृषि उपकरण, रसायन और अनेक प्रकार की उपभोक्ता वस्तुएं, जिनमें साइकिल उल्लेखनीय है। प्रमुख राजमार्ग और रेलवे लाइनें हरियाणा से होकर गुज़रती हैं और दिल्ली से मिलती हैं, इस वजह से यह प्रदेश औद्योगिक और वाणिज्यक विकास का गलियारा बन गया है, ख़ासकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से जुड़े राज्य के हिस्सों के लिए। यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य में कुछ औद्योगिक निवेश पंजाबी उद्यमियों ने किया है, जिसका मानना है कि पंजाब के बजाय हरियाणा में निवेश करना अधिक सुरक्षित और लाभदायक है (क्योंकि दिल्ली के बाज़ार से यह नज़दीक है)।
==रिफाइनरी तकनीक में एक नए युग==
मथुरा रिफाइनरी में वायु द्वारा संचालित संप्रेक्षण तथा परिमति पर आधारित नियंत्रण व्यव्स्था अपनाई गई यद्यपि यह तकनीक सर्वाधिक सुरक्षित है किन्तु उन्नत नियंत्रण कौशल व आधुनिकतम तकनीक अपनाने की इस व्यव्स्था की अपनी सीमाएँ हैं। इसी संन्दर्भ में रिफाइनरी आधुनिकतम तकनीकी डिस्ट्रीब्यूटेड डिजीटल कन्ट्रोल सिस्टम को मथुरा रिफाइनरी में शुरू किया गया है। प्रथम चरण में एटमास्फिरक बैक्यूम यूनिट, विस्ब्रेकर यूनिट तथा मेरावस यूनिट का नियंत्रण इसके तहत हाथ में लिया गया है तथा भविष्य में अन्य यूनिटें भी इस प्रणाली के अन्तगंत ली जायेगी। डिस्ट्रोव्यूटेड डिजीटल कन्ट्रोक सिस्टम रिफाइनरी तकनीक में एक नए युग की शुरूआत है।


==प्रशासन एवं सामाजिक विशेषताएं==
==पर्यावरण संरक्षण==
===प्रशासन===
मथुरा रिफाइनरी विश्व के आचर्य [[ताजमहल]], [[सिकन्दरा]] व अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों व भरतपुर पक्षी बिहार जैसे महत्वपूर्ण स्थानों से घिरी हुई है। इन स्थानों से मथुरा रिफाइनरी की निकटता के कारण मथुरा रिफाइनरी प्रबन्धन ने प्रारम्भ से ही पर्यायरण के सरक्षण को सर्वाधिक प्राथमिकता दी है। कारखाने के शुरू होने से प्रदूषण न बढ़े इसलिए पर्यावरण संरक्षन कार्यों पर 10 करोड़ रुपये खर्च किये गये। इस दिखा में विस्तृत प्रबन्ध किए गये।
#मथुरा रिफाइनरी से आगरा के बीच [[फरह]], [[कीठम]] व सिकन्दरा तथा [[भरतपूर]] में स्थित वायू की स्थिति व प्रदूषण स्तर नापने के लिए चार केन्द्र (एयर मानीटरिंग स्टेशन) रिफाइनरी शुरू होने से पहले ही स्थापित किए गये।
#अधिक ऊँची चिमनियाँ (80-120 मीटर ) लगाई गई ताकि उनसे उत्सर्जित गैसें अच्छी तरह ऊपर चले जाएँ तथा बहतर ढंग से छितराया जा सके।
#दो सल्फर रिकवरी यूनिटों की स्थापना ताकि ईधब गैसों से सल्फर निकाला जा सके।
#आधुनिकतम उपकरण जो चिमनियों से निकलने वाली गैसों की निरन्तर निगरानी जा सके, प्रदान किए गये।
#भट्टियों (फरनेस) में केवल कम सल्फर वाले ईधन का उपयोग।
#एक चलती फिरती सुसज्जित गाड़ी (एयर मानीटरिंग वेन) वायु स्थिति व प्रदूषण की जाँच के लिये।


भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के लिए उसे मंत्रिपरिषद से सहायता और सलाह मिलती है, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति जवाबदेह होती है।  
वायु की गुणबत्ता सम्बन्धी आँकड़े यही दर्शाते हैं कि रिफाइनरी के बनने के बाद सह यहाँ के पर्यावरण पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा है बल्कि सरकार व जन सामान्य को पहले से कही अधिक जागरुकता पर्यावरण संरक्षण के प्रति जाग्रत हुई है।


विधानसभा का चुनाव सामान्यतः पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए होते है। हरियाणा और पंजाब के लिए एक उच्च न्यायालय है। राज्य 19 ज़िलों में बंटा हुआ है : अंबाला, भिवानी, फ़रीदाबाद, फ़तेहाबाद , गुड़गांव, हिसार, झज्जर, जींद, कैथल, करनल, कुरुक्षेत्र, महेंद्रगढ़, पंचकुला, पानीपत, रिवाड़ी, रोहतक, सिस्सा सोनीपत और यमुनानगर। पंचायती राज (ग्रामीण स्वशासन) का विस्तार सभी गांवों तक हो चुका है।
यही नहीं, कारखाने से निकलने वाले बेकार गन्दे पानी बहिःस्बाव जल के उपचार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ साधनों, उपकरणों व प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। यह निस्सारी (एफ्ल्यूएन्ट) जल तीन चरणों में साथ किया जाता है। प्रथम चरण में भौतिक प्रक्रिया के अन्तर्गत इस जल को ए॰ पी॰ आई॰ सैपरेटर द्वारा किया जाता है। रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा सल्फाइड अलग किए जाते हैं। दूसरे चरण में ट्रिकिंलिंग फिल्टर व एरेटर द्वारा जैव विज्ञानी प्रक्रिया से जल साफ किया जाता है। तीसरे चरण में इस पानी को “पालशिग पीन्ड” में कुछ दिन रखा जाता है जिससे इसमें उपस्थित आर्गोनिक तत्वों का आवसीकरण हो सके और पानी पूर्णतः स्वच्छ हो जाये। इसी पानी की निकासी बरारी शिंचाई नहर में की जाती है और इसका उपयोग करके आस-पास के कृषक अपने खेतों को हरा कर रहे हैं-खुशहाल से रहे हैं।


===शिक्षा एवं जन-कल्याण===
इस बहिःस्त्राव जल की निकासी से पूर्व कड़ी जाँच की जाती है तथा इस जल की गुणवत्ता से संतुष्ट होकर ही इस जल की जाती है। जल की उत्कृष्टता को रिफाइनरी प्रारम्भ होने के बाद से लगातार बनाए रखा जा रहा है तथा इसकी गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से भी बेहतर है।


पंजाब की तरहा हरियाणा में भी विद्यालय और महाविद्यालय, दोनों स्तरों पर शिक्षा को बढ़ावा देने में सरकार की भूमिका के अलावा निजी संस्थानों ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। राज्य के विकास कार्यक्रमों में शिक्षा को उच्च प्राथमिकता दी गई है। कला एवं विज्ञान महाविद्यालयों की संख्या 1966-67 में 40 से बढ़कर 1997-98 में 140 हो गई, इस अवधि में उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालियों की संख्या  597 से 3,517; माध्यमिक बुनियादी पाठशलाएं 735 से 1,718 और प्राथामिकता बुनियादी पाठशालाओं की संख्या 4,447 से 10,134 हो गई। विभिन्न स्तरों के ये संस्थान राज्य के 6,759 गांवों और 94 कस्वों में स्थित हैं। इनके अलावा हरियाणा में अब चार विशविद्यालय है : कुरुक्षेत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, रोहतक में महर्षि दयानंद  विश्वविद्यालय, हिसार में गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय और विख्यात पशुपालन विज्ञान महाविद्यालय सहित हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, इसके अलावा, राज्य में डेयरी के सभी उत्पादों के विजास के लिए करनाल में राष्ट्रीय डेयरी शोध संस्थान की स्थापना की गई। शिक्षा के विकास में हरियाणा का स्थान भारत के उत्तरी राज्य पंजाब, मध्य और कुछ पश्चिमी राज्यों में केवल पंजाब के बाद आता है, लेकिन दक्षिणी राज्यों से काफ़ी पीछे रहता है। 1991 तक स्थापिक विभिन्न स्तरों के संस्थानों की संख्या को देखते हुए शिक्षा कार्यक्रमों से लाभान्वित हो रही जनसंख्या का प्रतिशत कम है। 2001 की जनगणना के अनुसार, जनसंख्या का 68.59 प्रतिशत साक्षर है (राष्ट्रीय औसत 65.38 प्रतिशत है)। पिछले दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला साक्षरता के मामले में हरियाणा ने काफ़ी लंबा सफ़र तय किया है (2001 में 56.31 प्रतिशक जबकि 1991 में 32.5 प्रतिशक)। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए (सामान्य तथा तकनीकी) सरकार द्वारा सभी स्तरों पर सहायता दी जाती है। राज्य में विभिन्न नौकरियों और शिक्षा पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जाति वर्ग के सदस्यों को कृषि, उद्योग, व्यापार और स्वरोज़गारपरक गतिविधियों के लिए ॠण व अनुदान भी उपलब्ध कराती है। उदाहरण के लिए, 1997-98 में इस उद्देश्य से लगभग 24 करोड रुपए खर्च किए गए।
मथुरा रिफाइनरी द्वारा [[अलीगढ़]] मुस्लिम विश्वविद्यालय के सहयोग से “प्रयोगात्मक कृषि फार्म परियोजना” शुरू की गई। इस परियोजना के तहत अध्ययन सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आर॰ एच॰ सिद्दीकी व डा॰ सैनी तथा वनस्पतिशास्त्र के डा॰ समीउल्लाह के निर्देशों में किया जा रहा है जिसका उद्देश्य रिफाइनरी के बहिःस्त्राव जल से इस क्षेत्र में होने वाली विभिन्न फसलों का अध्ययन करना है इसमें बहिःस्त्राव के मिट्टी के अलावा फसलों में वृद्धि गुणवत्ता व उत्पादन पर असर का भी अध्यय किया गया। प्रथम चरण में यह अध्ययन तीन वर्ष के लिए था। मथुरा रिफाइनरी की भूमि पर बरारी पम्प हाउस के नजदीक 12 मीटर*40 मिटर के क्षेत्र में यह प्रगोगात्मक फार्म विकसित किया गया।


राज्य में जिला और उपखंड अस्पतालों व प्राथमिक स्वास्थय केंद्रों का संजाल है और 1966 के बाद से इनकी संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है, किंतु इनकी गुणवत्ता अपेक्षित स्तर की नहीं है। उल्लेखनीय है कि 1992 से राज्य से सभी गांवों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है।
==ग्रामीण विकास कार्य==
हरियाणा में लगभग 22,800 किमी लंबी पक्की सड़कें है, राज्य के लगभग सभी गांव पक्की सड़कों से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सरकारी स्वामित्व वाला हरियाणा राज्य परिवहन स्थानीय और अंतर्राज्यीय यात्री बसें संचालित करता है। इस प्रणाली के अंतर्गत 1997-98 में दैनिक यात्रियों की संख्या 13,86,326 थी।
मथुरा रिफाइनरी सही मायने में ब्रज क्षेत्र के लिए सामाजिक आर्थिक परिवर्तन का यन्त्र बन गई। इसने इस पूरे क्षेत्र में एक नई सम्पन्नता का संचार किया है तथा इसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी को लाभ हुआ। मथुरा रिफाइनरी ने अपने आस-पास के गाँववासियों की मदद करने तथा उनके सामाजिक आर्थिक विकास और कल्याण के भी अनेक कार्य हाथ में लिए हैं। ग्रामीण विकास की ये गतिविधियों कोयला अलीपुर, भैसा राँची वाँगर, छँड़गाव तथा धानातेजा गाँवों में शुरू की गई।


===सांस्कृतिक जीवन===
इनके अन्तर्गत गाँवों की सड़कें व खरंजा बनवाने, पीने का पनी के सुलभ कराने तथा स्कूल भवन के निर्माण आदि के कार्य भी हाथ में लिए गये।
बच्चों को शिक्षा तथा महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण के लिए सुविधाएँ दी गैइ हैं। रिफाइनरी द्वारा एक चिकित्सा वाहन की व्यवस्था भी की गई है जिसके तहत डाक्टर इन गाँवों में जाकर अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं।


हरियाणा के सांस्कृतिक जीवन में राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था के विभिन्न अवसरों की लय प्रतिबिंबित होती है और इसमें प्राचीन भारत की परंपराओं व लोककथाओं का भंडार है। हरियाणा की एक विशिष्ट बोली है और उसमें स्थानीय मुहावरों का प्रचलन है। स्थानीय लोकगीत और नृत्य अपने आकर्षक अंदाज़ में राज्य के सांस्कृतिक जीवन को प्रदर्शित करतें हैं। ये ओज से भरे हैं और स्थानीय संस्कृति की विनोदप्रियता से जुड़े हैं। वसंत ॠतु में मौजमस्ती से भरे होली के त्योहार में लोग एक-दूसरे पर गुलाल उड़ाकर और गीला रंग डालकर मनाते हैं, इसमें उम्र या सामाजिक हैसियत का कोई भेद नहीं होता। भगवान कृष्ण के जन्मदिन, जन्माष्टमी का हरियाणा में विशिष्ट धार्मिक महत्त्व है, क्योंकि कुरुक्षेत्र ही वह रणभूमि थी, जहां कृष्ण ने योद्धा अर्जुन को भगवद्गीता (महाभारत का एक हिस्सा) का उपदेश दिया था।
==मानसी गंगा की सफाई==
मथुरा रिफाइनरी ब्रज क्षेत्र की साँस्कृतक धरोवर की सुरक्षा के प्रति भी पूर्ण जागरूक है। [[मानसी गंगा]], [[गोवर्धन]] में स्थित एक पवित्र सरोवर है जिसके बारे में मान्यता है कि उसकी भगवान श्रीकृष्ण ने स्वंय रचना की थी। इस पवित्र सरोवर की सफाई के लिए मथुरा रिफाइनरी द्वारा 10 लाख रुपये का अनुदान दिया गया।


सूर्यग्रहण पर पवित्र स्नान के लिए देश भर से लाखों श्रद्धालु कुरुक्षेत्र आते हैं। अग्रोह (हिसार के निकट) और पेहोवा सहित राज्य में अनेक प्राचीन तीर्थस्थल हैं। अग्रोहा अग्रसेन के रूप में जाना जाता है, जो अग्रवाल समुदाय और उसकी उपजातियों के प्रमुख पूर्वज या प्रवर्तक माने जाते हैं। इसलिए अग्रोहा समूचे अग्रवाल समुदाय की जन्मभूमि है। भारत के व्यापारी वर्गों में प्रमुख यह समुदाय अब देश में फैल गया। अग्रसेन की जन्मभूमि के सम्मानस्वरूप इस समुदाय ने कुछ वर्ष पहले अग्रोहा में एक चिकित्सा विद्यालय की स्थापना की। पवित्र नदी सरस्वती (वेदों के अनुसार ज्ञान और कला की देवी) के किनारे स्थित पेहोवा को पूर्वजों के श्राद्ध पिंडदान के लिए एक महत्त्वपूर्ण पवित्र स्थान माना जाता है। अप्राकृतिक या प्राकृतिक, दोनों तरह की आत्मा की शांति के लिए पेहोवा में धार्मिक क्रियाएं की जाती हैं। विभिन्न देवताओं और संतों की स्मृति में आयोजित होने वाले मेले हरियाणा की संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। अनेक स्थानों पर पशु मेले भी आयोजित किए जाते हैं। यह क्षेत्र अच्छे नस्ल के दुधारू पशुओं, ख़ासकर भैंसों और खेति के काम में आने वाले पशुओं और संकरित पशुओं के लिए भी जाना जाता है।
==प्रगति और विकास की उत्प्रेरक==
 
मथुरा रिफाइनरी के निर्माण के बाद प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ब्रज क्षेत्र को लाभ हुआ तथा विकास को एक नई दिशा मिली। जहाँ लोगों को रिफाइनरी व उससे सम्बन्द्ध अन्य उपक्रमों में रोजगार के अवसर सुलभ हुए वहीं अनेक उद्यमियों, व्यापारियों, ठेकेदारों को पनपनें का मौका मिला।
हरियाणा की हवेलियां (पारंपरिक पारिवारिक आवास) वास्तुशिल्प की सुंदरता, ख़ासकर उनके द्वारों की संरचना, के लिए जानी जाती हैं। इन हवेलियों के द्वारों का अभिकल्पन और हस्तकौशल ही विविध नहीं, बल्कि इन पर्व विभिन्न विषयों की श्रृंखला भी विस्मयकारी है। ये हवेलियां हरियाणा की गलियों को मध्ययुगीन स्वरूप और सुंदरता प्रदान करती है। इन भवनों में अनेक चबूतरे होते हैं, जो रिहायशी, सुरक्षा, धार्मिक और अदालती कार्यों के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। इन भवनों से इनके स्वामियों की सामाजिक स्थिति का संकेत मिलता है। इन चबूतरों पर उकेरी हुई कलाकृतियां इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाती है।
 
==इतिहास==
 
अब हरियाणा के रूप में जाना जाने वाला क्षेत्र (उत्तर वैदिक युग, लगभग 800-500 ई.पू. का मध्यमा देश, यानी मध्य क्षेत्र)- हिंदू धर्म का जन्मस्थल माना जाता है। यह उस क्षेत्र में है, जहां आर्यों का पहला स्तोत्र गाया गया था और सर्वाधिक प्राचीन पांडुलिपियां लिखी गई थीं।
 
पश्चिमोत्तर और मध्य एशियाई क्षेत्रों से हुई घुसपैठों के रास्तें में पड़ने वाले हरियाणा को सिकंदर महान (326 ई.पू.) के समय से अनेक सेनाओं के हमलों का सामना करना पड़ा है। यह भारतीय इतिहास की अनेक निर्णायक लड़ाईयों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। इनमें पानीपत की लड़ाइयां, 1526 (जब मुग़ल बादशाह बाबर ने इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुग़ल साम्राज्य की नींव डाली), 1556 (जब अफ़ग़ानी सेना मुग़ल शहंशाह अकबर की सेना से पराजित हुई) और 1761 (जब अहमद शाह अब्दाली ने मरठा सेना को निर्णायक शिकस्त देकर भारत में ब्रिटिश हुकूमत का रास्ता साफ़ कत दिया), 1739 में करनाल की लड़ाई (जब फ़ारस के नदिर शाह ने ध्वस्त होते मुग़ल साम्राज्य को ज़ोरदार शिकस्त दी) शामिल हैं, वर्तमान हरियाणा राज्य में आने वाला क्षेत्र 1803 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया था। 1832 में यह तत्कालीन पश्चिमोत्तर प्रांत को हस्तांतरिक कर दिया गया और 1858 में यह क्षेत्र पंजाब का हिस्सा बन गया। 1947 में भारत के विभाजन के बाद तक इसकी यही स्थिती बनी रही, हालांकि अलग हरियाणा राज्य की मांग 1907 में भारत की आज़ादी के काफ़ी पहले से ही उठने लगी थी। राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता लाला लाजपत राय और आसफ़ अली ने पृथक हरियाणा राज्य का समर्थन किया था। स्वतंत्रता के पूर्व एवं बाद में पंजाब का एक हिस्सा होने के बावजूद इसे विशिष्ट सांस्कृतिक और भाषाई इकाई माना जाता था, हालांकि सामाजिक-आर्थिक रूप से यह पिछड़ा क्षेत्र था। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्रीराम शर्मा की अध्यक्षता में बनी हरियाणा विकास समिति ने एक स्वायत्त राज्य की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित किया था। 1960 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पंजाब के पंजाबीभाषी सिक्खों और दक्षिण में हरियाणा क्षेत्र के हिंदीभाषी हिंदुओं द्वारा भाषाई आधार पर राज्यों की स्थापना की मांग ज़ोर पकड़ने लगी थी, लेकिन सिक्खों द्वारा पंजाबीभाषी राज्य की ज़ोरदार मांग के करण ही इस मुद्दे को बल मिला। 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के पारित होने के साथ ही पंजाब के साथ-साथ हरियाणा भी भारत का एक पृथक राज्य बन गया। सामाजिक और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से छोटे से राज्यों के गठन का प्रयोग सफल साबित हुआ है, बशर्ते उन्हें सबल और योग्य नेतृत्व मिले, जैसा कि इन दो राज्यों ने सिद्ध किया है। जनसंख्या (2001) राज्य कुल 2,10,82,989; ग्रामीण 1,49,68,850; शहरी 61,14,139.

06:02, 4 मई 2010 का अवतरण

पं॰ नेहरू के स्वप्न : मथुरा रिफाइनरी

आज के युग में पैट्रोलियम पदार्थों का महत्व सतत रूप से बढ़ता जा रहा है। चाहे कृषि का क्षेत्र हो या उद्योग, देश की सीमाओं की सुरक्षा का सवाल हो या घर की रसोई, यातायात के साधन हों अथवा गाँव के लालटेन की रोशनी हर जगह पैट्रोलियम पदार्थ महत्वपूर्ण है। इन्ही पैट्रोलियम पदार्थों को देश के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों की आवश्यक्ता पूर्ति के लिए भगवान कृष्ण की इस कर्मभूमि में 60 लाख टन प्रतिवर्ष कच्चा तेल साफ करने वाली देश की अत्याधुनिक रिफाइनरी की स्थापना की गई। हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री पं॰ जवाहरलाल नेहरू ने इन्हीं कारखानों को आधुनिक मन्दिर की संज्ञा दी थी।

कच्चे तेल का शोधन

रिफाइनरी द्वारा 50 प्रतिशत बाम्बे हाई तथा 50 प्रतिशत कच्चे तेल का शोधन किया जाता है। आयातित तथा बाम्बे हाई दोनों कच्चे तेल सलाया से मथुरा रिफाइनरी 1085 मिलोमीटर लम्बी पाइपलाइन के जरिए लाया जाता है। पैट्रोलियम पदार्थों को देश के विभिन्न भागों में टेंकरों तथा रेल वैगनों से भेजने के अलावा दिल्ली, जालन्धरअम्बाला 513 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन के जरिए भेजा जाता है।

इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन

देश की 12वीं तथा इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की इस छटी रिफाइनरी में तेल शोधन की आधुनिकतम तकनीक का उपयोग किया गया है। मथुरा रिफाइनरी के निर्माण में देशीय क्षमताओं का अधिकतम उपयोग किया गया है। इस रिफाइनरी के लिए एक भारतीय कम्पनी ने (मैसर्स इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड) एक प्रमुख सलाहकार तथा तकनीकी ठेकेदार के रूप में काम किया। रिफाइनरी में निर्माण कार्य पूर्णतः भाकतीय ठेकेदारों द्वारा किया गया। सयंत्रों और उपकरणों की सप्लाई भी मुख्यतया भारतीय स्त्रोतों के द्वारा ही की गई। रिफाइनरी द्वारा उत्पादित मुख्य पैट्रोलियम पदार्थ है घरेलू काम में आने वाली एल॰ पी॰ जी॰, फ्यूल गैस, नैप्था, कैरोसिन, एवीएशन टरवाइन फ्यूल, हाई स्पीड डीजल, लाइट ऑयल, फ्यूल ऑयल, बिटूमिन तथा सल्फर। यहाँ से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान को पैट्रोलियम पदार्थ भेजे जाते हैं।

प्रतिवर्ष की क्षमता

मथुरा रिफाइनरी विगत 5 वर्षों से अपनी 60 लाख टन प्रतिवर्ष की क्षमता से अधिक कच्चे तेल का शोधन कर पश्चिमी प्रान्तों में पैट्रोलियम पदार्थों की उपलब्धता बेहतर बनाने के लिए लगतार प्रयत्नशील है। मथुरा रिफाइनरी ने वर्ष 1988-89 के दौरान 60.56 लाख टन कच्चे तेल का शोधन किया कीर्तिमान है। इससे पूर्व वर्ष 1987-88 में रिफाइनरी ने 65.53 लाख टन तेल का शोधन किया।

रिफाइनरी के लिए वर्ष 1988-89 का मार्च महा उपलब्धियों से परिपूर्ण रहा जिसके दौरान 7325 हजार मैट्रिक टन तेल शोधन किया गया जो कि एक माह में तेल शोधन का कीर्तिमान है। मार्च के दौरान, एक माह में औसत ब्रॉड गैज रेल बैगन भी 558 की कितिमान संख्या में भरे गये। मथुरा रिफाइनरी की द्वितीय इकाई फ्ल्यूड कैटेलिटिक क्रोकिंग यूनिट ने भी वर्ष 1988-89 के दौरान 1073 मिलियन मैट्रिक का थ्रू पूट अर्जित किया जो कि निर्धारित क्षनता का 107.3 प्रतिशत है।

पैट्रोलियम पदार्थ

मथुरा रिफाइनरी में इस वर्ष पैट्रोलियम हाई स्पीड डीजल, लाइट डीजल ऑयल तथा बिटूमन का कीर्तिम्पन उत्पादन किया। इसके अलावा, पैट्रोल, हाई स्पीड डीजल, लाइट डीजल ऑयल, रैजीडुअल फ्यूल ऑयल तथा सल्फर कीर्तिमान मात्रा में रिफाइनरी से भेजे गये।

मथुरा रिफाइनरी को कच्चा तेल उपलब्ध करने वाली सलाया मथुरा पाइप लाइन ने 657 मिलियन मैट्रिक टन तेल प्राप्त किया, यह भी एक नया कीतिमान है। इस प्रकार, दिल्ली, जालन्धर, अम्बाला को पैट्रोलियम पदार्थ भेजने वाली 513 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन के मथुरा टर्मिनल के 3.2 मिलियन मैट्रिक टन पैट्रोलियम पदार्थ प्रेषित कर 1987-88 के 3.00 मिलियन मैट्रिक टन के कीर्तिमान को बेहतर किया है।

विभिन्न क्षेत्रों को परम्परागत पैट्रोलियम पदार्थ की सप्लाई करने के अतिरिक्त मथुरा रिफाइनरी फूलपुर, कोटा तथा पनकी को उर्वकर उत्पादन के लिए नेप्था और पानीपत नॉगल तथा भटिंडा उर्वरक कारखानों को फीड स्ट के रूप में हैवी पैट्रोलियम भी प्रदान करती है। मथुरा रिफाइनरी घरेलू काम में आने वाली एल॰ पी॰ जी॰ के उत्तरी क्षेत्र की 30 प्रतिशत से अधिक माँग को पूरा कर रही है तथा 87 स्थानों पर 155 इण्डेन डिस्ट्र्व्यूटरों की मार्फत एल॰ पी॰ जी॰ उपभोक्ताओं तह पहुँचाने के लिए सप्लाई कर रही है।

क्षमता विस्तार

पैट्रोलियम जीवन के हर क्षेत्र में आज हमारी बाध्यता बनने जा रहे हैं और उनकी माँग लगातार बढ़ती जा रही है। इस बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए कुछ घरेलू तकनीली परिवर्तन करके रिफाइनरी की वर्तमान की वर्तमान क्षमता 60 लाख टन प्रतिवर्ष से बढ़ाकर 75 लाख टन प्रतिवर्ष की जा रही है।

रिफाइनरी तकनीक में एक नए युग

मथुरा रिफाइनरी में वायु द्वारा संचालित संप्रेक्षण तथा परिमति पर आधारित नियंत्रण व्यव्स्था अपनाई गई यद्यपि यह तकनीक सर्वाधिक सुरक्षित है किन्तु उन्नत नियंत्रण कौशल व आधुनिकतम तकनीक अपनाने की इस व्यव्स्था की अपनी सीमाएँ हैं। इसी संन्दर्भ में रिफाइनरी आधुनिकतम तकनीकी डिस्ट्रीब्यूटेड डिजीटल कन्ट्रोल सिस्टम को मथुरा रिफाइनरी में शुरू किया गया है। प्रथम चरण में एटमास्फिरक बैक्यूम यूनिट, विस्ब्रेकर यूनिट तथा मेरावस यूनिट का नियंत्रण इसके तहत हाथ में लिया गया है तथा भविष्य में अन्य यूनिटें भी इस प्रणाली के अन्तगंत ली जायेगी। डिस्ट्रोव्यूटेड डिजीटल कन्ट्रोक सिस्टम रिफाइनरी तकनीक में एक नए युग की शुरूआत है।

पर्यावरण संरक्षण

मथुरा रिफाइनरी विश्व के आचर्य ताजमहल, सिकन्दरा व अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों व भरतपुर पक्षी बिहार जैसे महत्वपूर्ण स्थानों से घिरी हुई है। इन स्थानों से मथुरा रिफाइनरी की निकटता के कारण मथुरा रिफाइनरी प्रबन्धन ने प्रारम्भ से ही पर्यायरण के सरक्षण को सर्वाधिक प्राथमिकता दी है। कारखाने के शुरू होने से प्रदूषण न बढ़े इसलिए पर्यावरण संरक्षन कार्यों पर 10 करोड़ रुपये खर्च किये गये। इस दिखा में विस्तृत प्रबन्ध किए गये।

  1. मथुरा रिफाइनरी से आगरा के बीच फरह, कीठम व सिकन्दरा तथा भरतपूर में स्थित वायू की स्थिति व प्रदूषण स्तर नापने के लिए चार केन्द्र (एयर मानीटरिंग स्टेशन) रिफाइनरी शुरू होने से पहले ही स्थापित किए गये।
  2. अधिक ऊँची चिमनियाँ (80-120 मीटर ) लगाई गई ताकि उनसे उत्सर्जित गैसें अच्छी तरह ऊपर चले जाएँ तथा बहतर ढंग से छितराया जा सके।
  3. दो सल्फर रिकवरी यूनिटों की स्थापना ताकि ईधब गैसों से सल्फर निकाला जा सके।
  4. आधुनिकतम उपकरण जो चिमनियों से निकलने वाली गैसों की निरन्तर निगरानी जा सके, प्रदान किए गये।
  5. भट्टियों (फरनेस) में केवल कम सल्फर वाले ईधन का उपयोग।
  6. एक चलती फिरती सुसज्जित गाड़ी (एयर मानीटरिंग वेन) वायु स्थिति व प्रदूषण की जाँच के लिये।

वायु की गुणबत्ता सम्बन्धी आँकड़े यही दर्शाते हैं कि रिफाइनरी के बनने के बाद सह यहाँ के पर्यावरण पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा है बल्कि सरकार व जन सामान्य को पहले से कही अधिक जागरुकता पर्यावरण संरक्षण के प्रति जाग्रत हुई है।

यही नहीं, कारखाने से निकलने वाले बेकार गन्दे पानी बहिःस्बाव जल के उपचार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ साधनों, उपकरणों व प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। यह निस्सारी (एफ्ल्यूएन्ट) जल तीन चरणों में साथ किया जाता है। प्रथम चरण में भौतिक प्रक्रिया के अन्तर्गत इस जल को ए॰ पी॰ आई॰ सैपरेटर द्वारा किया जाता है। रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा सल्फाइड अलग किए जाते हैं। दूसरे चरण में ट्रिकिंलिंग फिल्टर व एरेटर द्वारा जैव विज्ञानी प्रक्रिया से जल साफ किया जाता है। तीसरे चरण में इस पानी को “पालशिग पीन्ड” में कुछ दिन रखा जाता है जिससे इसमें उपस्थित आर्गोनिक तत्वों का आवसीकरण हो सके और पानी पूर्णतः स्वच्छ हो जाये। इसी पानी की निकासी बरारी शिंचाई नहर में की जाती है और इसका उपयोग करके आस-पास के कृषक अपने खेतों को हरा कर रहे हैं-खुशहाल से रहे हैं।

इस बहिःस्त्राव जल की निकासी से पूर्व कड़ी जाँच की जाती है तथा इस जल की गुणवत्ता से संतुष्ट होकर ही इस जल की जाती है। जल की उत्कृष्टता को रिफाइनरी प्रारम्भ होने के बाद से लगातार बनाए रखा जा रहा है तथा इसकी गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से भी बेहतर है।

मथुरा रिफाइनरी द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सहयोग से “प्रयोगात्मक कृषि फार्म परियोजना” शुरू की गई। इस परियोजना के तहत अध्ययन सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आर॰ एच॰ सिद्दीकी व डा॰ सैनी तथा वनस्पतिशास्त्र के डा॰ समीउल्लाह के निर्देशों में किया जा रहा है जिसका उद्देश्य रिफाइनरी के बहिःस्त्राव जल से इस क्षेत्र में होने वाली विभिन्न फसलों का अध्ययन करना है इसमें बहिःस्त्राव के मिट्टी के अलावा फसलों में वृद्धि गुणवत्ता व उत्पादन पर असर का भी अध्यय किया गया। प्रथम चरण में यह अध्ययन तीन वर्ष के लिए था। मथुरा रिफाइनरी की भूमि पर बरारी पम्प हाउस के नजदीक 12 मीटर*40 मिटर के क्षेत्र में यह प्रगोगात्मक फार्म विकसित किया गया।

ग्रामीण विकास कार्य

मथुरा रिफाइनरी सही मायने में ब्रज क्षेत्र के लिए सामाजिक आर्थिक परिवर्तन का यन्त्र बन गई। इसने इस पूरे क्षेत्र में एक नई सम्पन्नता का संचार किया है तथा इसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी को लाभ हुआ। मथुरा रिफाइनरी ने अपने आस-पास के गाँववासियों की मदद करने तथा उनके सामाजिक आर्थिक विकास और कल्याण के भी अनेक कार्य हाथ में लिए हैं। ग्रामीण विकास की ये गतिविधियों कोयला अलीपुर, भैसा राँची वाँगर, छँड़गाव तथा धानातेजा गाँवों में शुरू की गई।

इनके अन्तर्गत गाँवों की सड़कें व खरंजा बनवाने, पीने का पनी के सुलभ कराने तथा स्कूल भवन के निर्माण आदि के कार्य भी हाथ में लिए गये। बच्चों को शिक्षा तथा महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण के लिए सुविधाएँ दी गैइ हैं। रिफाइनरी द्वारा एक चिकित्सा वाहन की व्यवस्था भी की गई है जिसके तहत डाक्टर इन गाँवों में जाकर अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं।

मानसी गंगा की सफाई

मथुरा रिफाइनरी ब्रज क्षेत्र की साँस्कृतक धरोवर की सुरक्षा के प्रति भी पूर्ण जागरूक है। मानसी गंगा, गोवर्धन में स्थित एक पवित्र सरोवर है जिसके बारे में मान्यता है कि उसकी भगवान श्रीकृष्ण ने स्वंय रचना की थी। इस पवित्र सरोवर की सफाई के लिए मथुरा रिफाइनरी द्वारा 10 लाख रुपये का अनुदान दिया गया।

प्रगति और विकास की उत्प्रेरक

मथुरा रिफाइनरी के निर्माण के बाद प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ब्रज क्षेत्र को लाभ हुआ तथा विकास को एक नई दिशा मिली। जहाँ लोगों को रिफाइनरी व उससे सम्बन्द्ध अन्य उपक्रमों में रोजगार के अवसर सुलभ हुए वहीं अनेक उद्यमियों, व्यापारियों, ठेकेदारों को पनपनें का मौका मिला।