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[[कर्णवेल]] कलचुरिनरेश राजा कर्ण देव (1041-1073) ने इस नगरी की नींव डाली थी-  
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ब्रह्मस्तंभोयेन कर्णावतीति प्रत्यष्ठापिक्ष्मातलब्रह्मलोक:<ref>(एपिग्राफिका इंडिका, जिल्द 2, पृ. 4, श्लोकार्ध 14)</ref>  
ब्रह्मस्तंभोयेन कर्णावतीति प्रत्यष्ठापिक्ष्मातलब्रह्मलोक:<ref>एपिग्राफिका इंडिका, जिल्द 2, पृ. 4, श्लोकार्ध 14)</ref>  


कर्णावती अब पूर्णत: खंडहर हो गया है और घने कंटीले जंगलों से ढका है। केवल दो-एक खंभे प्राचीन मंदिरों की कारीगरी के प्रतीक रूप में वर्तमान हैं। वैसे कर्णावती के प्राचीन दुर्ग के खंडहर दो मील तक फैले हुए हैं।  
कर्णावती अब पूर्णत: खंडहर हो गया है और घने कंटीले जंगलों से ढका है। केवल दो-एक खंभे प्राचीन मंदिरों की कारीगरी के प्रतीक रूप में वर्तमान हैं। वैसे कर्णावती के प्राचीन दुर्ग के खंडहर दो मील तक फैले हुए हैं।  

12:11, 27 जुलाई 2011 का अवतरण

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कर्णवेल कलचुरिनरेश राजा कर्ण देव (1041-1073) ने इस नगरी की नींव डाली थी- ब्रह्मस्तंभोयेन कर्णावतीति प्रत्यष्ठापिक्ष्मातलब्रह्मलोक:[1]

कर्णावती अब पूर्णत: खंडहर हो गया है और घने कंटीले जंगलों से ढका है। केवल दो-एक खंभे प्राचीन मंदिरों की कारीगरी के प्रतीक रूप में वर्तमान हैं। वैसे कर्णावती के प्राचीन दुर्ग के खंडहर दो मील तक फैले हुए हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एपिग्राफिका इंडिका, जिल्द 2, पृ. 4, श्लोकार्ध 14)

बाहरी कड़ियाँ

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