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|हिन्दी=ऐसा परिश्रम जिसका पुरस्कार न दिया जाता हो, फलित ज्योतिष के 11 करणों में से सातवाँ करण जिसे विष्टिभद्रा भी कहते हैं, एक प्रकार का पौराणिक व्रत। | |हिन्दी=ऐसा परिश्रम जिसका पुरस्कार न दिया जाता हो, फलित ज्योतिष के 11 करणों में से सातवाँ करण जिसे विष्टिभद्रा भी कहते हैं, एक प्रकार का पौराणिक व्रत। | ||
|व्याकरण= धातु। स्त्रीलिंग | |व्याकरण= धातु। स्त्रीलिंग | ||
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|पर्यायवाची= व्याप्ति, धन्धा, पेशा, बेगार, व्यवसाय, नरक-वास, भद्रा, प्रेषण, मज़दूरी। | |पर्यायवाची= व्याप्ति, धन्धा, पेशा, बेगार, व्यवसाय, नरक-वास, भद्रा, प्रेषण, मज़दूरी। |
12:45, 27 जुलाई 2011 का अवतरण
हिन्दी | ऐसा परिश्रम जिसका पुरस्कार न दिया जाता हो, फलित ज्योतिष के 11 करणों में से सातवाँ करण जिसे विष्टिभद्रा भी कहते हैं, एक प्रकार का पौराणिक व्रत। |
-व्याकरण | धातु। स्त्रीलिंग |
-उदाहरण | भुगतेंगे हम यह विष्टि-भार।[1] |
-विशेष | प्रत्येक मास की 30 तिथियों के 60 करणों में से 8 बार विष्टि/भद्रा होती है। कृष्ण पक्ष→ तृतीया/दशमी का उत्तरार्ध तथा सप्तमी/चतुर्दशी का पूर्वार्ध। शुक्ल पक्ष→चतुर्थी/एकादशी का उत्तरार्ध तथा अष्टमी/पूर्णिमा का पूर्वार्ध। |
-विलोम | |
-पर्यायवाची | व्याप्ति, धन्धा, पेशा, बेगार, व्यवसाय, नरक-वास, भद्रा, प्रेषण, मज़दूरी। |
संस्कृत | (विष् + क्तिन) |
अन्य ग्रंथ | |
संबंधित शब्द | विवर्ण, विवर्त |
संबंधित लेख |
अन्य शब्दों के अर्थ के लिए देखें शब्द संदर्भ कोश