"मेयो कॉलेज अजमेर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (श्रेणी:विश्वविद्यालय (को हटा दिया गया हैं।))
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
[[चित्र:Mayo-College-Ajmer.jpg|thumb|250px|मेयो कॉलेज, [[अजमेर]]]]
[[चित्र:Mayo-College-Ajmer.jpg|thumb|250px|मेयो कॉलेज, [[अजमेर]]]]
1870 ई. में [[अजमेर]] में एक विशेष दरबार आयोजित किया गया, जिसमें [[राजस्थान]] के प्रमुख राजा, महाराजाओं व सरदारों ने भाग लिया। इसमें [[लार्ड मेयो]] ने अजमेर में एक विशिष्ट कॉलेज की स्थापना की। लार्ड मेयो ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि [[अंग्रेज]] उनके हितैषी है, अत: उन्हें भी चाहिए कि वे [[ब्रिटिश साम्राज्य]] की अपनी योग्यतानुसार सेवा करें व अंग्रेजों के सरक्षण में ही सही दिशा में आगे बढ़े।
मेयो कॉलेज में एक सार्वजनिक विद्यालय है, जो [[भारत]] के [[राजस्थान]] राज्य के प्रमुख नगर [[अजमेर]] में स्थित है।
==स्थापना==
1870 ई. में [[अजमेर]] में एक विशेष दरबार आयोजित किया गया, जिसमें [[राजस्थान]] के प्रमुख राजा, महाराजाओं व सरदारों ने भाग लिया। इसमें [[लार्ड मेयो]] ने अजमेर में एक विशिष्ट कॉलेज की स्थापना की। लार्ड मेयो ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि [[अंग्रेज]] उनके हितैषी है, अत: उन्हें भी चाहिए कि वे [[ब्रिटिश साम्राज्य]] की अपनी योग्यतानुसार सेवा करें व अंग्रेजों के सरक्षण में ही सही दिशा में आगे बढ़े। [[राजपूत]] शासकों ने मेयो के कॉलेज खोलने के प्रस्ताव का स्वागत किया और उसके निर्माण के लिए यथा शक्ति आर्थिक सहयोग भी किया। अक्टूबर 1875 ई. में मेयो कॉलेज की स्थापना हुई और इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाला प्रथम छात्र अलवर नरेश मंगलसिंह था। 7 नवम्बर, 1885 ई. को डफरिन ने मेयो कॉलेज के मुख्य भवन का उद्घाटन किया। इस कॉलेज के प्रांगण में [[जयपुर]], [[जोधपुर]], [[उदयपुर]], [[कोटा]], [[भरतपुर]], [[बीकानेर]], झालावाड़, [[अलवर]] एवं [[टोंक]] आदि राज्यों के शासकों ने अपनी निजी छात्रावास बनवाये।<ref name="mca">{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj158.htm |title=राजस्थान में अंग्रेजी शिक्षा का विकास |accessmonthday=5 अगस्त |accessyear=2011 |last=तोन्गारिया |first=राहुल |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=
ignca.nic.in |language=हिन्दी }}</ref>
==उद्देश्य==
मेयो कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राजपूत राज्य के भावी शासकों में ब्रिटिश शासकों के प्रति स्वामी भक्ति तथा आज्ञाकारिता की भावना को दृढ़ करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को को विद्या, बुद्धि, तर्क शैली, रहन-सहन, खानपान तथा आचार-विचार आदि दृष्टि से अंग्रेज बनाने का प्रयत्न किया गया। उनमें अंग्रेज़ी राज एवं मान्यताओं के प्रति अगाध श्रृद्धा तथा भक्ति की भावना भरी जानी लगी। उन्हें [[भारतीय संस्कृति]] से भिन्न वातावरण में पोषित किया जाने लगा। फिर भी इसका पाठ्यक्रम सामान्य स्कूलों के पाठ्यक्रम से अधिक भिन्न नहीं था। यहाँ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नौकरी दिलवाना था। इसके विरुद्ध शासकों में असंतोष फैला, क्योंकि वे ऐसी शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। अत: 19वीं शताब्दी के अंत तक पाठ्यक्रम के विषय पर विवाद चलता रहा।


[[राजपूत]] शासकों ने मेयो के कॉलेज खोलने के प्रस्ताव का स्वागत किया और उसके निर्माण के लिए यथा शक्ति आर्थिक सहयोग भी किया। अक्टूबर 1875 ई. में मेयों कॉलेज की स्थापना हुई और इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाला प्रथम छात्र अलवर नरेश मंगलसिंह था।
मेयो कॉलेज के कारण [[अंग्रेज़]] अधिकारियों को राजपूत राज्यों के भावी शासकों के साथ घुलमिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त कॉलेज में आयोजित विभिन्न समारोह के अवसर भी प्रदान किया। कॉलेज की स्थापना के समय और उसके कुछ समय बाद मेयो कॉलेज की काफी प्रतिष्ठा थी, किन्तु धीरे-धीरे छात्रावासों का वातावरण दूषित होने के कारण कॉलेज की प्रतिष्ठा गिरने लगी।<ref name="mca"/>
 
7 नवम्बर, 1885 ई. को डफरिन ने मेयो कॉलेज के मुख्य भवन का उद्घाचन किया। इस कॉलेज के प्रांगण में [[जयपुर]], [[जोधपुर]], [[उदयपुर]], [[कोटा]], [[भरतपुर]], [[बीकानेर]], झालावाड़, [[अलवर]] एवं [[टोंक]] आदि राज्यों के शासकों ने अपनी निजी छात्रावास बनवाये।
 
मेयो कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राजपूत राज्य के भावी शासकों में ब्रिटिश शासकों के प्रति स्वामी भक्ति तथा आज्ञाकारिता की भावना को दृढ़ करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को को विद्या, बुद्धि, तर्क शैली, रहन-सहन, खानपान तथा आचार-विचार आदि दृष्टि से अंग्रेज बनाने का प्रयत्न किया गया। उनमें अंग्रेजी राज एवं मान्यताओं के प्रति अगाध श्रृद्धा तथा भक्ति की भावना भरी जानी लगी। उन्हें [[भारतीय संस्कृति]] से भिन्न वातावरण में पोषित किया जाने लगा। फिर भी इसका पाठ्यक्रम सामान्य स्कूलों के पाठ्यक्रम से अधिक भिन्न नहीं था। यहाँ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नौकरी दिलवाना था। इसके विरुद्ध शासकों में असंतोष फैला, क्योंकि वे ऐसी शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। अत: 19वीं शताब्दी के अंत तक पाठ्यक्रम के विषय पर विवाद चलता रहा।
 
मेयो कॉलेज के कारण अंग्रेज अधिकारियों को राजपूत राज्यों के भावी शासकों के साथ घुलमिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त कॉलेज में आयोजित विभिन्न समारोह के अवसर भी प्रदान किया। कॉलेज की स्थापना के समय और उसके कुछ समय बाद मेयो कॉलेज की काफी प्रतिष्ठा थी, किन्तु धीरे-धीरे छात्रावासों का वातावरण दूषित होने के कारण कॉलेज की प्रतिष्ठा गिरने लगी।<ref>{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj158.htm |title=राजस्थान में अंग्रेजी शिक्षा का विकास |accessmonthday=5 अगस्त |accessyear=2011 |last=तोन्गारिया |first=राहुल |authorlink= |format=एच.टी.एम |publisher=
राजस्थान |language=हिन्दी }}</ref>


{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 17: पंक्ति 14:
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.mayocollege.com/ आधिकारिक वेबसाइट]
==संबंधित लेख==
{{विश्वविद्यालय}}
[[Category:राजस्थान]]
[[Category:राजस्थान]]
[[Category:भारत में शिक्षा]]
[[Category:भारत में शिक्षा]]
[[Category:राजस्थान में शिक्षा]]
[[Category:राजस्थान में शिक्षा]]
[[Category:राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान]]
[[Category:भारत के शिक्षण संस्थान]]
[[Category:विद्यालय]]
[[Category:शिक्षा कोश]]
[[Category:शिक्षा कोश]]
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__

07:34, 6 अगस्त 2011 का अवतरण

मेयो कॉलेज, अजमेर

मेयो कॉलेज में एक सार्वजनिक विद्यालय है, जो भारत के राजस्थान राज्य के प्रमुख नगर अजमेर में स्थित है।

स्थापना

1870 ई. में अजमेर में एक विशेष दरबार आयोजित किया गया, जिसमें राजस्थान के प्रमुख राजा, महाराजाओं व सरदारों ने भाग लिया। इसमें लार्ड मेयो ने अजमेर में एक विशिष्ट कॉलेज की स्थापना की। लार्ड मेयो ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि अंग्रेज उनके हितैषी है, अत: उन्हें भी चाहिए कि वे ब्रिटिश साम्राज्य की अपनी योग्यतानुसार सेवा करें व अंग्रेजों के सरक्षण में ही सही दिशा में आगे बढ़े। राजपूत शासकों ने मेयो के कॉलेज खोलने के प्रस्ताव का स्वागत किया और उसके निर्माण के लिए यथा शक्ति आर्थिक सहयोग भी किया। अक्टूबर 1875 ई. में मेयो कॉलेज की स्थापना हुई और इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाला प्रथम छात्र अलवर नरेश मंगलसिंह था। 7 नवम्बर, 1885 ई. को डफरिन ने मेयो कॉलेज के मुख्य भवन का उद्घाटन किया। इस कॉलेज के प्रांगण में जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, भरतपुर, बीकानेर, झालावाड़, अलवर एवं टोंक आदि राज्यों के शासकों ने अपनी निजी छात्रावास बनवाये।[1]

उद्देश्य

मेयो कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राजपूत राज्य के भावी शासकों में ब्रिटिश शासकों के प्रति स्वामी भक्ति तथा आज्ञाकारिता की भावना को दृढ़ करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को को विद्या, बुद्धि, तर्क शैली, रहन-सहन, खानपान तथा आचार-विचार आदि दृष्टि से अंग्रेज बनाने का प्रयत्न किया गया। उनमें अंग्रेज़ी राज एवं मान्यताओं के प्रति अगाध श्रृद्धा तथा भक्ति की भावना भरी जानी लगी। उन्हें भारतीय संस्कृति से भिन्न वातावरण में पोषित किया जाने लगा। फिर भी इसका पाठ्यक्रम सामान्य स्कूलों के पाठ्यक्रम से अधिक भिन्न नहीं था। यहाँ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नौकरी दिलवाना था। इसके विरुद्ध शासकों में असंतोष फैला, क्योंकि वे ऐसी शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। अत: 19वीं शताब्दी के अंत तक पाठ्यक्रम के विषय पर विवाद चलता रहा।

मेयो कॉलेज के कारण अंग्रेज़ अधिकारियों को राजपूत राज्यों के भावी शासकों के साथ घुलमिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त कॉलेज में आयोजित विभिन्न समारोह के अवसर भी प्रदान किया। कॉलेज की स्थापना के समय और उसके कुछ समय बाद मेयो कॉलेज की काफी प्रतिष्ठा थी, किन्तु धीरे-धीरे छात्रावासों का वातावरण दूषित होने के कारण कॉलेज की प्रतिष्ठा गिरने लगी।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 तोन्गारिया, राहुल। राजस्थान में अंग्रेजी शिक्षा का विकास (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 5 अगस्त, 2011।

बाहरी कड़ियाँ