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||[[चित्र:Cotton.jpg|120px|right|कपास के फूल]]कपास एक नक़दी फ़सल है। इससे रूई तैयार की जाती है। कपास को 'सफ़ेद सोना' भी कहा जाता है। लम्बे रेशे वाला [[कपास]] सबसे सर्वोत्तम प्रकार का माना जाता है। [[भारत]] में कपास का [[इतिहास]] काफ़ी पुराना है। हड़प्पा निवासी कपास के उत्पादन में संसार भर में प्रथम माने जाते थे। कपास उनके प्रमुख उत्पादनों में से एक था। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 150 लाख मीट्रिक टन कपास पैदा होता है। आज इसका विभिन्न उद्योगों में भी प्रयोग किया जाता है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कपास]] | ||[[चित्र:Cotton.jpg|120px|right|कपास के फूल]]कपास एक नक़दी फ़सल है। इससे रूई तैयार की जाती है। कपास को 'सफ़ेद सोना' भी कहा जाता है। लम्बे रेशे वाला [[कपास]] सबसे सर्वोत्तम प्रकार का माना जाता है। [[भारत]] में कपास का [[इतिहास]] काफ़ी पुराना है। हड़प्पा निवासी कपास के उत्पादन में संसार भर में प्रथम माने जाते थे। कपास उनके प्रमुख उत्पादनों में से एक था। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 150 लाख मीट्रिक टन कपास पैदा होता है। आज इसका विभिन्न उद्योगों में भी प्रयोग किया जाता है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कपास]] | ||
{[[महावीर]] ने | {[[महावीर]] ने 'जैन संघ' की स्थापना कहाँ की थी? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[कुण्डग्राम]] | -[[कुण्डग्राम]] | ||
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+[[पावापुरी]] | +[[पावापुरी]] | ||
-[[वाराणसी]] | -[[वाराणसी]] | ||
||[[कनिंघम]] ने 'पावापुरी' का अभिज्ञान 'कसिया' के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित 'फ़ाज़िलपुर' नामक ग्राम से किया है। जैन ग्रंथ [[कल्पसूत्र]] के अनुसार [[महावीर]] ने [[पावापुरी]] में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को [[जैन धर्म]] के संम्प्रदाय का [[सारनाथ]] माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी। | ||[[कनिंघम]] ने 'पावापुरी' का अभिज्ञान 'कसिया' के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित 'फ़ाज़िलपुर' नामक ग्राम से किया है। जैन ग्रंथ [[कल्पसूत्र]] के अनुसार [[महावीर]] ने [[पावापुरी]] में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को [[जैन धर्म]] के संम्प्रदाय का [[सारनाथ]] माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पावापुरी]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पावापुरी]] | |||
{[[मौर्य काल]] में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र क्या था? | {[[मौर्य काल]] में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र क्या था? | ||
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+[[तक्षशिला]] | +[[तक्षशिला]] | ||
-[[उज्जैन]] | -[[उज्जैन]] | ||
||[[चित्र:Taxila.jpg|तक्षशिला के अवशेष|100px|right]]तक्षशिला [[गांधार]] देश की राजधानी थी। यूँ तो गांधार की चर्चा [[ऋग्वेद]] से ही मिलती है, किंतु [[तक्षशिला]] की जानकारी सर्वप्रथम [[वाल्मीकि रामायण]] से होती है। [[अयोध्या]] के राजा [[राम]] की विजयों के उल्लेख के सिलसिले में हमें यह ज्ञात होता है कि, उनके छोटे भाई [[भरत]] ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण और उनकी सहायता से गंधर्वों के देश (गांधार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक नियुक्त किया। | ||[[चित्र:Taxila.jpg|तक्षशिला के अवशेष|100px|right]]तक्षशिला [[गांधार]] देश की राजधानी थी। यूँ तो गांधार की चर्चा [[ऋग्वेद]] से ही मिलती है, किंतु [[तक्षशिला]] की जानकारी सर्वप्रथम [[वाल्मीकि रामायण]] से होती है। [[अयोध्या]] के राजा [[राम]] की विजयों के उल्लेख के सिलसिले में हमें यह ज्ञात होता है कि, उनके छोटे भाई [[भरत]] ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण और उनकी सहायता से गंधर्वों के देश ([[गांधार]]) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक नियुक्त किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तक्षशिला]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तक्षशिला]] | |||
{[[मौर्य काल]] में गुप्तचरों को क्या कहा जाता था? | {[[मौर्य काल]] में गुप्तचरों को क्या कहा जाता था? | ||
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- [[मदुरै]] | - [[मदुरै]] | ||
-त्रिचिनापल्ली | -त्रिचिनापल्ली | ||
||[[चित्र:Brihadeeshwara-Temple-Tanjore.jpg|बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर|100px|right]][[तमिलनाडु]] के पूर्वी मध्यकाल में [[तंजौर]] या [[तंजावूर]] नगरी [[चोल साम्राज्य]] की राजधानी के रूप में काफ़ी विख्यात थी। तंजौर को मन्दिरों की नगरी कहना कहीं अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि यहाँ पर 75 छोटे-बड़े मन्दिर हैं। [[चोल वंश]] ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक [[तमिलनाडु]] पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और [[मराठा|मराठों]] ने यहाँ शासन किया। | ||[[चित्र:Brihadeeshwara-Temple-Tanjore.jpg|बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर|100px|right]][[तमिलनाडु]] के पूर्वी मध्यकाल में [[तंजौर]] या [[तंजावूर]] नगरी [[चोल साम्राज्य]] की राजधानी के रूप में काफ़ी विख्यात थी। तंजौर को मन्दिरों की नगरी कहना कहीं अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि यहाँ पर 75 छोटे-बड़े मन्दिर हैं। [[चोल वंश]] ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक [[तमिलनाडु]] पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और [[मराठा|मराठों]] ने यहाँ शासन किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तंजौर]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तंजौर]] | |||
{निम्न में से [[संगीत]] के किस [[वाद्य यंत्र]] को [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] गान वाद्यों का सबसे श्रेष्ठ मिश्रण माना गया है? | {निम्न में से [[संगीत]] के किस [[वाद्य यंत्र]] को [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] गान वाद्यों का सबसे श्रेष्ठ मिश्रण माना गया है? | ||
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+[[सितार]] | +[[सितार]] | ||
-[[सारंगी]] | -[[सारंगी]] | ||
||[[चित्र:Sitar.jpg|right|120px|सितार]]5 तार वाले [[वाद्य यंत्र]] आज भी 'परशिया' के लोक-संगीत में इस्तेमाल किये जाते हैं। सम्भव है कि इस वाद्य के प्रचार में [[अमीर ख़ुसरो]] का विशेष हाथ रहा हो। [[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]], इन दोनों के श्रेष्ठ वाद्य यंत्रों के मिश्रण से [[सितार]] की उत्पत्ति मानी जाती है। सितार परंपरिक वाद्य होने के साथ ही सबसे अधिक लोकप्रिय है, और सितार ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसने पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान का नाम लोकप्रिय किया। | ||[[चित्र:Sitar.jpg|right|120px|सितार]]5 तार वाले [[वाद्य यंत्र]] आज भी 'परशिया' के लोक-संगीत में इस्तेमाल किये जाते हैं। सम्भव है कि इस वाद्य के प्रचार में [[अमीर ख़ुसरो]] का विशेष हाथ रहा हो। [[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]], इन दोनों के श्रेष्ठ वाद्य यंत्रों के मिश्रण से [[सितार]] की उत्पत्ति मानी जाती है। सितार परंपरिक वाद्य होने के साथ ही सबसे अधिक लोकप्रिय है, और सितार ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसने पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान का नाम लोकप्रिय किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सितार]] | ||
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{किस [[मुग़ल]] शासक को 'आलमगीर' कहा जाता था? | {किस [[मुग़ल]] शासक को 'आलमगीर' कहा जाता था? | ||
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+[[औरंगजेब]] | +[[औरंगजेब]] | ||
-[[जहाँगीर]] | -[[जहाँगीर]] | ||
||[[चित्र:Darbarscene-Aurangzeb.jpg|right|120px|औरंगज़ेब का दरबार]]1636 ई. से 1644 ई. एवं 1652 ई. से 1657 ई. तक [[औरंगज़ेब]] [[गुजरात]], मुल्तान एवं [[सिंध]] का भी गर्वनर रहा। [[आगरा]] पर क़ब्ज़ा कर जल्दबाज़ी में औरंगज़ेब ने अपना राज्याभिषक 'अबुल मुजफ़्फ़र मुहीउद्दीन मुजफ़्फ़र औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर' की उपाधि से 31 जुलाई, 1658 ई. को [[दिल्ली]] में करवाया। ‘खजुवा’ एवं ‘देवराई’ के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई, 1659 ई. को औरंगज़ेब ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ [[शाहजहाँ]] के शानदार महल में औरंगज़ेब का दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ। | ||[[चित्र:Darbarscene-Aurangzeb.jpg|right|120px|औरंगज़ेब का दरबार]]1636 ई. से 1644 ई. एवं 1652 ई. से 1657 ई. तक [[औरंगज़ेब]] [[गुजरात]], मुल्तान एवं [[सिंध]] का भी गर्वनर रहा। [[आगरा]] पर क़ब्ज़ा कर जल्दबाज़ी में औरंगज़ेब ने अपना राज्याभिषक 'अबुल मुजफ़्फ़र मुहीउद्दीन मुजफ़्फ़र औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर' की उपाधि से 31 जुलाई, 1658 ई. को [[दिल्ली]] में करवाया। ‘खजुवा’ एवं ‘देवराई’ के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई, 1659 ई. को औरंगज़ेब ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ [[शाहजहाँ]] के शानदार महल में औरंगज़ेब का दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[औरंगजेब]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[औरंगजेब]] | |||
{[[पटना]] को प्रातीय राजधानी किसने बनाया था? | {[[पटना]] को प्रातीय राजधानी किसने बनाया था? | ||
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-[[इब्राहिम लोदी]] ने | -[[इब्राहिम लोदी]] ने | ||
-[[बाबर]] ने | -[[बाबर]] ने | ||
||[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|शेरशाह सूरी|80px|right]]शेरशाह सूरी ने ही सर्वप्रथम अपने शासन काल में आज की भारतीय मुद्रा [[रुपया]] को जारी किया था। इसीलिए इतिहासकार [[शेरशाह सूरी]] को आधुनिक रुपया व्यवस्था का अग्रदूत भी मानते है। [[मौर्य राजवंश|मौर्यों]] के पतन के बाद [[पटना]] को पुनः प्रान्तीय राजधानी बनाया गया था। अतः आधुनिक पटना को शेरशाह द्वारा बसाया माना जाता है। | ||[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|शेरशाह सूरी|80px|right]]शेरशाह सूरी ने ही सर्वप्रथम अपने शासन काल में आज की भारतीय मुद्रा [[रुपया]] को जारी किया था। इसीलिए इतिहासकार [[शेरशाह सूरी]] को आधुनिक रुपया व्यवस्था का अग्रदूत भी मानते है। [[मौर्य राजवंश|मौर्यों]] के पतन के बाद [[पटना]] को पुनः प्रान्तीय राजधानी बनाया गया था। अतः आधुनिक पटना को शेरशाह द्वारा बसाया माना जाता है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शेरशाह]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शेरशाह]] | |||
{[[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] के समय का प्रसिद्ध चित्रकार कौन था? | {[[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] के समय का प्रसिद्ध चित्रकार कौन था? | ||
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-[[बदायूँनी|अब्दुल क़ादिर बदायूँनी]] | -[[बदायूँनी|अब्दुल क़ादिर बदायूँनी]] | ||
+[[अबुल फ़ज़ल]] | +[[अबुल फ़ज़ल]] | ||
||अबुल फ़ज़ल बहुत वर्षों तक [[अकबर]] का विश्वासपात्र वज़ीर और सलाहकार रहा। वह केवल दरबारी और आला अफ़सर ही नहीं था, वरन बड़ा विद्वान था और उसने अनेक पुस्तकें भी लिखी थीं। उसकी [[आइना-ए-अकबरी]] में अकबर के साम्राज्य का विवरण मिलता है और [[अकबरनामा]] में उसने अकबर के समय का [[इतिहास]] लिखा है। उसका भाई [[फ़ैज़ी]] भी अकबर का दरबारी शायर था। | ||अबुल फ़ज़ल बहुत वर्षों तक [[अकबर]] का विश्वासपात्र वज़ीर और सलाहकार रहा। वह केवल दरबारी और आला अफ़सर ही नहीं था, वरन बड़ा विद्वान था और उसने अनेक पुस्तकें भी लिखी थीं। उसकी [[आइना-ए-अकबरी]] में अकबर के साम्राज्य का विवरण मिलता है और [[अकबरनामा]] में उसने अकबर के समय का [[इतिहास]] लिखा है। उसका भाई [[फ़ैज़ी]] भी अकबर का दरबारी शायर था।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल फ़ज़ल]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल फ़ज़ल]] | |||
{[[शिवाजी]] के राजनीतिक गुरु एवं संरक्षक कौन थे? | {[[शिवाजी]] के राजनीतिक गुरु एवं संरक्षक कौन थे? | ||
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-[[रघुनाथराव]] | -[[रघुनाथराव]] | ||
+[[माधवराव प्रथम]] | +[[माधवराव प्रथम]] | ||
||माधवराव प्रथम के समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, [[पानीपत]] की तीसरी लड़ाई के फलस्वरूप [[मराठा|मराठों]] की शक्ति को जितनी क्षति पहुँची थी, उस सब की भरपाई कर ली गई है। इसी समय अचानक 1772 ई. में महान [[पेशवा]] [[माधवराव प्रथम]] का देहान्त हो गया। इस बारे में 'ग्राण्ट डफ़' ने लिखा है कि, '[[मराठा साम्राज्य]] के लिए पानीपत का मैदान उतना घातक सिद्ध नहीं हुआ, जितना इस श्रेष्ठ शासक का असामयिक देहावसान'। | ||माधवराव प्रथम के समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, [[पानीपत]] की तीसरी लड़ाई के फलस्वरूप [[मराठा|मराठों]] की शक्ति को जितनी क्षति पहुँची थी, उस सब की भरपाई कर ली गई है। इसी समय अचानक 1772 ई. में महान [[पेशवा]] [[माधवराव प्रथम]] का देहान्त हो गया। इस बारे में 'ग्राण्ट डफ़' ने लिखा है कि, '[[मराठा साम्राज्य]] के लिए पानीपत का मैदान उतना घातक सिद्ध नहीं हुआ, जितना इस श्रेष्ठ शासक का असामयिक देहावसान'।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माधवराव प्रथम]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माधवराव प्रथम]] | |||
{निम्नलिखित में से कौन बीजगणित के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए विशेष रूप से जाना जाता है? | {निम्नलिखित में से कौन बीजगणित के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए विशेष रूप से जाना जाता है? | ||
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+[[ब्रह्मगुप्त]] | +[[ब्रह्मगुप्त]] | ||
||ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बहुत बड़े आचार्य थे। [[आर्यभट्ट]] के बाद [[भारत]] के पहले गणित शास्त्री 'भास्कराचार्य प्रथम' थे। उसके बाद [[ब्रह्मगुप्त]] हुए। ब्रह्मगुप्त खगोलशास्त्री भी थे, और आपने 'शून्य' के उपयोग के नियम खोजे थे। इसके बाद अंकगणित और बीजगणित के विषय में लिखने वाले कई गणितशास्त्री हुए। | ||ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बहुत बड़े आचार्य थे। [[आर्यभट्ट]] के बाद [[भारत]] के पहले गणित शास्त्री 'भास्कराचार्य प्रथम' थे। उसके बाद [[ब्रह्मगुप्त]] हुए। ब्रह्मगुप्त खगोलशास्त्री भी थे, और आपने 'शून्य' के उपयोग के नियम खोजे थे। इसके बाद अंकगणित और बीजगणित के विषय में लिखने वाले कई गणितशास्त्री हुए।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ब्रह्मगुप्त]] | ||
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ब्रह्मगुप्त]] | |||
{[[बाल गंगाधर तिलक]] द्वारा शुरु की गई साप्ताहिक पत्रिका कौन-सी थी? | {[[बाल गंगाधर तिलक]] द्वारा शुरु की गई साप्ताहिक पत्रिका कौन-सी थी? |
06:16, 12 अगस्त 2011 का अवतरण
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