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11:32, 19 अगस्त 2011 का अवतरण

महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

विभाग का स्वरूप

परस्पर मिले हुए पदार्थों के अलग-अलग हो जाने से संयोग का जो नाश होता है, उसको विभाग कहते हैं। वह सभी द्रव्यों में रहता है। केशव मिश्र के अनुसार 'यह द्रव्य से विभक्त है'- इस प्रकार के अलगाव की प्रतीति का असाधारण कारण विभाग कहलाता हे। वह संयोगपूर्वक होता है और दो द्रव्यों में होता है। विभाग तीन प्रकार का माना गया है- अन्यतरकर्मज, उभयकर्मज और विभागज।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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