"दिल्ली (कविता) -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

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यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में,
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में?
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में?


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इस उजाड़ निर्जन खंडहर में,  
इस उजाड़ निर्जन खंडहर में,  
छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर मे
छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर में


तुझे रूप सजाने की सूझी,
तुझे रूप सजाने की सूझी,
इस सत्यानाश प्रहर में!
इस सत्यानाश प्रहर में!


डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया-तराना,
डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया - तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;


हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इनपर नमक हाय, छिड़काना!
उधर तुझे भाता है इन पर नमक हाय, छिड़कना!


महल कहां बस, हमें सहारा,
महल कहां बस, हमें सहारा,
केवल फ़ूस-फ़ास, तॄणदल का;
केवल फूस-फास, तॄणदल का;


अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का,  
अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का,  

12:52, 20 अगस्त 2011 का अवतरण

दिल्ली (कविता) -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में?

मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!

इस उजाड़ निर्जन खंडहर में,
छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर में

तुझे रूप सजाने की सूझी,
इस सत्यानाश प्रहर में!

डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया - तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;

हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इन पर नमक हाय, छिड़कना!

महल कहां बस, हमें सहारा,
केवल फूस-फास, तॄणदल का;

अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का,
गम, आँसू या गंगाजल का;

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