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<poem>'कृत्स्नं पंचनदं चैव तथैवामरपर्वतम् उत्तरज्योतिषं चैव तथा दिव्यकटं पुरम्।'<ref>[[सभा पर्व महाभारत]] 32, 11</ref></poem> | |||
*[[नकुल]] ने अपनी पश्चिम-दिशा की दिग्विजययात्रा में इस स्थान को जीता था। | |||
[[नकुल]] ने अपनी पश्चिम-दिशा की दिग्विजययात्रा में इस स्थान को जीता था। प्रसंगानुसार इस की स्थिति [[पंजाब]] और [[कश्मीर]] की सीमा के निकट जान पड़ती है। जिस प्रकार प्राग्ज्योतिष (कामरूप-[[असम]] की राजधानी) की स्थिति पूर्व में थी, इसी प्रकार उत्तर ज्योतिष की स्थिति उत्तरपश्चिम में थी। इसका पाठांतर जोतिक भी है जो उत्तर-पश्चिम [[हिमालय]] में स्थित जोता नामक स्थान हैं। | *प्रसंगानुसार इस की स्थिति [[पंजाब]] और [[कश्मीर]] की सीमा के निकट जान पड़ती है। | ||
*जिस प्रकार प्राग्ज्योतिष (कामरूप-[[असम]] की राजधानी) की स्थिति पूर्व में थी, इसी प्रकार उत्तर ज्योतिष की स्थिति उत्तरपश्चिम में थी। | |||
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12:32, 21 अगस्त 2011 का अवतरण
'कृत्स्नं पंचनदं चैव तथैवामरपर्वतम् उत्तरज्योतिषं चैव तथा दिव्यकटं पुरम्।'[1]
- नकुल ने अपनी पश्चिम-दिशा की दिग्विजययात्रा में इस स्थान को जीता था।
- प्रसंगानुसार इस की स्थिति पंजाब और कश्मीर की सीमा के निकट जान पड़ती है।
- जिस प्रकार प्राग्ज्योतिष (कामरूप-असम की राजधानी) की स्थिति पूर्व में थी, इसी प्रकार उत्तर ज्योतिष की स्थिति उत्तरपश्चिम में थी।
- इसका पाठांतर जोतिक भी है जो उत्तर-पश्चिम हिमालय में स्थित जोता नामक स्थान हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सभा पर्व महाभारत 32, 11