"अष्टयाम": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
#[[वैष्णव]] मन्दिरों में आठ प्रहर की सेवा-पूजा का विधान 'अष्टयाम' कहा जाता है। [[वल्लभ संप्रदाय|वल्लभ सम्प्रदाय]] में मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, सन्ध्या-आरती तथा शयन के नाम से ये कीर्तन-सेवाएँ हैं।  
#[[वैष्णव]] मन्दिरों में आठ प्रहर की सेवा-पूजा का विधान 'अष्टयाम' कहा जाता है। [[वल्लभ संप्रदाय|वल्लभ सम्प्रदाय]] में मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, सन्ध्या-आरती तथा शयन के नाम से ये कीर्तन-सेवाएँ हैं।  
#अष्टयाम [[हिन्दी]] का अपना विशिष्ट काव्य-रूप जो रीतिकाल में विशेष विकसित हुआ। इसमें कथा-प्रबन्ध नहीं होता परंतु [[कृष्ण]] या नायक की दिन-रात की चर्या-विधि का सरस वर्णन होता है।
#अष्टयाम [[हिन्दी]] का अपना विशिष्ट काव्य-रूप जो रीतिकाल में विशेष विकसित हुआ। इसमें कथा-प्रबन्ध नहीं होता परंतु [[कृष्ण]] या नायक की दिन-रात की चर्या-विधि का सरस वर्णन होता है।

08:27, 24 अगस्त 2011 का अवतरण

  1. वैष्णव मन्दिरों में आठ प्रहर की सेवा-पूजा का विधान 'अष्टयाम' कहा जाता है। वल्लभ सम्प्रदाय में मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, सन्ध्या-आरती तथा शयन के नाम से ये कीर्तन-सेवाएँ हैं।
  2. अष्टयाम हिन्दी का अपना विशिष्ट काव्य-रूप जो रीतिकाल में विशेष विकसित हुआ। इसमें कथा-प्रबन्ध नहीं होता परंतु कृष्ण या नायक की दिन-रात की चर्या-विधि का सरस वर्णन होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख