"गंगा -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर
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आधा जल चंचल औ’, नीला-- | आधा जल चंचल औ’, नीला-- | ||
गीले तन पर मृदु संध्यातप | |||
सिमटा रेशम पट सा ढीला। | |||
ऐसे सोने के साँझ प्रात:, | |||
ऐसे सोने के साँझ प्रात, | |||
ऐसे चाँदी के दिवस रात, | ऐसे चाँदी के दिवस रात, | ||
ले जाती बहा कहाँ गंगा | |||
जीवन के युग क्षण,-- किसे ज्ञात! | जीवन के युग क्षण,-- किसे ज्ञात! | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 47: | ||
किरणोज्वल चल कल ऊर्मि निरत, | किरणोज्वल चल कल ऊर्मि निरत, | ||
यमुना, गोमती आदि से मिल | |||
होती यह सागर में परिणत। | होती यह सागर में परिणत। | ||
पंक्ति 55: | पंक्ति 53: | ||
जिसके तट पर बहु नगर प्रथित, | जिसके तट पर बहु नगर प्रथित, | ||
इस जड़ गंगा से मिली हुई | |||
जन गंगा एक और जीवित! | जन गंगा एक और जीवित! | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 59: | ||
वह भीष्म प्रसू औ’ जह्नु सुता, | वह भीष्म प्रसू औ’ जह्नु सुता, | ||
वह देव निम्नगा, स्वर्ग गंगा, | |||
वह सगर पुत्र तारिणी श्रुता। | वह सगर पुत्र तारिणी श्रुता। | ||
पंक्ति 69: | पंक्ति 65: | ||
वह लोक चेतना, यह माया, | वह लोक चेतना, यह माया, | ||
वह आत्म वाहिनी ज्योति सरी, | |||
यह भू पतिता, कंचुक काया। | यह भू पतिता, कंचुक काया। | ||
पंक्ति 76: | पंक्ति 71: | ||
जिसमें बहु बुदबुद युग नर्तित, | जिसमें बहु बुदबुद युग नर्तित, | ||
वह आज तरंगित, संसृति के | |||
मृत सैकत को करने प्लावित। | मृत सैकत को करने प्लावित। | ||
पंक्ति 83: | पंक्ति 77: | ||
वह बनी अकूल अतल सागर, | वह बनी अकूल अतल सागर, | ||
भर देगी दिशि पल पुलिनों में | |||
वह नव नव जीवन की मृद उर्वर! | |||
अब नभ पर रेखा शशि शोभित, | अब नभ पर रेखा शशि शोभित, | ||
गंगा का जल श्यामल, कम्पित, | गंगा का जल श्यामल, कम्पित, | ||
लहरों पर चाँदी की किरणें | |||
करतीं प्रकाशमय कुछ अंकित! | करतीं प्रकाशमय कुछ अंकित! | ||
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12:48, 29 अगस्त 2011 का अवतरण
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अब आधा जल निश्चल, पीला,-- |
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