"फ़क़ीर मोहन सेनापति": अवतरणों में अंतर
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*उनके दो उपन्यास ‘छह माण आठ गुंठ’ और ‘लछमा’ विशेष प्रसिद्ध हुए। | *उनके दो उपन्यास ‘छह माण आठ गुंठ’ और ‘लछमा’ विशेष प्रसिद्ध हुए। | ||
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07:46, 3 सितम्बर 2011 का अवतरण
- आधुनिक उड़िया साहित्य के जनक फकीर मोहन सेनापति का जन्म 1847 ई. में उड़ीसा के तट पर 'बालेश्वर नगर' में हुआ था।
- उनके पिता एक संपन्न व्यापारी थे और फकीर मोहन उनकी एकमात्र संतान।
- परन्तु वे डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया।
- उनकी संपूर्ण पैत्रिक संपत्ति अंग्रेजों ने हथिया ली और बालक को दर-दर की ठोकर खानी पड़ी।
- शिक्षा भी आरंभिक स्तर से आगे नहीं बढ़ पाई।
- परन्तु फकीर मोहन ने साहस नहीं छोड़ा। वे स्वाध्याय से त्रिविध विषयों का अपना ज्ञान बढ़ाते रहे।
- फिर वे साहित्य रचना की ओर प्रवृत्त हुए।
- उस समय तक उड़ीसा में पुस्तकें छापने का छापाखाना नहीं था।
- फकीर मोहन ने पहला छापाखाना स्थापित किया और एक 'पत्रिका' का संपादन और प्रकाशन करने लगे।
- अब उनकी योग्यता की ख्याति देशी रियासतों में भी फैली और कुछ ने उन्हें 'दीवान' के पद पर नियुक्त किया।
- कुछ दरबारों में साहित्य-सेवा के कारण उन्हें उच्च स्थान प्राप्त हुआ।
- फकीर मोहन सेनापति ने अनेक कहानियों और उपन्यासों की रचना की।
- उनके दो उपन्यास ‘छह माण आठ गुंठ’ और ‘लछमा’ विशेष प्रसिद्ध हुए।
- उन्होंने मूल संस्कृत से रामायण, महाभारत, उपनिषद, हरिवंश पुराण और गीता का उड़िया भाषा में अनुवाद किया।
- वे आज भी उड़िया लेखकों के प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं।
- 1918 ई. में उनका देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ