"जनतन्त्र का जन्म -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; | मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; | ||
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, | दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, | ||
सिंहासन | सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। | ||
जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही, | जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही, | ||
पंक्ति 52: | पंक्ति 52: | ||
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है; | जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है; | ||
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, | दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, | ||
सिंहासन | सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। | ||
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, | हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, | ||
पंक्ति 75: | पंक्ति 75: | ||
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है; | धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है; | ||
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, | दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, | ||
सिंहासन | सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। | ||
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12:41, 4 सितम्बर 2011 का अवतरण
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सदियों की ठंडी - बुझी राख सुगबुगा उठी, |
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