"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-4 ब्राह्मण-1": अवतरणों में अंतर
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*इसी प्रकार वृष्णा के पुत्र वर्कु ने 'चक्षु' को ब्रह्म स्वीकार किया है। | *इसी प्रकार वृष्णा के पुत्र वर्कु ने 'चक्षु' को ब्रह्म स्वीकार किया है। | ||
याज्ञवल्क्य ने ब्रह्म के तीनों रूपों का समर्थन करते हुए उसे सत्य माना। | *याज्ञवल्क्य ने ब्रह्म के तीनों रूपों का समर्थन करते हुए उसे सत्य माना। | ||
10:04, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण
- बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय चौथा का यह प्रथम ब्राह्मण है।
- इस ब्राह्मण में 'ब्रह्म' के विशिष्ट स्वरूपों की व्याख्या विदेहराज जनक याज्ञवल्क्य को सुनाते हैं।
- उन्होंने बताया कि शिलिक ऋषि के पुत्र जित्वा ब्रह्म को 'वाक्' (वाणी) रूप में मानते हैं।
- इसी प्रकार शुल्व ऋषि के पुत्र उदंक ने 'प्राण' को ब्रह्म माना है।
- इसी प्रकार वृष्णा के पुत्र वर्कु ने 'चक्षु' को ब्रह्म स्वीकार किया है।
- याज्ञवल्क्य ने ब्रह्म के तीनों रूपों का समर्थन करते हुए उसे सत्य माना।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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