"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5 ब्राह्मण-14": अवतरणों में अंतर

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*[[बृहदारण्यकोपनिषद]] के [[बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5|अध्याय पांचवाँ]] का यह चौदहवाँ ब्राह्मण है।
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*इस ब्राह्मण में '[[गायत्री]]' के तत्त्वज्ञान एवं माहात्म्य का वर्णन किया गया है।  
*इस ब्राह्मण में '[[गायत्री]]' के तत्त्वज्ञान एवं माहात्म्य का वर्णन किया गया है।  
*[[उपनिषद]] गायत्री के तीन चरणों की ही उपासना की बात कहते हैं चौथा चरण 'दर्शन' चरण है, अर्थात देखा जाने वाला। उसे अनुभूतिगम्य कहा गया है।  
*[[उपनिषद]] गायत्री के तीन चरणों की ही उपासना की बात कहते हैं चौथा चरण 'दर्शन' चरण है, अर्थात देखा जाने वाला। उसे अनुभूतिगम्य कहा गया है।  

11:04, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण

  • इस ब्राह्मण में 'गायत्री' के तत्त्वज्ञान एवं माहात्म्य का वर्णन किया गया है।
  • उपनिषद गायत्री के तीन चरणों की ही उपासना की बात कहते हैं चौथा चरण 'दर्शन' चरण है, अर्थात देखा जाने वाला। उसे अनुभूतिगम्य कहा गया है।
  • यह पद सत्य में स्थित है। गायत्री प्राण में स्थित है।
  • इस गायत्री ने गयों, अर्थात प्राणों का त्राण किया है। इसीलिए इसे 'गायत्री' कहते हैं।
  • गायत्री महाशक्ति का मुख 'अग्नि' है।
  • गायत्री विद्या में निष्णात व्यक्ति के समस्त पाप भस्म हो जाते हैं।
  • वह शुद्ध, पवित्र व अजर-अमर हो जाता है।


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