"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5 ब्राह्मण-15": अवतरणों में अंतर

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*इस ब्राह्मण में बताया गया है कि सत्य-रूपी 'ब्रह्म' का मुख ज्योतिर्मय स्वर्णपात्र से आच्छादित है। हे विश्वदेव! हे विश्व के पोषक सूर्यदेव! सत्य-धर्म के दर्शन के लिए मैं उसे देख सकूं, इसलिए आप उस पर पड़े आवरण को हटा दीजिये।  
*इस ब्राह्मण में बताया गया है कि सत्य-रूपी 'ब्रह्म' का मुख ज्योतिर्मय स्वर्णपात्र से आच्छादित है। हे विश्वदेव! हे विश्व के पोषक सूर्यदेव! सत्य-धर्म के दर्शन के लिए मैं उसे देख सकूं, इसलिए आप उस पर पड़े आवरण को हटा दीजिये।  
*यहाँ इसी भाव की उपासना की गयी है।  
*यहाँ इसी भाव की उपासना की गयी है।  

11:04, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण

  • इस ब्राह्मण में बताया गया है कि सत्य-रूपी 'ब्रह्म' का मुख ज्योतिर्मय स्वर्णपात्र से आच्छादित है। हे विश्वदेव! हे विश्व के पोषक सूर्यदेव! सत्य-धर्म के दर्शन के लिए मैं उसे देख सकूं, इसलिए आप उस पर पड़े आवरण को हटा दीजिये।
  • यहाँ इसी भाव की उपासना की गयी है।
  • हे अग्निदेव! आप हमें कर्मफल की प्राप्ति हेतु सुन्दर पथ पर ले चलें।
  • हे देव! हमारे कुटिल पापों को नष्ट करें।
  • हम बार-बार आपका नमन करते हैं।


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