"पैल": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - ")</ref" to "</ref") |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{पुनरीक्षण}} | {{पुनरीक्षण}} | ||
#[[व्यास]] के एक शिष्य का नाम जो [[ऋग्वेद]] के आचार्य थे<ref>[[भागवत पुराण]] 1.4.21; 9.22.22; [[वायु पुराण]] 60.13; 108.42; [[विष्णु पुराण]] 3,4.8</ref>। इन्हें ऋग्वेद की शिक्षा दी गयी थी। इन्होंने इंद्रप्रमिति तथा बाष्कल को इसकी शिक्षा दी<ref>भागवत पुराण 12.6.36, 52, 54; [[ब्रह्म पुराण]] 34.13; विष्णु पुराण 3.4.16</ref>। इन्हें [[युधिष्ठिर]] के | '''पैल''' नाम तीन संदर्भों में मिलता है | ||
#शाकवैण रथीतर के चार शिष्यों में से एक शिष्य<ref>ब्रह्म पुराण 2.35.4</ref>। | |||
#[[व्यास]] के एक शिष्य का नाम जो [[ऋग्वेद]] के आचार्य थे<ref>[[भागवत पुराण]] 1.4.21; 9.22.22; [[वायु पुराण]] 60.13; 108.42; [[विष्णु पुराण]] 3,4.8</ref>। इन्हें [[ऋग्वेद]] की शिक्षा दी गयी थी। इन्होंने इंद्रप्रमिति तथा बाष्कल को इसकी शिक्षा दी<ref>[[भागवत पुराण]] 12.6.36, 52, 54; [[ब्रह्म पुराण]] 34.13; [[विष्णु पुराण]] 3.4.16</ref>। इन्हें [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में निमंत्रित किया गया था<ref>[[भागवत पुराण]] 10.74.8</ref>। यह 86 श्रुतर्षियों में से एक श्रुतर्षि थे<ref>[[ब्रह्म पुराण]] 2.33.2</ref>। इन्होंने अपने पाठ्य विषय के दो भाग कर अपने उपर्युक्त शिष्यों को दिये<ref>[[वायु पुराण]] 60.19, 24-38</ref>। | |||
#शाकवैण रथीतर के चार शिष्यों में से एक शिष्य<ref>[[ब्रह्म पुराण]] 2.35.4</ref>। | |||
#एक भार्गव गोत्रकार ऋषि<ref>[[मत्स्यपुराण]]195. 18;196.18</ref>। | #एक भार्गव गोत्रकार ऋषि<ref>[[मत्स्यपुराण]]195. 18;196.18</ref>। | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
12:13, 12 सितम्बर 2011 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
पैल नाम तीन संदर्भों में मिलता है
- व्यास के एक शिष्य का नाम जो ऋग्वेद के आचार्य थे[1]। इन्हें ऋग्वेद की शिक्षा दी गयी थी। इन्होंने इंद्रप्रमिति तथा बाष्कल को इसकी शिक्षा दी[2]। इन्हें युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में निमंत्रित किया गया था[3]। यह 86 श्रुतर्षियों में से एक श्रुतर्षि थे[4]। इन्होंने अपने पाठ्य विषय के दो भाग कर अपने उपर्युक्त शिष्यों को दिये[5]।
- शाकवैण रथीतर के चार शिष्यों में से एक शिष्य[6]।
- एक भार्गव गोत्रकार ऋषि[7]।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत पुराण 1.4.21; 9.22.22; वायु पुराण 60.13; 108.42; विष्णु पुराण 3,4.8
- ↑ भागवत पुराण 12.6.36, 52, 54; ब्रह्म पुराण 34.13; विष्णु पुराण 3.4.16
- ↑ भागवत पुराण 10.74.8
- ↑ ब्रह्म पुराण 2.33.2
- ↑ वायु पुराण 60.19, 24-38
- ↑ ब्रह्म पुराण 2.35.4
- ↑ मत्स्यपुराण195. 18;196.18