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कौसानी [[उत्तराखंड]] राज्‍य के अल्‍मोड़ा जिले से 53 किमी.उत्तर में स्थित है। कौसानी,[[भारत]] का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल। कौसानी [[हिमालय]] की खूबसूरती के दर्शन कराता पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहाँ से बर्फ से ढ़के [[नंदा देवी पर्वत]] की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। [[कोसी नदी]] और [[गोमती नदि]] के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। कौसानी के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे,खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। [[महात्मा गांधी|राष्ट्रपिता महात्मा गांधी]] ने भी कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड कहा है।
==इतिहास==
कौसानी का सबसे पहला परिचय बचपन में पंडित नरेंद्र शर्मा की इन पक्तियों से हुआ था:-
यह नई धरा, आकाश नया,
यह नया लोक मिल गया मुझे।
थी [[आत्मा]] जिसके हित अशांत,
वह शांत लोक मिल गया मुझे।
कौसानी का दूसरा परिचय भी साहित्यिक ही था। [[धर्मवीर भारती]] ने अपने एक प्रसिद्ध निबंध ‘ठेले पर हिमालय’ में इसके बारे में काफी कुछ लिखा है। वैसे कौसानी का एक और साहित्यिक परिचय यह भी है कि कौसानी प्रकृति के सुकुमार [[सुमित्रानंदन पंत]] की जन्मस्थली भी है। कौसानी सिर्फ साहित्य के लिए ही महत्त्वपूर्ण जगह नहीं है, इसकी गिनती [[कुमाऊँ]] के सबसे सुंदर पर्यटन स्थलों में होती है। कौसानी1890 मीटर की ऊंचाई पर बसा खूबसूरत कस्बा है, जहाँ से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ से आप हिमालय के 350 किलोमीटर लंबे नजारे को एक साथ देख सकते हैं। यहां से देखने पर ऐसा लगता है जैसे त्रिशूल, नंदादेवी और पंचचूली जैसी चोटियां आपके एकदम करीब आकर खड़ी हो गई हों।
अगर आप किसी ऐसे पर्यटन स्थल पर जाना चाहते हैं, जहां पर्यटकों की गहमा-गहमी न हो, जहां भीड़ भरे बाजारों से गुजरना दूभर न हो, जहां होटलों और टूर ऑपरेटरों के दलाल आपको परेशान न करें तो कौसानी आपके लिए आदर्श जगह है। ऐसा नहीं है कि कौसानी में पर्यटकों के रेले नहीं आते। रोज दोपहर बीतते-बीतते डेली टूर कराने वाले ऑपरेटरों की बसें वहां पंहुचने लगती हैं। यह लोग सूर्यास्त देख कर लौट जाते हैं।
बेशक कौसानी में पहाड़ों की चोटियों पर सूर्य को डूबते देखना एक खूबसूरत अनुभव होता है, लेकिन कौसानी की असली खासियत उसका सूर्यास्त नहीं, सूर्योदय है। कुमाऊं में यह मान्यता है कि सूर्योदय सबसे पहले कौसानी में ही होता है। और लगता है जैसे यह शायद सच भी है। सूर्य को अपने उदय के लिए इससे खूबसूरत जगह भला और कहां मिलेगी। सुबह जब अभी पूरी घाटी में अंधेरा छाया होता है, दूर ऊंची चोटियों के पीछे से लालिमा झांकने लगती है। फिर थोड़ी ही देर में एक चोटी के पीछे से सूर्य अपना सर उठाता है तो पूरी घाटी जैसे रोशनी में नहा उठती है। ऊंचे पहाड़, चीड़ के पेड़, हरी-भरी ढलान, सीढ़ीनुमा खेत- अभी तक जो अंधियारा दिख रहा था, वह सब अचानक ही रंग-बिरंगा दिखने लगता है। दिक्कत सिर्फ यही है कि यह अद्भुत नजारा हर रोज नहीं दिखता, सिर्फ तभी दिखता है, जब आसमान पर बादल या धुंध न छाए हों। कौसानी में सूर्योदय या सूर्यास्त को देखने की सबसे अच्छी जगह है अनासक्ति आश्रम। आश्रम कौसानी की सबसे ऊंची जगह पर बना है।


==पर्यटन स्थल==
पर्यटकों के लिए कौसानी में घुमने के लिए दो जगहें और हैं, जहाँ पर्यटक आसानी से जा सकते है। एक तो वह घर जहाँ सुमित्र नंदन पंत का जन्म हुआ था। इसे अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। दूसरा है लक्ष्मी आश्रम, जिसे गांधी जी की शिष्या सरला बेन ने बनवाया था। उन्होंने यहाँ लड़कियों के लिए जो आवासीय स्कूल शुरू किया था, वह आज भी चल रहा है। कौसानी से आप ग्वालदम भी जा सकते हैं। ग्वालदम वह जगह है, जहाँ कुमाऊँ और गढ़वाल आपस में मिलते हैं। यहाँ बहुत से [[सेब]] के बागान हैं। स्वर्ग से भी सुंदर कहे जाने वाले बेदनी बुग्याल तक जाने का रास्ता यहीं से शुरू होता है। और अगर आप कहीं नहीं जाना चाहते, सिर्फ कुदरत की गोद में आराम करना चाहते हैं तो कौसानी से बेहतर शायद कोई और जगह नहीं है।
;अनासक्ति आश्रम
अनासक्ति आश्रम महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बनाया गया था, जिन्होंने 1929 में इस स्थान की यात्रा की थी और इसके प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर इसे ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ की संज्ञा दी थी। यह वही स्थान है, जहां उन्होंने अपनी पुस्तक अनासक्ति योग लिखी थी। आश्रम में गांधी जी के जीवन से जुड़ी पुस्तकों और फोटोग्राफ्स का अच्छा संग्रह है और एक छोटी-सी बुकशॉप भी है। यहां एक छोटा-सा प्रार्थना कक्ष भी है, जहां हर दिन सुबह और शाम प्रार्थना सभा आयोजित होती है। इस जगह के बारे में गांधी जी ने लिखा है-
‘इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाजी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूं कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में करीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित हूं कि हमारे यहां के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं।’
कौसानी के आसपास भी हैं एक से बढ़कर एक नजारे
कौसानी जा रहे हैं तो कुछ और समय निकाल कर जाने की योजना बनाएं। जी हां, यहां आसपास अनेक ऐसी जगहें हैं, जो आपको आकर्षित करेंगी और आप मचल पड़ेंगे कि यहां भी चला जाऊं। बागेश्वर, बैजनाथ, अल्मोड़ा, चौकोड़ी, लखुड़ियार आदि ऐसी ही जगहें हैं।
बैजनाथ उत्तराखंड का काफी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। कौसानी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैजनाथ गोमती नदी के तट पर स्थित है। पर्यटकों के लिए यहां का सर्वाधिक आकर्षण के केन्द्र 12वीं सदी में निर्मित शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर, सूर्य मंदिर हैं।
बागेश्वर कौसानी से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। सरयू और गोमती के संगम पर स्थित बागेश्वर भगवान शिव के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। चौकोड़ी कौसानी से 87 किलोमीटर दूर है, जहां से हिमालय की चोटी का नजारा देखने के लिए पर्यटक खिंचे चले आते हैं। लखुड़ियार की गुफाएं और पेंटिंग पर्यटकों में खासी लोकप्रिय हैं। कौसानी से 71 किलोमीटर की दूरी तय कर आप यहां पहुंच सकते हैं। इस रास्ते पर अल्मोड़ा है, जो उत्तराखंड के कुछ प्रमुख हिल स्टेशनों में से एक है। कोट ब्रह्ररी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जो यहां से 21 किलोमीटर की दूरी पर तेहलीहाट में स्थित है।
कौसानी और आसपास के क्षेत्र में चाय के बागान भी ऐसी हरियाली का आनन्द देते हैं, मानो ईश्वर ने हरा कालीन बिछा दिया हो। चाय बागानों में घूमने के साथ-साथ फैक्ट्रियों में चाय को तैयार होते देख सकते हैं।
हिमालय का अद्भुत नजारा देखना है तो कौसानी बेस्ट है
राधा भट्ट, अध्यक्ष-लक्ष्मी आश्रम (कौसानी) व गांधी पीस फाउंडेशन (दिल्ली)
मैं पहली बार 1951 में यहां के लक्ष्मी आश्रम में आई थी, जिसका पूरा नाम कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल है। तब यहां कुछ दुकानें थीं और घना जंगल था। इन सबके बीच जो नजारा मन को अपनी ओर खींच लेता था, वह था हिमालय का दर्शन। वह नजारा अद्भुत था, अद्भुत है। तब मैं नयी थी और यह नजारा भी मेरे लिए नया था। लगता था कि हाथ बढ़ाऊंगी और हिमालय को छू लूंगी। तब शहर में घर भी कम थे और आसपास तो खूबसूरत जंगल थे ही। अब तो खेतों में भी बस्तियां बन गई हैं और पर्यटन विभाग ने भी पर्यटकों के लिए यहां काफी सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं।
कौसानी से कत्यूर और बोरारी घाटियां मन को खूब लुभाती थीं, जो धान के खेतों से लहलहाती हुई और अधिक खूबसूरत लगती थीं। कत्यूर घाटी में बैजनाथ का मंदिर है जिसमें पार्वती की एक दुर्लभ मूर्ति है। वहां हमारे आश्रम की बालिकाएं घूमने जाती हैं। पास में ही गोमती नदी है, जहां मछलियों को खिलाने में भी आनन्द आता है। यहां प्राकृतिक बहाव में तैरती बड़ी-बड़ी मछलियों को लोग मंदिर की मछलियां मानते हैं और उनका शिकार नहीं करते।
यहां कोसी नदी जहां से निकलती है, वहां पिनाथ है, जो आज पिनाथेश्वर हो गया है। पिनाथेश्वर से तो हिमालय का नजारा काफी मनमोहक दिखता ही है, हमारे आश्रम से भी यह दृश्य लाजवाब दिखता है। आश्रम की लड़कियां हर हफ्ते आसपास के जंगलों में पिकनिक मनाने या शैक्षणिक टूर पर जाती हैं और अपने अनुभव अपनी मासिक पत्रिकाओं सूर्योदय और विजय में प्रकाशित करती हैं।
यहां की मनमोहक खूबसूरती और आबोहवा का यहां की लड़कियों पर कितना अच्छा असर होता है, यह हम इन पत्रिकाओं में उनके अनुभव पढ़ कर और अच्छी तरह जान-समझ पाते हैं। मैं तो आज भी अधिक समय कौसानी में ही बिताती हूं।
बड़ी हस्तियां आई हैं यहां
कौसानी की खूबसूरती ने तो यहां आने वालों को आकर्षित किया ही, राष्ट्रपति महात्मा गांधी से जुड़ी ऐतिहासिकता ने भी बड़ी-बड़ी हस्तियों को यहां आने पर मजबूर किया। इन हस्तियों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह और अरुण शौरी प्रमुख हैं। डॉ. सिंह और अरुण शौरी को यह जगह इतनी पसंद आई कि वे अक्सर आकर यहां रहा करते हैं। प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा को भी कौसानी पसंद थी। उन्होंने कई बार यहां की यात्राएं कीं।
कहां ठहरें
कौसानी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का बेहद लोकप्रिय हिल स्टेशन है और इस कारण यहां ठहरने की भी काफी अच्छी व्यवस्था है। यहां कुमाऊं मंडल विकास निगम का टूरिस्ट रेस्ट हाउस है। यहां का बेस्ट सीजन अप्रैल से जून और सितम्बर से नवम्बर होता है। इस कारण इस दौरान कमरों का किराया भी थोड़ा महंगा हो जाता है और बुकिंग भी एक महीना पहले करा लेना बेहतर होता है। कुमाऊं मंडल के रेस्ट हाउस में डबल बेड स्टैंडर्ड से लेकर सुपर डीलक्स कॉटेज तक हैं, जिनका किराया 500 से 2,200 रुपए के बीच है। इसके अलावा स्टेट बंग्ला,  फॉरेस्ट रेस्ट हाउस और अनासक्ति आश्रम के साथ-साथ कृष्णा माउंट व्यू, सन एन स्नो, स्टेवेल रिजॉर्ट, होटल सागर, त्रिशूल रेस्ट हाउस जैसे ठहरने के दजर्नों ठिकाने हैं। अधिक जानकारी के लिए कुमाऊं मंडल की वेबसाइट www.kmvn.gov.in पर लॉगिन कर जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
कैसे पहुंचें
वायु मार्ग: यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पंत नगर में है, जो 178 किलोमीटर है। जैग्सन और किंगफिशर रेड की नियमित उड़ानें हैं। यहां से टैक्सी द्वारा कौसानी पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो कौसानी से 141 किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तराखंड संपर्क क्रांति और रानीखेत एक्सप्रेस से काठगोदाम तक पहुंच सकते हैं। काठगोदाम से स्थानीय बस या टैक्सी की सेवा ली जा सकती है।
सड़क मार्ग: दिल्ली से कौसानी की दूरी लगभग 431 किलोमीटर है। दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे से उत्तराखंड रोडवेज की बसें कौसानी के लिए दिन भर चलती रहती हैं। आप इसी बस अड्डे से वॉल्वो भी ले सकते हैं, जिसे हल्द्वानी में छोड़ना पड़ेगा।
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08:46, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण

कौसानी उत्तराखंड राज्‍य के अल्‍मोड़ा जिले से 53 किमी.उत्तर में स्थित है। कौसानी,भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल। कौसानी हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराता पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहाँ से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। कोसी नदी और गोमती नदि के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। कौसानी के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे,खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड कहा है।

इतिहास

कौसानी का सबसे पहला परिचय बचपन में पंडित नरेंद्र शर्मा की इन पक्तियों से हुआ था:- यह नई धरा, आकाश नया, यह नया लोक मिल गया मुझे। थी आत्मा जिसके हित अशांत, वह शांत लोक मिल गया मुझे। कौसानी का दूसरा परिचय भी साहित्यिक ही था। धर्मवीर भारती ने अपने एक प्रसिद्ध निबंध ‘ठेले पर हिमालय’ में इसके बारे में काफी कुछ लिखा है। वैसे कौसानी का एक और साहित्यिक परिचय यह भी है कि कौसानी प्रकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली भी है। कौसानी सिर्फ साहित्य के लिए ही महत्त्वपूर्ण जगह नहीं है, इसकी गिनती कुमाऊँ के सबसे सुंदर पर्यटन स्थलों में होती है। कौसानी1890 मीटर की ऊंचाई पर बसा खूबसूरत कस्बा है, जहाँ से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ से आप हिमालय के 350 किलोमीटर लंबे नजारे को एक साथ देख सकते हैं। यहां से देखने पर ऐसा लगता है जैसे त्रिशूल, नंदादेवी और पंचचूली जैसी चोटियां आपके एकदम करीब आकर खड़ी हो गई हों। अगर आप किसी ऐसे पर्यटन स्थल पर जाना चाहते हैं, जहां पर्यटकों की गहमा-गहमी न हो, जहां भीड़ भरे बाजारों से गुजरना दूभर न हो, जहां होटलों और टूर ऑपरेटरों के दलाल आपको परेशान न करें तो कौसानी आपके लिए आदर्श जगह है। ऐसा नहीं है कि कौसानी में पर्यटकों के रेले नहीं आते। रोज दोपहर बीतते-बीतते डेली टूर कराने वाले ऑपरेटरों की बसें वहां पंहुचने लगती हैं। यह लोग सूर्यास्त देख कर लौट जाते हैं। बेशक कौसानी में पहाड़ों की चोटियों पर सूर्य को डूबते देखना एक खूबसूरत अनुभव होता है, लेकिन कौसानी की असली खासियत उसका सूर्यास्त नहीं, सूर्योदय है। कुमाऊं में यह मान्यता है कि सूर्योदय सबसे पहले कौसानी में ही होता है। और लगता है जैसे यह शायद सच भी है। सूर्य को अपने उदय के लिए इससे खूबसूरत जगह भला और कहां मिलेगी। सुबह जब अभी पूरी घाटी में अंधेरा छाया होता है, दूर ऊंची चोटियों के पीछे से लालिमा झांकने लगती है। फिर थोड़ी ही देर में एक चोटी के पीछे से सूर्य अपना सर उठाता है तो पूरी घाटी जैसे रोशनी में नहा उठती है। ऊंचे पहाड़, चीड़ के पेड़, हरी-भरी ढलान, सीढ़ीनुमा खेत- अभी तक जो अंधियारा दिख रहा था, वह सब अचानक ही रंग-बिरंगा दिखने लगता है। दिक्कत सिर्फ यही है कि यह अद्भुत नजारा हर रोज नहीं दिखता, सिर्फ तभी दिखता है, जब आसमान पर बादल या धुंध न छाए हों। कौसानी में सूर्योदय या सूर्यास्त को देखने की सबसे अच्छी जगह है अनासक्ति आश्रम। आश्रम कौसानी की सबसे ऊंची जगह पर बना है।

पर्यटन स्थल

पर्यटकों के लिए कौसानी में घुमने के लिए दो जगहें और हैं, जहाँ पर्यटक आसानी से जा सकते है। एक तो वह घर जहाँ सुमित्र नंदन पंत का जन्म हुआ था। इसे अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। दूसरा है लक्ष्मी आश्रम, जिसे गांधी जी की शिष्या सरला बेन ने बनवाया था। उन्होंने यहाँ लड़कियों के लिए जो आवासीय स्कूल शुरू किया था, वह आज भी चल रहा है। कौसानी से आप ग्वालदम भी जा सकते हैं। ग्वालदम वह जगह है, जहाँ कुमाऊँ और गढ़वाल आपस में मिलते हैं। यहाँ बहुत से सेब के बागान हैं। स्वर्ग से भी सुंदर कहे जाने वाले बेदनी बुग्याल तक जाने का रास्ता यहीं से शुरू होता है। और अगर आप कहीं नहीं जाना चाहते, सिर्फ कुदरत की गोद में आराम करना चाहते हैं तो कौसानी से बेहतर शायद कोई और जगह नहीं है।

अनासक्ति आश्रम

अनासक्ति आश्रम महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बनाया गया था, जिन्होंने 1929 में इस स्थान की यात्रा की थी और इसके प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर इसे ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ की संज्ञा दी थी। यह वही स्थान है, जहां उन्होंने अपनी पुस्तक अनासक्ति योग लिखी थी। आश्रम में गांधी जी के जीवन से जुड़ी पुस्तकों और फोटोग्राफ्स का अच्छा संग्रह है और एक छोटी-सी बुकशॉप भी है। यहां एक छोटा-सा प्रार्थना कक्ष भी है, जहां हर दिन सुबह और शाम प्रार्थना सभा आयोजित होती है। इस जगह के बारे में गांधी जी ने लिखा है- ‘इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाजी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूं कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में करीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित हूं कि हमारे यहां के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं।’ कौसानी के आसपास भी हैं एक से बढ़कर एक नजारे कौसानी जा रहे हैं तो कुछ और समय निकाल कर जाने की योजना बनाएं। जी हां, यहां आसपास अनेक ऐसी जगहें हैं, जो आपको आकर्षित करेंगी और आप मचल पड़ेंगे कि यहां भी चला जाऊं। बागेश्वर, बैजनाथ, अल्मोड़ा, चौकोड़ी, लखुड़ियार आदि ऐसी ही जगहें हैं। बैजनाथ उत्तराखंड का काफी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। कौसानी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैजनाथ गोमती नदी के तट पर स्थित है। पर्यटकों के लिए यहां का सर्वाधिक आकर्षण के केन्द्र 12वीं सदी में निर्मित शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर, सूर्य मंदिर हैं। बागेश्वर कौसानी से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। सरयू और गोमती के संगम पर स्थित बागेश्वर भगवान शिव के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। चौकोड़ी कौसानी से 87 किलोमीटर दूर है, जहां से हिमालय की चोटी का नजारा देखने के लिए पर्यटक खिंचे चले आते हैं। लखुड़ियार की गुफाएं और पेंटिंग पर्यटकों में खासी लोकप्रिय हैं। कौसानी से 71 किलोमीटर की दूरी तय कर आप यहां पहुंच सकते हैं। इस रास्ते पर अल्मोड़ा है, जो उत्तराखंड के कुछ प्रमुख हिल स्टेशनों में से एक है। कोट ब्रह्ररी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जो यहां से 21 किलोमीटर की दूरी पर तेहलीहाट में स्थित है। कौसानी और आसपास के क्षेत्र में चाय के बागान भी ऐसी हरियाली का आनन्द देते हैं, मानो ईश्वर ने हरा कालीन बिछा दिया हो। चाय बागानों में घूमने के साथ-साथ फैक्ट्रियों में चाय को तैयार होते देख सकते हैं। हिमालय का अद्भुत नजारा देखना है तो कौसानी बेस्ट है राधा भट्ट, अध्यक्ष-लक्ष्मी आश्रम (कौसानी) व गांधी पीस फाउंडेशन (दिल्ली) मैं पहली बार 1951 में यहां के लक्ष्मी आश्रम में आई थी, जिसका पूरा नाम कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल है। तब यहां कुछ दुकानें थीं और घना जंगल था। इन सबके बीच जो नजारा मन को अपनी ओर खींच लेता था, वह था हिमालय का दर्शन। वह नजारा अद्भुत था, अद्भुत है। तब मैं नयी थी और यह नजारा भी मेरे लिए नया था। लगता था कि हाथ बढ़ाऊंगी और हिमालय को छू लूंगी। तब शहर में घर भी कम थे और आसपास तो खूबसूरत जंगल थे ही। अब तो खेतों में भी बस्तियां बन गई हैं और पर्यटन विभाग ने भी पर्यटकों के लिए यहां काफी सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं। कौसानी से कत्यूर और बोरारी घाटियां मन को खूब लुभाती थीं, जो धान के खेतों से लहलहाती हुई और अधिक खूबसूरत लगती थीं। कत्यूर घाटी में बैजनाथ का मंदिर है जिसमें पार्वती की एक दुर्लभ मूर्ति है। वहां हमारे आश्रम की बालिकाएं घूमने जाती हैं। पास में ही गोमती नदी है, जहां मछलियों को खिलाने में भी आनन्द आता है। यहां प्राकृतिक बहाव में तैरती बड़ी-बड़ी मछलियों को लोग मंदिर की मछलियां मानते हैं और उनका शिकार नहीं करते। यहां कोसी नदी जहां से निकलती है, वहां पिनाथ है, जो आज पिनाथेश्वर हो गया है। पिनाथेश्वर से तो हिमालय का नजारा काफी मनमोहक दिखता ही है, हमारे आश्रम से भी यह दृश्य लाजवाब दिखता है। आश्रम की लड़कियां हर हफ्ते आसपास के जंगलों में पिकनिक मनाने या शैक्षणिक टूर पर जाती हैं और अपने अनुभव अपनी मासिक पत्रिकाओं सूर्योदय और विजय में प्रकाशित करती हैं। यहां की मनमोहक खूबसूरती और आबोहवा का यहां की लड़कियों पर कितना अच्छा असर होता है, यह हम इन पत्रिकाओं में उनके अनुभव पढ़ कर और अच्छी तरह जान-समझ पाते हैं। मैं तो आज भी अधिक समय कौसानी में ही बिताती हूं। बड़ी हस्तियां आई हैं यहां कौसानी की खूबसूरती ने तो यहां आने वालों को आकर्षित किया ही, राष्ट्रपति महात्मा गांधी से जुड़ी ऐतिहासिकता ने भी बड़ी-बड़ी हस्तियों को यहां आने पर मजबूर किया। इन हस्तियों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह और अरुण शौरी प्रमुख हैं। डॉ. सिंह और अरुण शौरी को यह जगह इतनी पसंद आई कि वे अक्सर आकर यहां रहा करते हैं। प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा को भी कौसानी पसंद थी। उन्होंने कई बार यहां की यात्राएं कीं। कहां ठहरें कौसानी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का बेहद लोकप्रिय हिल स्टेशन है और इस कारण यहां ठहरने की भी काफी अच्छी व्यवस्था है। यहां कुमाऊं मंडल विकास निगम का टूरिस्ट रेस्ट हाउस है। यहां का बेस्ट सीजन अप्रैल से जून और सितम्बर से नवम्बर होता है। इस कारण इस दौरान कमरों का किराया भी थोड़ा महंगा हो जाता है और बुकिंग भी एक महीना पहले करा लेना बेहतर होता है। कुमाऊं मंडल के रेस्ट हाउस में डबल बेड स्टैंडर्ड से लेकर सुपर डीलक्स कॉटेज तक हैं, जिनका किराया 500 से 2,200 रुपए के बीच है। इसके अलावा स्टेट बंग्ला,  फॉरेस्ट रेस्ट हाउस और अनासक्ति आश्रम के साथ-साथ कृष्णा माउंट व्यू, सन एन स्नो, स्टेवेल रिजॉर्ट, होटल सागर, त्रिशूल रेस्ट हाउस जैसे ठहरने के दजर्नों ठिकाने हैं। अधिक जानकारी के लिए कुमाऊं मंडल की वेबसाइट www.kmvn.gov.in पर लॉगिन कर जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कैसे पहुंचें वायु मार्ग: यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पंत नगर में है, जो 178 किलोमीटर है। जैग्सन और किंगफिशर रेड की नियमित उड़ानें हैं। यहां से टैक्सी द्वारा कौसानी पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो कौसानी से 141 किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तराखंड संपर्क क्रांति और रानीखेत एक्सप्रेस से काठगोदाम तक पहुंच सकते हैं। काठगोदाम से स्थानीय बस या टैक्सी की सेवा ली जा सकती है। सड़क मार्ग: दिल्ली से कौसानी की दूरी लगभग 431 किलोमीटर है। दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे से उत्तराखंड रोडवेज की बसें कौसानी के लिए दिन भर चलती रहती हैं। आप इसी बस अड्डे से वॉल्वो भी ले सकते हैं, जिसे हल्द्वानी में छोड़ना पड़ेगा। 00