"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-4 ब्राह्मण-4": अवतरणों में अंतर
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13:45, 13 अक्टूबर 2011 का अवतरण
- बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय चौथा का यह चौथा ब्राह्मण है।
मुख्य लेख : बृहदारण्यकोपनिषद
- इस ब्राह्मण में शरीर त्यागने से पूर्व 'आत्मा' और 'शरीर' की जो स्थिति होती है, उसका विवेचन किया गया है।
- याज्ञवल्क्य ऋषि बताते हैं कि जब आत्मा शरीर छोड़ने लगता है, तब वह इन्द्रियों में व्याप्त अपनी समस्त शक्ति को समेट लेता है और हृदय क्षेत्र में समाहित होकर एक 'लिंग शरीर' का सृजन कर लेता है।
- यह लिंग शरीर ही आत्मा को अपने साथ लेकर शरीर छोड़ता है।
- यह जिस मार्ग से निकलता है, वह अंग तीव्र आवेग से खुला रह जाता है।
- उस समय आत्मा पूरी तरह चेतनामय होता है।
- उसमें जीव की प्रबलतम वासनाओं और संस्कारों का आवेग रहता है।
- उन्हीं कामनाओं के आधार पर वह नया शरीर धारण करता है। जैसे स्वर्णकार स्वर्ण को पिघलाकर एक रूप की रचना करता है, उसी प्रकार 'आत्मा' पंचभूतों के मिश्रण से एक नये शरीर की रचना कर लेता है।
- जो पुरुष निष्काम भाव से शरीर छोड़ते हैं, वे जीवन-मरण के चक्र से छूटकर मुक्त हो जाते हैं और सदैव के लिए ब्रह्म की दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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