"अनमोल वचन 11": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* बिना विवेक के वीरता महासमुद में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | * बिना विवेक के वीरता महासमुद में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | ||
* वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। ~ महात्मा गांधी | * वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। ~ महात्मा गांधी | ||
===संसार को बाजार समझो=== | |||
* धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं। ~ चाणक्यनीति | |||
* परोपकार संतों का सहज स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान हैं, जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ | |||
* इस संसार को बाजार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। मूर्ख और गंवार व्यर्थ ही मर जाते हैं, लाभ नहीं पाते। ~ विद्यापति | |||
* समय आए बिना वज्रपात होने पर भी मृत्यु नहीं होती और समय आ जाने पर पुष्प भी प्राणी के प्राण ले लेता है। ~ कल्हण | |||
* जो साधक कामनाओं को पार कर गए हैं, वस्तुत: वे ही मुक्त पुरुष हैं। ~ आचारांग | |||
===सावधानी से करें धन का उपयोग=== | |||
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे | |||
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास | |||
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर | |||
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योग वासिष्ठ | |||
* श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर | |||
===सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता=== | ===सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता=== | ||
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* सज्जन पुरुष दुष्टों के संसर्ग से अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते। ~ क्षेमेन्द्र | * सज्जन पुरुष दुष्टों के संसर्ग से अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते। ~ क्षेमेन्द्र | ||
* सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है। ~ श्री हर्ष | * सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है। ~ श्री हर्ष | ||
===सत्य सदैव निराला होता है=== | |||
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। ~ महोपनिषद | |||
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। ~ महात्मा गांधी | |||
* झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई | |||
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | |||
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | |||
===संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं=== | |||
* हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। ~ गुरुनानक | |||
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मतत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य | |||
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास | |||
* संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं है, स्वस्थ पवन की तरह बहना है। ~ रांगेय राघव | |||
===सारा संसार ही कुटुंब है=== | ===सारा संसार ही कुटुंब है=== | ||
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* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास | * जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास | ||
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद | * सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद | ||
===सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है=== | |||
* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद | |||
* सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी | |||
* सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है। ~ अरस्तु | |||
* जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी | |||
* सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है। ~ शेक्सपियर | |||
===संसार और स्वप्न=== | ===संसार और स्वप्न=== | ||
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* जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है। ~ सुभाष चन्द्र बोस | * जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है। ~ सुभाष चन्द्र बोस | ||
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ | * आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ | ||
===संसार में रहो, संसार को अपने अंदर मत रखो=== | |||
* दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। ~ एपिक्युरस | |||
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद | |||
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा | |||
* जो श्रम नहीं करता, दूसरों के श्रम से जीवित रहता है, सबसे बड़ा हिंसक होता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | |||
* उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना | |||
===सौंदर्य पवित्रता में रहता है=== | |||
* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद | |||
* सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी | |||
* सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है। ~ अरस्तु | |||
* जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी | |||
* सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है। ~ शेक्सपियर | |||
===सुदिन सबके लिए आते हैं=== | ===सुदिन सबके लिए आते हैं=== | ||
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* पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो। ~ यूरोपिडीज | * पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो। ~ यूरोपिडीज | ||
* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है। ~ जयशंकर प्रसाद | * सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
===मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है=== | |||
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी | |||
* वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कालरिज | |||
* जो जिसका प्रिय व्यक्ति है, वह उसका कोई विलक्षण धन है। प्रिय व्यक्ति कुछ न करता हुआ भी सामीप्यादि दुखों को दूर कर देता है। ~ भवभूति | |||
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है। ~ भास | |||
===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके=== | ===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके=== | ||
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* सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी | * सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी | ||
* निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा | * निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा | ||
===प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तो=== | |||
* जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो, तब तुम अपने आप से, एक दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान | |||
* सीखे गए को भूल जाने पर भी जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर | |||
* सब कुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योग वसिष्ठ | |||
* दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है। ~ विष्णु शर्मा | |||
* वह वैभव, जिसका कभी पतन संभव न हो, साधुओं और फकीरों का ही है। ~ हाफिज | |||
* समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को खोज निकालती है। परंतु विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन | |||
===प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें=== | ===प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें=== | ||
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* बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि। ~ भल्लट भट्ट | * बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि। ~ भल्लट भट्ट | ||
* पतित अथवा पथभ्रष्ट होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है। ~ क्षेमेंद्र | * पतित अथवा पथभ्रष्ट होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है। ~ क्षेमेंद्र | ||
===प्रसन्न देवता सद्बुद्धि देते हैं=== | |||
* जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि | |||
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, कर्म ही उसे हेय या पूजनीय बनाता है। ~ चाणक्य | |||
* राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू | |||
* देवता प्रसन्न होने पर कुछ नहीं देते, केवल सद्बुद्धि ही प्रदान करते हैं। ~ श्री हर्ष | |||
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है। ~ कालिदास | |||
===पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए=== | ===पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए=== | ||
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* दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। ~ तुकाराम | * दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। ~ तुकाराम | ||
* तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर | * तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर | ||
===पाना है, तो देना सीखो=== | |||
* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है। ~ महात्मा गांधी | |||
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। ~ रामचंद्र शुक्ल | |||
* यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए। ~ लाओ - त्से | |||
===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं=== | ===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं=== | ||
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* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण | * संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण | ||
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा | * कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा | ||
===पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं=== | |||
* यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें जरूरत पड़ सकती है, संचित करते हो और जिनकी रखवाली करते हो। ~ खलील जिब्रान | |||
* मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान नहीं बन सकता। ~ सुभाषचंद बोस | |||
* छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं। ~ नारायण पंडित | |||
* कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या | |||
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल, अन्न और सुभाषित। मूर्ख लोग ही पाषाण खंडों को रत्नों का नाम देते हैं। ~ चाणक्यनीति | |||
* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है। ~ महात्मा गांधी | |||
===पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है=== | ===पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है=== | ||
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* गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु मूर्ख के सिवा कोई उसे जारी नहीं रख सकता। ~ सिसरो | * गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु मूर्ख के सिवा कोई उसे जारी नहीं रख सकता। ~ सिसरो | ||
* जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं। ~ अज्ञात | * जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं। ~ अज्ञात | ||
===प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता=== | |||
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ | |||
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं। ~ अज्ञात | |||
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा | |||
* प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता। ~ कार्लाइल | |||
===प्रेम की शक्ति=== | |||
* जगत में जो भी उन्नति वह प्रेम की शक्ति से ही हुई है। दोष बता बताकर कभी भी अच्छा काम नहीं किया जा सकता। ~ विवेकानंद | |||
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम | |||
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय। ~ बंकिमचंद्र | |||
===प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है=== | ===प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है=== | ||
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* जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी | * जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी | ||
* हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट(कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास) ~ कोलरिज | * हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट(कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास) ~ कोलरिज | ||
===प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है=== | |||
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन | |||
* सुरूप हो या कुरूप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है। ~ अतिरात्रयाजी | |||
* परस्पर न मिलते हुए, दूरस्थित प्राणियों में भी स्नेह देखा जाता है, जैसे सूर्य गगन तल में रहता है, परंतु नीचे पृथ्वी पर कमलिनी विकसित होती है। ~ नयनंदी | |||
* प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है। ~ महात्मा गांधी | |||
===प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है=== | ===प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है=== | ||
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* शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझते हैं। ~ अश्वघोष | * शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझते हैं। ~ अश्वघोष | ||
* उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव | * उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव | ||
===वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है=== | |||
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद | |||
* वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति | |||
* अमृत और मृत्यु- दोनों ही इस शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास | |||
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र | |||
===वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले=== | |||
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। ~ विष्णु शर्मा | |||
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र | |||
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। ~ कार्लाइल | |||
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण | |||
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। ~ चाणक्य | |||
===विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है=== | |||
* श्रेष्ठ व्यक्ति का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थ से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर | |||
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। इसलिए धर्म मूर्ख लोगों के लिए भी है। ~ महात्मा गांधी | |||
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेमचंद | |||
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा दे रहा है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर | |||
===विष पीकर शिव सुख से जागते हैं=== | |||
* विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं। ~ अज्ञात | |||
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा | |||
* लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता, वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है। ~ वेदव्यास | |||
* तू छोटा बन, बस छोटा बन। गागर में आएगा सागर। ~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | |||
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष | |||
* जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा। ~ श्रीमां | |||
===वाचाल के कथन रुचिकर नहीं लगते=== | |||
* जैसे नमक के बिना अन्न स्वादरहित और फीका लगता है, वैसे ही वाचाल के कथन निस्सार होते हैं और किसी को रुचिकर नहीं लगते। ~ तुकाराम | |||
* गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता है। ~ अमोघवर्ष | |||
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। ~ मिल्टन | |||
* असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। ~ शेख सादी | |||
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते हैं। ~ भर्तृहरि | |||
===विनयी जनों को क्रोध कहां=== | |||
* आपत्तिकाल में प्रकृति बदल देना अच्छा, परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छी नहीं। ~ अभिनंद | |||
* विनयी जनों को क्रोध कहां? और निर्मल अंत:करण में लज्जा का प्रवेश कहां? ~ भास | |||
* जो जमीन पर बैठता है, उसे कौन नीचे बिठा सकता है, जो सबका दास है, उसे कौन दास बना सकता है? ~ महात्मा गांधी | |||
* विद्वान तो बहुत होते हैं, लेकिन विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले कम होते हैं। ~ सरदार पटेल | |||
* मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, परंतु वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है। ~ इस्माइल इब्न अबीबकर | |||
===विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है=== | ===विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है=== | ||
पंक्ति 964: | पंक्ति 1,104: | ||
* अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति | * अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति | ||
* भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं कर सकता? ~ हितोपदेश | * भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं कर सकता? ~ हितोपदेश | ||
===भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग करते हैं=== | |||
* भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग करते हैं। बुद्धिमान तो पुरुषार्थ के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं। ~ योगवासिष्ठ | |||
* मेधावी पुरुष, थोड़ी सी भी आग को फूंक मार कर बढ़ा लेने की भांति, थोड़े से मूल धन से अपने को उन्नत कर लेता है। ~ जातक | |||
* अपने उपाय से ही उपकारी का उपाय करना चाहिए। उपकार बड़ा है या छोटा- इस प्रकार का विद्वानों का विशेष आग्रह नहीं होता। ~ श्रीहर्ष | |||
* प्राणी अकेले जन्म लेता है और अकेले मरता है। वह अकेले ही पुण्य और पाप का फल भोगता है। ~ भागवत | |||
* ठीक समय पर प्रारंभ की गई नीतियां अवश्य ही फल प्रदान करती हैं। ~ कालिदास | |||
===भविष्य को वर्तमान ही खरीदता है=== | |||
* जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए। ~ हरिकृष्ण प्रेमी | |||
* हम ऐसा मानने की गलती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। ~ महात्मा गांधी | |||
* भविष्य को वर्तमान ही खरीदता है। ~ जॉनसन | |||
* दूसरे को चुप करने के लिए पहले खुद चुप हो जाओ। ~ सेनेका | |||
* प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, मोह प्रतिदान चाहता है। ~ अश्विनी कुमार दत्त | |||
===भलाई करो इसी में कल्याण है=== | ===भलाई करो इसी में कल्याण है=== | ||
पंक्ति 1,024: | पंक्ति 1,178: | ||
* अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। - रामतीर्थ | * अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। - रामतीर्थ | ||
* उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। - अज्ञात | * उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। - अज्ञात | ||
===हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें=== | |||
* मेरा मुकुट मेरे हृदय में है, न कि सिर पर। मेरा मुकुट न तो हीरों से जटित है और न ही रत्न जटित। मेरा मुकुट दिखाई भी नहीं देता। मेरे मुकुट का नाम है संतोष, और राजा लोग कदाचित ही इसे धारण करते हैं। ~ शेक्सपियर | |||
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव | |||
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत | |||
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी | |||
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद | |||
===हर ढंग सच हो सकता है=== | |||
* सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। ~ शिवानंद | |||
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद | |||
* अपनी बुद्धि से साधु होना कहीं अच्छा है, बजाय कि पराई बुद्धि से राजा बनना। ~ उड़िया लोकोक्ति | |||
* मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठकर बौद्धिक बल में परिणत होती है। ~ कर्त्तव्य दर्शन | |||
===हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है=== | ===हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है=== | ||
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* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल | * पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल | ||
* अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात | * अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात | ||
===ये तीन दुर्लभ हैं=== | |||
* संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन, दूसरे, सत्य- शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज | |||
* ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। ~ शंकराचार्य | |||
* जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है। ~ क्षेमेंद्र | |||
* स्वभावत : कुटिल पुरुष द्वारा किया गया विद्या का अभ्यास दुष्टता को बढ़ाने वाला ही होता है। ~ मुरारि | |||
===ये तो पहिए के घेरे के समान हैं=== | ===ये तो पहिए के घेरे के समान हैं=== | ||
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* जिसमें लोभ है, उसे दूसरे अवगुण की क्या आवश्यकता? ~ भर्तृहरि | * जिसमें लोभ है, उसे दूसरे अवगुण की क्या आवश्यकता? ~ भर्तृहरि | ||
* मनुष्य बूढ़ा हो जाता है परंतु लोभ बूढ़ा नहीं होता। ~ सुदर्शन | * मनुष्य बूढ़ा हो जाता है परंतु लोभ बूढ़ा नहीं होता। ~ सुदर्शन | ||
===लोकनिंदा का भय क्यों होना चाहिए और क्यों नहीं=== | |||
* लघुता में प्रभुता का निवास है और प्रभुता, लघुता का भवन है। दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं भी नहीं पहनता। ~ दयाराम | |||
* लोकनिंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य मार्ग में बाधक हो तो उससे डरना कायरता है। ~ प्रेमचंद | |||
* ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ होता है। इस तरह से लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन | |||
* प्रकृति-पुरुष के संयोग से ब्रह्मांड की रचना ही रासलीला है। इस रासलीला में परमात्मा की सहचरी माया या प्रकृति ही राधा है। ~ गंगेश्वरानंद | |||
* काम करने का इच्छुक किंतु काम पाने में असमर्थ व्यक्ति संभवत: इस विश्व में भाग्य की असमानता द्वारा प्रदर्शित करुणतम दृश्य है। ~ कार्लाइल | |||
===लज्जा और संकोच करने पर ही शील=== | ===लज्जा और संकोच करने पर ही शील=== | ||
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* हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि | * हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि | ||
* जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं। ~ ऋग्वेद | * जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं। ~ ऋग्वेद | ||
===बलवान का बल उसकी विनयशीलता=== | |||
* बलवान का बल उसकी विनयशीलता में है। शत्रुओं को परिवतिर्त करने के लिए बुद्धिमान का शस्त्र यही है। ~ तिरुवल्लुवर | |||
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूद्रक | |||
* दयालुता से दयालुता का और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। ~ सैमुअल स्माइल्स | |||
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल | |||
* समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है। ~ चाणक्यनीति | |||
===बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है=== | ===बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है=== |
21:10, 21 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ