"अनमोल वचन 10": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। ~ राधाकृष्णन | * अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। ~ राधाकृष्णन | ||
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। ~ महर्षि अरविन्द | * अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। ~ महर्षि अरविन्द | ||
===अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा=== | ===अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा=== | ||
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* सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर | * सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर | ||
* कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। ~ प्रेमचंद | * कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। ~ प्रेमचंद | ||
===अन्याय किसी के साथ मत कर करो=== | |||
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस | |||
* शब्दों का अर्थ हमेशा स्पष्ट होता है जब तक कि हम जानबूझ कर उनको झूठा अर्थ न प्रदान करें। ~ तोलस्तोय | |||
* मैं विश्वास का आदर करता हूं परंतु शंका ही है जो तुम्हें शिक्षा प्राप्त कराती है। ~ विलसन मिजनर | |||
* सबसे प्रेम करो, कुछ पर विश्वास करो, अन्याय किसी के साथ मत करो। ~ शेक्सपियर | |||
===अक्रोध से क्रोध को जीतें=== | |||
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष विपत्ति में भी नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि | |||
* वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके उससे कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुवर | |||
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलनेवाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद | |||
* कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा। ~ तैलंग स्वामी | |||
===अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा=== | |||
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी | |||
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य | |||
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास | |||
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर | |||
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होमेस | |||
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है, तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास | |||
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद | |||
===अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा=== | ===अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा=== | ||
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* श्रद्धा धर्म की अनुगामिनी है। जहां धर्म का स्फुरण दिखाई पड़ता है, वहीं श्रद्धा टिकती है। ~ रामचंद्र शुक्ल | * श्रद्धा धर्म की अनुगामिनी है। जहां धर्म का स्फुरण दिखाई पड़ता है, वहीं श्रद्धा टिकती है। ~ रामचंद्र शुक्ल | ||
* हमने जहां श्रम किया है, वहां प्रेम भी करते हैं। ~ एमर्सन | * हमने जहां श्रम किया है, वहां प्रेम भी करते हैं। ~ एमर्सन | ||
===इच्छा प्रबल हो, तो पा लेंगे सब कुछ=== | |||
* दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं। ~ जॉनसन | |||
* महान उपलब्धियों के लिए कर्म ही नहीं करना चाहिए, स्वप्न भी देखना चाहिए, योजना ही नहीं बनानी चाहिए, विश्वास भी करना चाहिए। ~ अनातोले फ्रांस | |||
* उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं। ~ वाल्मीकि | |||
* जो जिस वस्तु को पाने की इच्छा करता है, वह उसको अवश्य ही प्राप्त कर लेता है यदि बीच में ही प्रयत्न को न छोड़ दे। ~ योगवाशिष्ठ | |||
==ऐ== | ==ऐ== | ||
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* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी | * दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी | ||
* कर्म से हीन बन जाना संन्यास नहीं है। कर्म के समुद को पार कर जाना ही संन्यास है। ~ लक्ष्मी नारायण मिश्र | * कर्म से हीन बन जाना संन्यास नहीं है। कर्म के समुद को पार कर जाना ही संन्यास है। ~ लक्ष्मी नारायण मिश्र | ||
* सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास ( महाभारत ) | * सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास (महाभारत) | ||
===कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है=== | ===कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है=== | ||
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* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार | * विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार | ||
* जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति | * जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति | ||
===गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं=== | ===गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं=== | ||
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* जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग | * जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग | ||
* विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास | * विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास | ||
===गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है=== | ===गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है=== | ||
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* गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात | * गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात | ||
* मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। ~ गोपीनाथ कविराज | * मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। ~ गोपीनाथ कविराज | ||
===गुण ही गुण को परखते हैं=== | |||
* जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। ~ चाणक्य | |||
* महान की उपासना करना स्वयं महान होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर | |||
* प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं। ~ एमर्सन | |||
* गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात | |||
===गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता=== | ===गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता=== | ||
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* गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्गसंहिता | * गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्गसंहिता | ||
* कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष | * कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष | ||
===गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं=== | |||
* सज्जन स्वयं ही दूसरे के हित के लिए उद्यम करते हैं, उन्हें किसी के द्वारा याचना की प्रतीक्षा नहीं होती। ~ भतृहरि | |||
* गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। कोयल ही वसंत जानती है, कौवा नहीं। ~ अज्ञात | |||
* बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे। ~ वेदव्यास | |||
* जैसा सुख-दु:ख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख उसी के परिणामस्वरूप स्वयं को प्राप्त होता है। ~ अज्ञात | |||
===गुणों से गुरुता होती है=== | |||
* रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात। ~ कालिदास | |||
* उपकार के बदले में उपकार चाहने वाले मनुष्य को विपत्ति के रूप में फल मिलता है। ~ भास | |||
* स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। ~ चाणक्य | |||
* गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से। ~ भारवि | |||
* गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है। ~ मनुस्मृति | |||
==घ== | ==घ== | ||
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* अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। ~ डिजराइली | * अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। ~ डिजराइली | ||
* ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर | * ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर | ||
===चलने वाले के पैर में श्री देवी=== | |||
* उस मनुष्य का विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है। ~ जॉर्ज सांतायना | |||
* मानव केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद | |||
* अपने में अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल | |||
* स्थिर रहनेवाले के पैर में दुर्भाग्य देवी, चलने वाले के पैर में श्री देवी। ~ तमिल लोकोक्ति | |||
==छ== | ==छ== | ||
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* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। ~ गुरु नानक | * जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। ~ गुरु नानक | ||
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स ऐंथनी फ्राउड | * जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स ऐंथनी फ्राउड | ||
===जंगली पशु मनोरंजन के लिए हत्या नहीं करते=== | |||
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी | |||
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद | |||
* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान | |||
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड | |||
===जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है=== | ===जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है=== |
17:12, 22 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ