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-अजंता | -अजंता | ||
-[[मथुरा]] | -[[मथुरा]] | ||
||सुल्तानगंज से एक विशाल गुप्तकालीन बौद्ध प्रतिमा मिली है, जो वर्तमान में बर्मिघम [[इंग्लैण्ड]] के संग्रहालय में सुरक्षित है। यह बुद्ध प्रतिमा दो टन से भी अधिक भारी तथा दो मीटर ऊँची है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुल्तानगंज]] | |||
{संगम काल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर कौन सा था? | {संगम काल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर कौन सा था? | ||
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-[[मदुरा]] | -[[मदुरा]] | ||
{[[खजुराहो | {[[खजुराहो]] में स्थित चतुर्भुज मंदिर का निर्माण किस चंदेल शासक ने करवाया था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[यशोवर्मन]] | |||
-[[धंगदेव]] | -[[धंगदेव]] | ||
-पृथ्वीवर्मन | |||
-[[गंडदेव]] | -[[गंडदेव]] | ||
{[[दिल्ली]] के '[[तुग़लक़ वंश]]' का संस्थापक कौन था? | {[[दिल्ली]] के '[[तुग़लक़ वंश]]' का संस्थापक कौन था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] | |||
-[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] | -[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] | ||
[[फ़िरोज़शाह तुग़लक़]] | |||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
|| | ||[[चित्र:The-Tomb-Of-Ghayasuddin-Tughlak.jpg|ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा, तुग़लकाबाद|100px|right]]ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-1325 ई.) के नाम से 8 सितम्बर, 1320 को [[दिल्ली]] के सिंहासन पर बैठा। इसे [[तुग़लक़ वंश]] का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार [[मंगोल]] आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह [[क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी]] के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] | ||
{[[बहमनी वंश]] के किस शासक को 'दक्कन की लोमड़ी' कहा गया? | {[[बहमनी वंश]] के किस शासक को 'दक्कन की लोमड़ी' कहा गया? | ||
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-अलाउद्दीन हुमायूँ | -अलाउद्दीन हुमायूँ | ||
-कलीम उल्लाह | -कलीम उल्लाह | ||
-अलाउद्दीन शाह | |||
+महमूदशाह | |||
{मनसब किसे दिया जाता था? | {मनसब किसे दिया जाता था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-केवल अमीरों को | |||
-केवल सैन्य अधिकारियों को | -केवल सैन्य अधिकारियों को | ||
+राज्य के सभी अधिकारियों को | |||
-राजा के सगे सम्बन्धियों को | -राजा के सगे सम्बन्धियों को | ||
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|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[गुरु रामदास]] | -[[गुरु रामदास]] | ||
-[[शाहजी भोंसले|पिता शाहजी भोंसले]] | |||
+दादाजी कोंणदेव | |||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
{किस जाट नेता को 'प्लेटो' की उपाधि दी गई? | {किस जाट नेता को 'प्लेटो' की उपाधि दी गई? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[बदनसिंह]] | -[[बदनसिंह]] | ||
-गोकला | |||
-[[राजाराम]] | -[[राजाराम]] | ||
-[[सूरजमल]] | +[[सूरजमल]] | ||
||[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|राजा सूरजमल|100px|right]]राजा सूरजमल सुयोग्य शासक था। उसने ब्रज में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य को बना इतिहास में गौरव प्राप्त किया। उसके शासन का समय सन 1755 से सन 1763 है। वह सन 1755 से कई साल पहले से अपने पिता बदनसिंह के शासन के समय से ही वह राजकार्य सम्भालता था।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरजमल]] | |||
{[[मराठा साम्राज्य]] की सबसे | {[[मराठा साम्राज्य]] की सबसे बहादुर महिला कौन थी? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[ताराबाई]] | |||
-येसूबाई | -येसूबाई | ||
-सईबाई निम्बाकर | |||
-सोयराबाई | -सोयराबाई | ||
||ताराबाई एक अद्धितीय उत्साह वाली महिला थी। ख़ाफ़ी ख़ाँ जैसे कटु आलोचक तक ने स्वीकार किया है कि, वह चतुर तथा बुद्धिमती स्त्री थी तथा दीवानी एवं फ़ौजी मामलों की अपनी जानकारी के लिए अपने पति के जीवन काल में ही ख्याति प्राप्त कर चुकी थी।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ताराबाई]] | |||
{कौन विदेशी आक्रमणकारी '[[कोहिनूर हीरा]]' एवं 'मयूर सिंहासन' को लूटकर अपने साथ स्वदेश ले गया? | {कौन विदेशी आक्रमणकारी '[[कोहिनूर हीरा]]' एवं 'मयूर सिंहासन' को लूटकर अपने साथ स्वदेश ले गया? |
06:43, 30 अक्टूबर 2011 का अवतरण
इतिहास
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