"गुरु अमरदास": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} '''गुरु अमरदास''' (जन्म- 5 अप्रैल, 1479 बसरका ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{पुनरीक्षण}}
'''गुरु अमरदास''' (जन्म- [[5 अप्रैल]], 1479 बसरका गाँव, [[अमृतसर]]; मृत्यु- [[1 सितम्बर]] 1574, अमृतसर) [[सिक्ख|सिक्खों]] के तीसरे गुरु थे।  
[[चित्र:Guru-Amar-Das.jpg|गुरू अमर दास|thumb|200px|]]
'''गुरु अमरदास''' (जन्म- [[5 अप्रैल]], 1479 बसरका गाँव, [[अमृतसर]]; मृत्यु- [[1 सितम्बर]] 1574, अमृतसर) [[सिक्ख|सिक्खों]] के तीसरे गुरु थे।  
==परिचय==
==परिचय==
गुरू अमर दास जी सिक्ख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने [[गुरु नानक]] जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया। तृतीय नानक' गुरू अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल 1479 अमृतसर के बसरका गाँव में हुआ था। उनके पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर जी एक सनातनी हिन्दू थे। गुरू अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। अमरदास की चार संतानें थी।  
गुरू अमर दास जी सिक्ख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने [[गुरु नानक]] जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया। तृतीय नानक' गुरू अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल 1479 अमृतसर के बसरका गाँव में हुआ था। उनके [[पिता]] तेज भान भल्ला जी एवं [[माता]] बख्त कौर जी एक सनातनी [[हिन्दू]] थे। गुरू अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। अमरदास की चार संतानें थी।  
==समाज सुधार==
==समाज सुधार==
गुरु अमरदास जी ने सतीप्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यु एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन की छाप छोड़ी।<ref>{{cite web |url=http://www.sangatsansar.com/index3.asp?sslid=963&subsublinkid=957&langid=2 |title=गुरू अमर दास जी |accessmonthday=[[17 नवम्बर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=संगत संसार |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
गुरु अमरदास जी ने [[सती प्रथा]] का प्रबल विरोध किया। उन्होंने [[विधवा विवाह]] को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यु एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन की छाप छोड़ी।<ref>{{cite web |url=http://www.sangatsansar.com/index3.asp?sslid=963&subsublinkid=957&langid=2 |title=गुरू अमर दास जी |accessmonthday=[[17 नवम्बर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=संगत संसार |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
==गुरुपद==  
==गुरुपद==  
गुरु अमरदास आरंभ में वैष्णव मत के थे और खेती तथा व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे। एक बार इन्हें गुरु नानक का पद सुनने को मिला उससे प्रभावित हो कर अमरदास सिक्खों के दूसरे [[गुरु अंगद]] के पास गए और उनके शिष्य बन गए। गुरु अंगद ने 1552 में अपने अंतिम समय में इन्हें गुरुपद प्रदान किया। उस समय अमरदास की उम्र 73 वर्ष की थी। परंतु अगंद के पुत्र दातू ने इनका अपमान किया।  
गुरु अमरदास आरंभ में [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव मत]] के थे और खेती तथा व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे। एक बार इन्हें गुरु नानक का पद सुनने को मिला उससे प्रभावित हो कर अमरदास सिक्खों के दूसरे [[गुरु अंगद]] के पास गए और उनके शिष्य बन गए। गुरु अंगद ने 1552 में अपने अंतिम समय में इन्हें गुरुपद प्रदान किया। उस समय अमरदास की उम्र 73 वर्ष की थी। परंतु अगंद के पुत्र दातू ने इनका अपमान किया।  
==रचना==  
==रचना==  
अमरदास के कुछ पद गुरु ग्रंथ साहब में संगृहीत हैं। इनकी एक प्रसिद्ध रचना 'आनंद' है, जो उत्सवों में गाई जाती है। इन्ही के आदेश पर चौथे गुरु रामदास ने अमृतसर के निकट 'संतोषसर' नाम का तालाब खुदवाया था जो अब गुरु अमरदास के नाम पर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध है।  
अमरदास के कुछ पद गुरु ग्रंथ साहब में संगृहीत हैं। इनकी एक प्रसिद्ध रचना 'आनंद' है, जो उत्सवों में गाई जाती है। इन्ही के आदेश पर चौथे गुरु रामदास ने अमृतसर के निकट 'संतोषसर' नाम का तालाब खुदवाया था जो अब गुरु अमरदास के नाम पर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध है।  
पंक्ति 17: पंक्ति 18:
{{cite book | last =शर्मा | first =लीलाधर  | title =भारतीय चरित कोश  | edition = | publisher =शिक्षा भारती, दिल्ली | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय  | language =हिन्दी  | pages =पृष्ठ 233 | chapter =}}
{{cite book | last =शर्मा | first =लीलाधर  | title =भारतीय चरित कोश  | edition = | publisher =शिक्षा भारती, दिल्ली | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय  | language =हिन्दी  | pages =पृष्ठ 233 | chapter =}}
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{सिक्ख धर्म}}
{{सिक्ख धर्म}}
[[Category:सिक्ख धर्म कोश]] [[Category:सिक्खों के गुरु]] [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]] [[Category:चरित कोश]] [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]  
[[Category:सिक्ख धर्म कोश]] [[Category:सिक्खों के गुरु]] [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]] [[Category:चरित कोश]] [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
[[Category:नया पन्ना नवम्बर-2011]]
[[Category:सिक्ख धर्म]]
 


__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

12:08, 17 नवम्बर 2011 का अवतरण

इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

गुरु अमरदास (जन्म- 5 अप्रैल, 1479 बसरका गाँव, अमृतसर; मृत्यु- 1 सितम्बर 1574, अमृतसर) सिक्खों के तीसरे गुरु थे।

परिचय

गुरू अमर दास जी सिक्ख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने गुरु नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया। तृतीय नानक' गुरू अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल 1479 अमृतसर के बसरका गाँव में हुआ था। उनके पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर जी एक सनातनी हिन्दू थे। गुरू अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। अमरदास की चार संतानें थी।

समाज सुधार

गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यु एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन की छाप छोड़ी।[1]

गुरुपद

गुरु अमरदास आरंभ में वैष्णव मत के थे और खेती तथा व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे। एक बार इन्हें गुरु नानक का पद सुनने को मिला उससे प्रभावित हो कर अमरदास सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद के पास गए और उनके शिष्य बन गए। गुरु अंगद ने 1552 में अपने अंतिम समय में इन्हें गुरुपद प्रदान किया। उस समय अमरदास की उम्र 73 वर्ष की थी। परंतु अगंद के पुत्र दातू ने इनका अपमान किया।

रचना

अमरदास के कुछ पद गुरु ग्रंथ साहब में संगृहीत हैं। इनकी एक प्रसिद्ध रचना 'आनंद' है, जो उत्सवों में गाई जाती है। इन्ही के आदेश पर चौथे गुरु रामदास ने अमृतसर के निकट 'संतोषसर' नाम का तालाब खुदवाया था जो अब गुरु अमरदास के नाम पर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध है।

निधन

गुरु अमरदास का निधन 1 सितम्बर 1574 को अमृतसर में हुआ था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 233।

  1. गुरू अमर दास जी (हिन्दी) संगत संसार। अभिगमन तिथि: 17 नवम्बर, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख