"जैन लिपिसंख्यान संस्कार": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:जैन धर्म कोश" to "Category:जैन धर्मCategory:जैन धर्म कोश") |
No edit summary |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
}} | }} | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ | {{संस्कार}} | ||
[[Category:जैन धर्म]][[Category:जैन धर्म कोश]] | [[Category:जैन धर्म]][[Category:जैन धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
09:20, 4 दिसम्बर 2011 का अवतरण
- लिपि संख्यान संस्कार अर्थात बालक को अक्षराभ्यास कराना।
- शास्त्रारम्भ यज्ञोपवीत के बाद होता है।
- लिपिसंख्यान संस्कार पाँचवें वर्ष में करना चाहिए।
- ग्रन्थकारों का मत है- 'प्राप्ते तु पंचमे वर्षें, विद्यारम्भं समाचरेत्।' अर्थात पाँचवें वर्ष में विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिए।
ततोऽस्य पंचमे वर्षे, प्रथमाक्षरदर्शने।
ज्ञेय: क्रियाविधिर्नाम्ना, लिपिसंख्यानसंग्रह:॥
यथाविभवमत्रापि, ज्ञेय: पूजापरिच्छद:।
उपाध्याय पदे चास्य, मतोऽधीती गृहव्रती॥
अर्थात लिपिसंख्यान (विद्यारम्भ) संस्कार पाँचवें वर्ष में करना चाहिए।
- इस संस्कार में शुभ मुहूर्त अत्यावश्यक है।
- योग, वार, नक्षत्र-ये सब ही शुभ अर्थात विद्यावृद्धिकर होने चाहिए।
- उपाध्याय (गुरु) को इस विषय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
|
|
|
|
|