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+[[वीर रस]] | +[[वीर रस]] | ||
-श्रृंगार रस | -श्रृंगार रस | ||
||[[भक्तिकाल]] एवं रीतिकाल में परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण [[वीर रस]] की धारा सूखती-सी प्रतीत होती है। तथापि, [[केशवदास]] का | ||[[भक्तिकाल]] एवं रीतिकाल में परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण [[वीर रस]] की धारा सूखती-सी प्रतीत होती है। तथापि, [[केशवदास]] का ‘[[वीरसिंहदेव चरित]]’, मान का ‘राजविलास’, [[भूषण]] का ‘शिवराजभूषण’, [[लाल कवि|लाल]] का ‘[[छत्रप्रकाश -लाल कवि|छत्रप्रकाश]]’ इत्यादि [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] में वीर रस का प्रवाह प्रवहमान है। ‘[[रामचरितमानस]]’ यों तो [[शान्त रस]] प्रधान रचना है, तो भी [[राम]]-[[रावण]] युद्ध के प्रसंग में प्रचुर वीर रस की निष्पत्ति हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वीर रस]] | ||
{'[[निराला सूर्यकान्त त्रिपाठी|निराला]]' को कैसा [[कवि]] माना जाता है? | {'[[निराला सूर्यकान्त त्रिपाठी|निराला]]' को कैसा [[कवि]] माना जाता है? | ||
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-[[मतिराम]] को | -[[मतिराम]] को | ||
+[[केशवदास]] को | +[[केशवदास]] को | ||
||[[चित्र:Keshavdas.jpg|right|100px|right]][[हिन्दी]] में सर्वप्रथम केशवदास जी ने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें 'कठिन काव्य | ||[[चित्र:Keshavdas.jpg|right|100px|right]][[हिन्दी]] में सर्वप्रथम केशवदास जी ने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें 'कठिन काव्य का प्रेत' कहकर पुकारा जाता है, किंतु उनका महत्त्व बिल्कुल समाप्त नहीं हो जाता। भाव और [[रस]] कवित्व की [[आत्मा]] है। केशव अपने रचना-चमत्कार द्वारा श्रोता और पाठकों को चमत्कृत करने के प्रयास में रहे हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केशवदास]] | ||
{[[हिन्दी]] में स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले [[अक्षर]] क्या कहलाते हैं? | {[[हिन्दी]] में स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले [[अक्षर]] क्या कहलाते हैं? | ||
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-[[मृगावती]] | -[[मृगावती]] | ||
+[[रामचरित मानस]] | +[[रामचरित मानस]] | ||
||[[चित्र:Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg|right|80px| | ||[[चित्र:Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg|right|80px|रामचरित मानस]]'रामचरितमानस' [[तुलसीदास]] की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना संवत 1631 ई. की [[रामनवमी]] को [[अयोध्या]] में प्रारम्भ हुई थी, किन्तु इसका कुछ अंश [[काशी]] ([[वाराणसी]]) में भी निर्मित हुआ था। यह रचना [[अवधी]] में लिखी गयी है। इसके मुख्य [[छन्द]] [[चौपाई]] और [[दोहा]] हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्राय: 8 या अधिक अर्द्धलियों के बाद दोहा होता है और इन दोहों के साथ कड़वक संख्या दी गयी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[रामचरित मानस]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा पश्च स्वर है? | {निम्नलिखित में से कौन-सा पश्च स्वर है? | ||
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+संचारी भाव | +संचारी भाव | ||
{जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ व्यक्त किये गए हों, तो वहाँ कौन-सा [[अलंकार]] होता है? | {जहाँ एक ही [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] के अनेक अर्थ व्यक्त किये गए हों, तो वहाँ कौन-सा [[अलंकार]] होता है? | ||
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-[[रूपक अलंकार|रूपक]] | -[[रूपक अलंकार|रूपक]] | ||
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-[[उत्प्रेक्षा अलंकार|उत्प्रेक्षा]] | -[[उत्प्रेक्षा अलंकार|उत्प्रेक्षा]] | ||
{आदिकाल में किस [[कवि]] ने अवहट्ट भाषा में रचना की? | {आदिकाल में किस [[कवि]] ने 'अवहट्ट भाषा' में रचना की? | ||
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-[[अमीर खुसरो]] | -[[अमीर खुसरो]] |
05:58, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण
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