"अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर
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कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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सांसों में थमता स्पंदन-क्रम, | सांसों में थमता स्पंदन-क्रम, | ||
तुम आती हो, | तुम आती हो, | ||
अंत:स्थल में | |||
शोभा ज्वाला लिपटाती हो। | शोभा ज्वाला लिपटाती हो। | ||
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कह पाते मर्म-कथा न वचन, | कह पाते मर्म-कथा न वचन, | ||
तुम आती हो, | तुम आती हो, | ||
तंद्रिल मन में | तंद्रिल मन में, | ||
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो। | स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो। | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 50: | ||
अवसाद मुखर रस का निर्झर, | अवसाद मुखर रस का निर्झर, | ||
तुम आती हो, | तुम आती हो, | ||
आनंद-शिखर | आनंद-शिखर, | ||
प्राणों में ज्वार उठाती हो। | प्राणों में ज्वार उठाती हो। | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 56: | ||
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम | स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम | ||
तुम आती हो, | तुम आती हो, | ||
जीवन-पथ पर | जीवन-पथ पर, | ||
सौंदर्य- | सौंदर्य-रस बरसाती हो। | ||
जगता छाया-वन में मर्मर, | जगता छाया-वन में मर्मर, | ||
कंप उठती | कंप उठती रुद्ध स्पृहा थर-थर, | ||
तुम आती हो, | तुम आती हो, | ||
उर तंत्री में | उर तंत्री में, | ||
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो। | स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो। | ||
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05:43, 14 दिसम्बर 2011 का अवतरण
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तुम आती हो, |
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