"अमर स्पर्श -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय। | सीमाएँ अमिट हुईं सब लय। | ||
क्यों रहे न जीवन में सुख दुख | क्यों रहे न जीवन में सुख दुख, | ||
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख? | क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख? | ||
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख | तुम रहो दृगों के जो सम्मुख, | ||
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय! | प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय! | ||
तन में आएँ शैशव यौवन | तन में आएँ शैशव यौवन, | ||
मन में हों विरह मिलन के व्रण, | मन में हों विरह मिलन के व्रण, | ||
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन | युग स्थितियों से प्रेरित जीवन, | ||
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय! | उर रहे प्रीति में चिर तन्मय! | ||
जो नित्य अनित्य जगत का क्रम | जो नित्य अनित्य जगत का क्रम, | ||
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम, | वह रहे, न कुछ बदले, हो कम, | ||
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम, | हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम, | ||
जग से परिचय, तुमसे परिणय! | जग से परिचय, तुमसे परिणय! | ||
तुम सुंदर से बन अति सुंदर | तुम सुंदर से बन अति सुंदर, | ||
आओ अंतर में अंतर तर, | आओ अंतर में अंतर तर, | ||
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर | तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर | ||
वरदान, पराजय हो निश्चय! | वरदान, पराजय हो निश्चय! | ||
</poem> | </poem> |
06:58, 14 दिसम्बर 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||||
|
खिल उठा हृदय, |
संबंधित लेख