"अरुण यह मधुमय देश हमारा -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर

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अरुण यह मधुमय देश हमारा।
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥


सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा॥


लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा॥


बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥


हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥
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07:02, 14 दिसम्बर 2011 का अवतरण

अरुण यह मधुमय देश हमारा -जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
कवि जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥

सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा॥

लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा॥

बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥

हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥

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