"आओ, हम अपना मन टोवें -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर

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आओ, अपने मन को टोवें!
आओ, अपने मन को टोवें!
व्यर्थ देह के सँग मन की भी
व्यर्थ देह के सँग मन की भी,
निर्धनता का बोझ न ढोवें।
निर्धनता का बोझ न ढोवें।


जाति पाँतियों में बहु बट कर
जाति पाँतियों में बहु बट कर,
सामाजिक जीवन संकट वर,
सामाजिक जीवन संकट वर,
स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के
स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के,
पथ में हम मत काँटे बोवें!
पथ में हम मत काँटे बोवें!


उजड़ गया घर द्वार अचानक
उजड़ गया घर द्वार अचानक,
रहा भाग्य का खेल भयानक
रहा भाग्य का खेल भयानक,
बीत गयी जो बीत गयी, हम
बीत गयी जो बीत गयी, हम,
उसके लिये नहीं अब रोवें!
उसके लिये नहीं अब रोवें!


परिवर्तन ही जग का जीवन
परिवर्तन ही जग का जीवन,
यहाँ विकास ह्रास संग विघटन,
यहाँ विकास ह्रास संग विघटन,
हम हों अपने भाग्य विधाता
हम हों अपने भाग्य विधाता,
यों मन का धीरज मत खोवें!
यों मन का धीरज मत खोवें!


साहस, दृढ संकल्प, शक्ति, श्रम
साहस, दृढ संकल्प, शक्ति, श्रम,
नवयुग जीवन का रच उपक्रम,
नवयुग जीवन का रच उपक्रम,
नव आशा से नव आस्था से
नव आशा से नव आस्था से,
नए भविष्यत स्वप्न सजोवें!
नए भविष्यत स्वप्न सजोवें!


नया क्षितिज अब खुलता मन में
नया क्षितिज अब खुलता मन में,
नवोन्मेष जन-भू जीवन में,
नवोन्मेष जन-भू जीवन में,
राग द्वेष के, प्रकृति विकृति के
राग द्वेष के, प्रकृति विकृति के,
युग युग के घावों को धोवें!  
युग युग के घावों को धोवें!  
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12:18, 15 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

आओ, हम अपना मन टोवें -सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

आओ, अपने मन को टोवें!
व्यर्थ देह के सँग मन की भी,
निर्धनता का बोझ न ढोवें।

जाति पाँतियों में बहु बट कर,
सामाजिक जीवन संकट वर,
स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के,
पथ में हम मत काँटे बोवें!

उजड़ गया घर द्वार अचानक,
रहा भाग्य का खेल भयानक,
बीत गयी जो बीत गयी, हम,
उसके लिये नहीं अब रोवें!

परिवर्तन ही जग का जीवन,
यहाँ विकास ह्रास संग विघटन,
हम हों अपने भाग्य विधाता,
यों मन का धीरज मत खोवें!

साहस, दृढ संकल्प, शक्ति, श्रम,
नवयुग जीवन का रच उपक्रम,
नव आशा से नव आस्था से,
नए भविष्यत स्वप्न सजोवें!

नया क्षितिज अब खुलता मन में,
नवोन्मेष जन-भू जीवन में,
राग द्वेष के, प्रकृति विकृति के,
युग युग के घावों को धोवें!

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