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'''तुग़लकाबाद''' वर्तमान [[दिल्ली]] से लगभग 11 मील दक्षिण में तथा [[क़ुतुब मीनार]] से 3 मील दूर स्थित है। तुग़लकाबाद की नींव [[ग़यासुद्दीन तुग़लक]] (1320-1325 ई.) ने रखी थी और इसे अपनी राजधानी बनाया था। इस नगर को हज़ारों शिल्पियों तथा श्रमिकों ने दो [[वर्ष]] के कड़े परिश्रम से बनाया था।
==इतिहास==
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यह नगर से 7 मील की दूरी तक सुदृढ़ दुर्ग का विस्तार था आज भी तुग़लकाबाद क़िले के अवशेष मौजूद हैं। तुग़लकाबाद स्थित महल के बारे में मोरक्को यात्री [[इब्नबतूता]] लिखता है कि ग़यासुद्दीन का बड़ा महल सुनहरी ईंटों का बना था और सूर्योदय होता था, तब इतनी तेज़ी से चमकता था कि उस पर किसी की आँख नहीं ठहरती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात् यह नगर एवं महल खण्डहर मात्र शेष हैं।
यह नगर से 7 मील की दूरी तक सुदृढ़ दुर्ग का विस्तार था आज भी तुग़लकाबाद क़िले के [[अवशेष]] मौजूद हैं। तुग़लकाबाद स्थित महल के बारे में मोरक्को यात्री [[इब्नबतूता]] लिखता है कि ग़यासुद्दीन का बड़ा महल सुनहरी ईंटों का बना था और सूर्योदय होता था, तब इतनी तेज़ी से चमकता था कि उस पर किसी की [[आँख]] नहीं ठहरती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात् यह नगर एवं महल खण्डहर मात्र शेष हैं।
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06:00, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण

ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा, तुग़लकाबाद

तुग़लकाबाद वर्तमान दिल्ली से लगभग 11 मील दक्षिण में तथा क़ुतुब मीनार से 3 मील दूर स्थित है। तुग़लकाबाद की नींव ग़यासुद्दीन तुग़लक (1320-1325 ई.) ने रखी थी और इसे अपनी राजधानी बनाया था। इस नगर को हज़ारों शिल्पियों तथा श्रमिकों ने दो वर्ष के कड़े परिश्रम से बनाया था।

इतिहास

यह नगर से 7 मील की दूरी तक सुदृढ़ दुर्ग का विस्तार था आज भी तुग़लकाबाद क़िले के अवशेष मौजूद हैं। तुग़लकाबाद स्थित महल के बारे में मोरक्को यात्री इब्नबतूता लिखता है कि ग़यासुद्दीन का बड़ा महल सुनहरी ईंटों का बना था और सूर्योदय होता था, तब इतनी तेज़ी से चमकता था कि उस पर किसी की आँख नहीं ठहरती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात् यह नगर एवं महल खण्डहर मात्र शेष हैं।

कला व चित्रकारी

इस पर मार्शल का मानना है कि पुराने खण्डहर तुग़लकाबाद के खण्डहरों से अधिक प्रभावोत्पादक होंगे। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा तुग़लकाबाद नगर की चहारदीवारी के भीतर ही बना हुआ है। यह लाल पत्थर का बना है और सुन्दरता के लिए कहीं-कहीं इसमें संगमरमर की पटिट्याँ जड़ी हुई हैं। इसका विशाल गुम्बज पूरा संगमरमर का बना हुआ है।

बनावट

मार्शल ने इसके बारे में लिखा है कि इस बनावट और विशेषकर चमकदार विशाल गुम्बज का प्रभाव यह पड़ा कि इमारत में कुछ हल्कापन और विविधता आ गयी है। लेकिन इसकी पक्की दीवारों और मज़बूत आनुपातिक बनावट से इसकी सादगी और मज़बूती का ही अनुमान होता है।

उपनगर

मुहम्मद तुग़लक के समय दिल्ली से राजधानी दौलताबाद देवगिरि ले जाने और वापस दिल्ली लाने से तुग़लकाबाद उजाड़-सा हो गया था। फ़िरोज़शाह तुग़लक (1351-1388 ई.) के समय तुग़लकाबाद तथा इसके उपनगर का विस्तार फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम तक हो गया था, जो दिल्ली के दरवाजे के निकट है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख