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| {{भारत विषय सूची}}
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| {{प्रांगण लेख इतिहास}}
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| {{इतिहास}}
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| [[भारत]] में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण [[केरल]] से मिला है जो '''सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना''' है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।<ref>देखें: '''शोध ग्रंथ''' {{cite book |last=वेल्स|first=स्पेन्सर|url =http://books.google.ca/books?id=WAsKm-_zu5sC&lpg=PP1&dq=The%20Journey%20of%20Man&pg=PP1#v=onepage&q&f=true |title=अ जेनेटिक ओडिसी|year=2002|publisher=प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी प्रॅस, न्यू जर्सी, सं.रा.अमरीका|language=[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]||id=ISBN 0-691-11532-X}} </ref>इसके पश्चात एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग [[सिन्धु घाटी]] की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। [[हड़प्पा]] की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और [[राजस्थान]] तथा [[पंजाब]] की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।<ref>पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19</ref> यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।
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| ==प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत==
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| भारतीय इतिहास जानने के स्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-
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| # साहित्यिक साक्ष्य
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| # विदेशी यात्रियों का विवरण
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| # पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य
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| ====साहित्यिक साक्ष्य====
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| साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- <br />
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| धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य। <br />
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| ;धार्मिक साहित्य
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| धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।
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| *ब्राह्मण ग्रन्थों में -
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| [[वेद]], [[उपनिषद]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[पुराण]], [[स्मृतियाँ|स्मृति ग्रन्थ]] आते हैं।
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| *ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में [[जैन]] तथा [[बौद्ध]] ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है। <br />
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| ;लौकिक साहित्य
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| लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है।<br />
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| '''धर्म-ग्रन्थ'''<br />
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| प्राचीन काल से ही [[भारत]] के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है।<br />
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| '''ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ'''<br />
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| '''ब्राह्मण धर्म''' - ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है।<br />
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| '''वेद'''<br />
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| {{main|वेद}}
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| वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है। यह शब्द [[संस्कृत]] के ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। वेदों के संकलनकर्ता 'कृष्ण द्वैपायन' थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण 'वेदव्यास' की संज्ञा प्राप्त हुई। वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय अर्थात दैवकृत मानते हैं। वेदों की कुल संख्या चार है-
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| *[[ऋग्वेद]]- यह ऋचाओं का संग्रह है।
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| *[[सामवेद]]- यह ऋचाओं का संग्रह है।
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| *[[यजुर्वेद]]- इसमें यागानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है।
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| *[[अथर्ववेद]]- यह तंत्र-मंत्रों का संग्रह है।
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| ====ब्राह्मण ग्रंथ====
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| {{main|ब्राह्मण साहित्य}}
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| [[यज्ञ|यज्ञों]] एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही इस ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई। यहां पर 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ हैं- यज्ञ अर्थात यज्ञ के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये। ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी है। यह ग्रंथ अधिकतर गद्य में लिखे हुए हैं। इनमें उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त होता है। प्रत्येक वेद (संहिता) के अपने-अपने ब्राह्मण होते हैं।
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| ====आरण्यक====
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| {{main|आरण्यक साहित्य}}
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| आरयण्कों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों यथा, आत्मा, मृत्यु, जीवन आदि का वर्णन होता है। इन ग्रंथों को आरयण्क इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन ग्रंथों का मनन अरण्य अर्थात वन में किया जाता था। ये ग्रन्थ अरण्यों (जंगलों) में निवास करने वाले संन्यासियों के मार्गदर्शन के लिए लिखे गए थै। आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखायन्त आरण्यक, बृहदारण्यक, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक तथा तवलकार आरण्यक (इसे जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण भी कहते हैं) मुख्य हैं। ऐतरेय तथा शांखायन ऋग्वेद से, बृहदारण्यक शुक्ल यजुर्वेद से, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक कृष्ण यजुर्वेद से तथा तवलकार आरण्यक सामवेद से सम्बद्ध हैं। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यक ग्रन्थों में प्राण विद्या की महिमा का प्रतिपादन विशेष रूप से मिलता है। इनमें कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी हैं, जैसे- तैत्तिरीय आरण्यक में [[कुरु]], [[पंचाल]], [[काशी]], [[विदेह]] आदि [[महाजनपद|महाजनपदों]] का उल्लेख है।
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| ====उपनिषद====
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| {{main|उपनिषद}}
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| उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। लेकिन शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर स्पना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है। ये हैं - ईश, केन, माण्डूक्य, मुण्डक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, प्रश्न, छान्दोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद। इसके अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौषीतकि उपनिषद भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस प्रकार 103 उपनिषदों में से केवल 13 उपनिषदों को ही प्रामाणिक माना गया है। भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य '[[सत्यमेव जयते]]' मुण्डोपनिषद से लिया गया है। उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें [[प्रश्नोपनिषद|प्रश्न]], [[माण्डूक्योपनिषद|माण्डूक्य]], [[केनोपनिषद|केन]], [[तैत्तिरीयोपनिषद|तैत्तिरीय]], [[ऐतरेयोपनिषद|ऐतरेय]], [[छान्दोग्य उपनिषद|छान्दोग्य]], [[बृहदारण्यकोपनिषद|बृहदारण्यक]] और [[कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद|कौषीतकि उपनिषद]] गद्य में हैं तथा [[केनोपनिषद|केन]], [[ईशावास्योपनिषद|ईश]], [[कठोपनिषद|कठ]] और [[श्वेताश्वतरोपनिषद|श्वेताश्वतर उपनिषद]] पद्य में हैं।
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| ====वेदांग====
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| {{main|वेदांग}}
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| वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले'। वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-<br />
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| 1- शिक्षा, 2- कल्प, 3- व्याकरण, 4- निरूक्त, 5- छन्द एवं 6- ज्योतिष
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| ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
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| *धर्मशास्त्र में चार साहित्य आते हैं- 1- धर्म सूत्र, 2- स्मृति, 3- टीका एवं 4- निबन्ध।
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| ====स्मृतियाँ====
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| {{main|स्मृतियाँ}}
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| स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः [[मनुस्मृति]] (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- [[नारद]], [[पराशर]], [[बृहस्पति]], [[कात्यायन]], [[गौतम]], संवर्त, हरीत, [[अंगिरा]] आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के [[भारत]] के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। [[नारद स्मृति]] से [[गुप्त वंश]] के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारूचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।
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| ====महाकाव्य====
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| {{main|महाकाव्य}}
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| '[[रामायण]]' एवं '[[महाभारत]]', भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं। यद्यपि इन दोनों महाकाव्यों के रचनाकाल के विषय में काफ़ी विवाद है, फिर भी कुछ उपलब्ध साक्ष्यों के आधर पर इन महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है।
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| ====रामायण====
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| {{main|रामायण}}
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| रामायण की रचना [[बाल्मीकि|महर्षि बाल्मीकि]] द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]], [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्याकाण्ड]], [[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्यकाण्ड]], [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धाकाण्ड]], [[सुन्दर काण्ड वा. रा.|सुन्दरकाण्ड]], [[युद्ध काण्ड वा. रा.|युद्धकाण्ड]] एवं [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तराकाण्ड]] नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम [[भारत]] से बाहर [[चीन]] में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।
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| ====महाभारत====
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| {{main|महाभारत}}
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| [[व्यास|महर्षि व्यास]] द्वारा रचित [[महाभारत]] महाकाव्य [[रामायण]] से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात यह वैदिक जन [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में [[गुप्त काल]] में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' केहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- [[आदि पर्व महाभारत|आदि]], [[सभा पर्व महाभारत|सभा]], [[वन पर्व महाभारत|वन]], [[विराट पर्व महाभारत|विराट]], [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योग]], [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म]], [[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण]], [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण]], [[शल्य पर्व महाभारत|शल्य]], [[सौप्तिक पर्व महाभारत|सौप्तिक]], [[स्त्री पर्व महाभारत|स्त्री]], [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्ति]], [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन]], [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|अश्वमेघ]], [[आश्रमवासिक पर्व महाभारत|आश्रमवासी]], [[मौसल पर्व महाभारत|मौसल]], [[महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत|महाप्रास्थानिक]] एवं [[स्वर्गारोहण पर्व महाभारत|स्वर्गारोहण]] में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
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| ====पुराण====
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| {{main|पुराण}}
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| प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को [[पुराण]] कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे। [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]] में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1. [[ब्रह्म पुराण]] 2. [[पद्म पुराण]] 3. [[विष्णु पुराण]] 4. [[वायु पुराण]] 5. [[भागवत पुराण]] 6. [[नारद पुराण|नारदीय पुराण]], 7. [[मार्कण्डेय पुराण]] 8. [[अग्नि पुराण]] 9. [[भविष्य पुराण]] 10. [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]], 11. [[लिंग पुराण]] 12. [[वराह पुराण]] 13. [[स्कन्द पुराण]] 14. [[वामन पुराण]] 15. [[कूर्म पुराण]] 16. [[मत्स्य पुराण]] 17. [[गरुड़ पुराण]] और 18. [[ब्रह्माण्ड पुराण]]
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| ====बौद्ध साहित्य====
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| {{main|बौद्ध साहित्य}}
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| [[बौद्ध साहित्य]] को ‘[[त्रिपिटक]]‘ कहा जाता है। [[महात्मा बुद्ध]] के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं- <br />
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| [[सुत्तपिटक]], [[विनयपिटक]] और [[अभिधम्मपिटक]]।
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| {{seealso|जैन साहित्य|लौकिक साहित्य}}
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| ====जैन साहित्य====
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| {{main|जैन साहित्य}}
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| ऐतिहसिक जानकारी हेतु [[जैन साहित्य]] भी [[बौद्ध साहित्य]] की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य [[प्राकृत]] एवं [[संस्कृत]] भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे ‘[[आगम]]‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा [[महावीर|महावीर स्वामी]] की मृत्यु के बाद की गयी।
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| ====विदेशियों के विवरण====
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| विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारियाँ मिलती है। इनको तीन भागों में बांट सकते हैं- <br />
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| # [[यूनानी लेखक|यूनानी-रोमन लेखक]]
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| # [[चीनी लेखक]]
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| # [[अरबी लेखक]]
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| ====पुरातत्त्व====
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| {{Main|पुरातत्त्व}}
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| पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं। इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के ‘बोगजकोई‘ नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - [[इन्द्र]], मित्र, [[वरुण देवता|वरुण]], नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।
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| ====चित्रकला====
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| {{Main|चित्रकला}}
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| [[चित्रकला]] से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। [[अजंता की गुफ़ाएँ|अजंता]] के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है।
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| {{इन्हेंभीदेखें|मूर्ति कला मथुरा|अभिलेख}}
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| ==पाषाण काल==
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| {{main|भारत का इतिहास पाषाण काल}}
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| समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
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| #प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Age)
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| #आद्य ऐतिहासिक काल (Proto-historic Age)
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| #ऐतिहासिक काल (Historic Age)
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| ====भारत की आदिम (प्रारंभिक) जातियाँ====
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| {{main|भारत की आदिम जातियाँ}}
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| प्रारम्भिक काल में [[भारत]] में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। -
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| 1. नीग्रिटों 2. प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाईड 3. मंगोलायड 4. भूमध्य सागरीय 5. पश्चिमी ब्रेकी सेफल 6. नॉर्डिक
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| ==सिंधु घाटी सभ्यता==
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| {{main|सिंधु घाटी सभ्यता}}
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| आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व [[पाकिस्तान]] के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से [[लाहौर]] तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।
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| ====हड़प्पा लिपि====
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| {{main|हड़प्पा लिपि}}
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| हड़प्पा लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था पर स्पष्टतः यह लिपि 1923 तक प्रकाश में आई। [[सिंधु लिपि]] में लगभग 64 मूल चिन्ह एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। यह लिपि चित्रात्मक थी। यह लिपि अभी तक गढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में क़रीब 17 चिन्ह हैं। [[कालीबंगा]] के [[उत्खनन]] से प्राप्त मिट्टी के ठीकरों पर उत्कीर्ण चिन्ह अपने पार्श्ववर्ती दाहिने चिन्ह को काटते हैं। इसी आधार पर 'ब्रजवासी लाल' ने यह निष्कर्ष निकाला है - 'सैंधव लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर को लिखी जाती थी।'
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| ====मृण्मूर्तियां====
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| {{main|हड़प्पा सभ्यता की मृण्मूर्तियां}}
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| हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, [[बाघ]], सुअर, गैंडा, भालू, [[बन्दर]], [[मोर]], तोता, बत्तख़ एवं [[कबूतर]] की मृणमूर्तियां मिली है। मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली हैं।
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| ====हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषताएं====
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| {{main|हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना}}
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| हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।
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| ====हडप्पा जनजीवन====
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| {{main|हड़प्पा समाज और संस्कृति}}
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| हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।
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| *ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को 'मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन' कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
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| *स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा 'मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक' था।
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| *मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ों का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।
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| ==प्रागैतिहासिक काल==
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| {{Main|प्रागैतिहासिक काल}}
| |
| भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच [[सिंधु घाटी]] में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष [[मोहन जोदड़ो]] (मुअन-जो-दाड़ो) और [[हड़प्पा]] में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में [[आर्य|आर्यों]] का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग [[द्रविड़ निवासी|द्रविड़ों]] का था।
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| {{seealso|आर्य|आर्यावर्त|द्रविड़ निवासी}}
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| ====महाजनपद युग====
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| {{मुख्य|महाजनपद}}
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| <blockquote>'''प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है।''' सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई. पू. है, जब मक़दूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई. पू. तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत [[क़ाबुल]] की घाटी से लेकर गोदावरी तक [[सोलह महाजनपद|षोडश जनपदों]] में विभाजित था।</blockquote>
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| {{seealso|ब्राह्मण|अंधक संघ|कृष्ण|ब्रज}}
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| ==प्राचीन भारत==
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| {{Main|प्राचीन भारत}}
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| 1200 ई.पू से 240 ई. तक का भारतीय इतिहास, प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। इसके बाद के [[भारत]] को [[मध्यकालीन भारत]] कहते हैं जिसमें मुख्यतः मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा था।
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| ====मौर्य और शुंग====
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| {{main|मौर्य काल|मौर्य साम्राज्य| शुंग}}
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| {{seealso|अशोक|अशोक के शिलालेख|बुद्ध|बौद्ध दर्शन|बौद्ध धर्म|फ़ाह्यान|पाटलिपुत्र|तक्षशिला}}
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| ====शक, कुषाण और सातवाहन====
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| {{मुख्य|शक साम्राज्य|कुषाण साम्राज्य}}
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| {{seealso|राबाटक लेख|कुषाण|कनिष्क|कम्बोजिका|कल्हण}}
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| ====गुप्त====
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| {{मुख्य|गुप्त साम्राज्य}}
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| ==मध्यकालीन भारत==
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| {{Main|मध्यकालीन भारत}}
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| ====तीन साम्राज्यों का युग (8वीं - 10वीं शताब्दी)====
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| सात सौ पचास और एक हज़ार ईस्वी के बीच उत्तर तथा दक्षिण [[भारत]] में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ। नौंवीं शताब्दी तक पूर्वी और उत्तरी भारत में [[पाल साम्राज्य]] तथा दसवीं शताब्दी तक पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में [[प्रतिहार साम्राज्य]] शक्तिशाली बने रहे। [[राष्ट्रकूट साम्राज्य|राष्ट्रकूटों]] का प्रभाव दक्कन में तो था ही, कई बार उन्होंने उत्तरी और दक्षिण भारत में भी अपना प्रभुत्व क़ायम किया। यद्यपि ये तीनों साम्राज्य आपस में लड़ते रहते थे तथापि इन्होंने एक बड़े भू-भाग में स्थिरता क़ायम रखी और साहित्य तथा कलाओं को प्रोत्साहित किया।
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| {{seealso|पाल साम्राज्य|राष्ट्रकूट साम्राज्य|पृथ्वीराज चौहान|गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य|राजपूत काल|चोल साम्राज्य}}
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| ====इस्लाम का प्रवेश====
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| {{मुख्य|इस्लाम धर्म}}
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| इस बीच 712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। [[मुहम्मद-इब्न-क़ासिम]] के नेतृत्व में [[मुसलमान]] अरबों ने [[सिंध]] पर हमला कर दिया और वहाँ के [[ब्राह्मण]] राजा [[दाहिर]] को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार [[इस्लाम]] के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई. में [[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमले करके [[पंजाब]] छीन लिया था और ग़ज़नी के [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद]] ने 997 से 1030 ई. के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली, फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्त्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
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| {{seealso|चंगेज़ ख़ाँ|महमूद ग़ज़नवी|मुहम्मद बिन क़ासिम|मुहम्मद ग़ोरी|ग़ोर के सुल्तान|चंदबरदाई|पृथ्वीराज रासो|क़ुतुबुद्दीन ऐबक}}
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| ====आर्थिक सामाजिक जीवन, शिक्षा तथा धर्म <sub>800 ई. से 1200 ई.</sub>====
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| {{main|भारत की संस्कृति}}
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| इस काल में भारतीय समाज में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इनमें से एक यह था कि विशिष्ट वर्ग के लोगों की शक्ति बहुत बढ़ी जिन्हें 'सामंत', 'रानक' अथवा 'रौत्त' ([[राजपूत]]) आदि पुकारा जाता था। इस काल में भारतीय दस्तकारी तथा खनन कार्य उच्च स्तर का बना रहा तथा [[कृषि]] भी उन्नतिशील रही। [[भारत]] आने वाले कई [[अरब देश|अरब]] यात्रियों ने यहाँ की ज़मीन की उर्वरता और भारतीय किसानों की कुशलता की चर्चा की है। पहले से चली आ रही वर्ण व्यवस्था इस युग में भी क़ायम रही। [[स्मृतियाँ|स्मृतियों]] के लेखकों ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के विशेषाधिकारों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर तो कहा ही, शूद्रों की सामाजिक और धार्मिक अयोग्यता को उचित ठहराने में तो वे पिछले लेखकों से कहीं आगे निकल गए।
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| ====दिल्ली सल्तनत====
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| {{main|दिल्ली सल्तनत}}
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| दिल्ली सल्तनत की स्थापना भारतीय इतिहास में युगान्तकारी घटना है। शासन का यह नवीन स्वरूप [[भारत]] की पूर्ववर्ती राजव्यवस्थाओं से भिन्न था। इस काल के शासक एवं उनकी [[प्रशासनिक व्यवस्था (सल्तनतकाल)|प्रशासनिक व्यवस्था]] एक ऐसे [[धर्म]] पर आधारित थी, जो कि साधारण धर्म से भिन्न था। शासकों द्वारा सत्ता के अभूतपूर्व केन्द्रीकरण और कृषक वर्ग के शोषण का भारतीय इतिहास में कोई उदाहरण नहीं मिलता है। दिल्ली सल्तनत का काल 1206 ई. से प्रारम्भ होकर 1562 ई. तक रहा। 320 वर्षों के इस लम्बे काल में [[भारत]] में मुस्लिमों का शासन व्याप्त रहा। यह काल [[स्थापत्य एवं वास्तुकला (सल्तनत काल)|स्थापत्य एवं वास्तुकला]] के लिये भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
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| ====मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश====
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| {{main|ग़ुलाम वंश}}
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| ग़ुलाम वंश [[दिल्ली]] में [[कुतुबद्दीन ऐबक]] द्वारा 1206 ई. में स्थापित किया गया था। यह वंश 1290 ई. तक शासन करता रहा। इसका नाम ग़ुलाम वंश इस कारण पड़ा कि इसका संस्थापक और उसके इल्तुतमिश और बलबन जैसे महान उत्तराधिकारी प्रारम्भ में ग़ुलाम अथवा दास थे और बाद में वे दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने में समर्थ हुए।
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| ====इल्तुतमिश/अल्तमश====
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| {{main|इल्तुतमिश}}
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| इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का एक प्रमुख शासक था। वंश के संस्थापक ऐबक के बाद वो उन शासकों में से था जिससे दिल्ली सल्तनत की नींव मजबूत हुई। वह ऐबक का दामाद भी था।
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| ====रज़िया सुल्तान ====
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| {{main|रज़िया सुल्तान}}
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| रज़िया का पूरा नाम-रज़िया अल्-दीन (1205 – 1240), सुल्तान जलालत उद-दीन रज़िया था। वह इल्तुतमिश की पुत्री तथा भारत की पहली मुस्लिम शासिका थी।
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| ====बलबन का युग====
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| {{main|ग़यासुद्दीन बलबन}}
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| ग़यासुद्दीन बलबन (1266-1286 ई.) इल्बारि जाति का व्यक्ति था, जिसने एक नये राजवंश ‘बलबनी वंश’ की स्थापना की थी। ग़यासुद्दीन बलबन ग़ुलाम वंश का नवाँ सुल्तान था।
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| ====ख़िलजी वंश (1290-1320 ई.)====
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| {{main|ख़िलजी वंश}}
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| ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है। इतिहासकार 'निज़ामुद्दीन अहमद' ने ख़िलजी को [[चंगेज़ ख़ाँ]] का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, 'बरनी' ने उसे तुर्कों से अलग एवं 'फ़खरुद्दीन' ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है। फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है। चूंकि [[भारत]] आने से पूर्व ही यह जाति [[अफ़ग़ानिस्तान]] के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था। सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया। मामलूक अथवा [[ग़ुलाम वंश]] के अन्तिम सुल्तान [[शमसुद्दीन क्यूमर्स]] की हत्या के बाद ही [[जलालुद्दीन ख़िलजी|जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी]] सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
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| ====तुग़लक़ वंश (1320-1414)====
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| {{main|तुग़लक़ वंश}}
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| ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। [[ग़यासुद्दीन तुग़लक|ग़यासुद्दीन]], उसका पुत्र [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] (1324-51) और उसका उत्तराधिकारी [[फ़िरोज शाह तुग़लक़]] (1351-87)।
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| {{seealso|सैयद वंश|लोदी वंश|तैमूर लंग|विजय नगर साम्राज्य|बहमनी वंश|चंगेज़ ख़ाँ|अलाउद्दीन ख़िलजी|कबीर|भक्ति आन्दोलन}}
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| ==मुग़ल==
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| {{main|मुग़ल काल}}
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| दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई. में [[बाबर]] ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने [[पानीपत]] की [[पानीपत युद्ध प्रथम |पहली लड़ाई]] में अन्तिम सुल्तान [[इब्राहीम लोदी]] को हरा दिया और [[मुग़ल वंश]] की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया। तीसरा [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। ''''''।
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| ====बाबर (1526 - 1530)====
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| {{main|बाबर}}
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| [[मुग़ल वंश]] का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। बाबर का पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा', 'फ़रग़ना' का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना।
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| ====हुमायूँ (1530-1540 और 1555-1556)====
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| {{main|हुमायूँ}}
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| 'नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ' का जन्म बाबर की पत्नी ‘माहम बेगम’ के गर्भ से 6 मार्च, 1508 ई. को [[काबुल]] में हुआ था। बाबर के 4 पुत्रों- हुमायूँ, कामरान, [[अस्करी]] और हिन्दाल में हुमायूँ सबसे बड़ा था। बाबर ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
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| ====शेरशाह सूरी====
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| {{main|शेरशाह सूरी}}
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| शेरशाह सूरी के बचपन का नाम 'फ़रीद ख़ाँ' था। वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई.) में अपने पिता 'हसन ख़ाँ' की [[अफ़ग़ान]] पत्नी से उत्पन्न था। उसका पिता हसन, [[बिहार]] के [[सासाराम]] का ज़मींदार था।
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| ====अकबर (1556 1605)====
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| {{main|अकबर}}
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| अकबर महान ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से [[जज़िया]] उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ़ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं।
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| {{seealso|अकबरनामा|अबुल फ़ज़ल|तानसेन|बीरबल|रहीम|टोडरमल}}
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| ====जहाँगीर (1605 - 1627)====
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| {{main|जहाँगीर}}
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| 'नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर' का जन्म [[फ़तेहपुर सीकरी]] में स्थित ‘शेख़ सलीम चिश्ती’ की कुटिया में राजा भारमल की बेटी ‘मरियम ज़मानी’ के गर्भ से 30 अगस्त, 1569 ई. को हुआ था। [[अकबर]] सलीम को ‘शेख़ू बाबा’ कहा करता था। सलीम का मुख्य शिक्षक [[रहीम|अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना]] था।
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| ====शाहजहाँ (1627 - 1658)====
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| {{main|शाहजहाँ}}
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| शाहजहाँ का जन्म [[जोधपुर]] के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री 'जगत गोसाई' (जोधाबाई) के गर्भ से [[5 जनवरी]], 1592 ई. को [[लाहौर]] में हुआ था। उसका बचपन का नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम [[जहाँगीर]] का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था।
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| ====औरंगज़ेब (1658 - 1707)====
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| {{main|औरंगज़ेब}}
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| 'मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब' का जन्म 4 नवम्बर, 1618 ई. में [[उज्जैन]] के ‘दोहद’ नामक स्थान पर मुमताज़ के गर्भ से हुआ था। औरंगज़ेब के बचपन का अधिकांश समय [[नूरजहाँ]] के पास बीता था।
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| ====बहादुर शाह ज़फ़र (1837- 1858)====
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| {{main|बहादुर शाह ज़फ़र}}
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| बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म [[24 अक्तूबर]] सन् 1775 ई. को [[दिल्ली]] में हुआ था। बहादुर शाह ज़फ़र [[मुग़ल साम्राज्य]] के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-58 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे।
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| {{seealso|हेमू|ताजमहल|फ़तेहपुर सीकरी|चित्रकला मुग़ल शैली}}
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| ==आधुनिक काल==
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| ====मराठा====
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| {{main|मराठा साम्राज्य}}
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| राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य [[कन्दहार]] से [[आसाम]] की सीमा तक तथा [[हिमालय]] की तलहटी से लेकर दक्षिण में [[अहमदनगर]] तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र [[जहाँगीर]] जहाँ पौत्र [[शाहजहाँ]] के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने [[ताजमहल]] का निर्माण कराया, परन्तु कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु [[औरंगज़ेब]] ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ़ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, [[बुंदेलखण्ड]] तथा [[पंजाब]] के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए।
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| {{seealso|शिवाजी|तानाजी|अहिल्याबाई होल्कर|जाटों का इतिहास|वास्को द गामा|अंग्रेज़|सिपाही क्रांति 1857}}
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| ====ईस्ट इंडिया कम्पनी====
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| {{main|ईस्ट इंडिया कम्पनी}}
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| अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने [[माहे]], [[पुदुचेरी|पांडिचेरी]] तथा [[चंद्रानगर]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों को भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई. में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में [[कर्नाटक]] की दूसरी लड़ाई छेड़ी।
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| {{seealso|मैसूर युद्ध|टीपू सुल्तान|पानीपत युद्ध|रेग्युलेटिंग एक्ट|गवर्नर-जनरल}}
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| ====गवर्नर-जनरलों का समय====
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| {{Main|गवर्नर-जनरल}}
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| कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस [[गवर्नर-जनरल|गवर्नर-जनरलों]] के हाथों में रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। [[मैसूर]] के साथ [[मैसूर युद्ध|चार लड़ाइयाँ]], मराठों के साथ तीन, बर्मा ([[म्यांमार]]) तथा [[सिख|सिखों]] के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा [[अफ़ग़ानिस्तान]] के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली।
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| ====प्रथम स्वतंत्रता संग्राम====
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| {{Main|प्रथम स्वतंत्रता संग्राम}}
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| इस काल में [[सती प्रथा]] का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। [[राजा राममोहन राय]] ने [[सती प्रथा]] जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण [[लॉर्ड विलियम बैंटिक]] 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा।
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| {{seealso|झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|तात्या टोपे|राजा राममोहन राय|सती प्रथा|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस}}
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| ====असहयोग और सत्याग्रह====
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| {{मुख्य|असहयोग आंदोलन}}
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| [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के कुछ सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे [[मोहनदास करमचंद गाँधी]] के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये [[रौलट एक्ट]] जैसे दमनकारी क़ानूनों तथा [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक में [[ऊधमसिंह]] ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ चला दीं। जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई। [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] और [[भगतसिंह]] जैसे महान क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए। कांग्रेस ने 1920 ई. में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह [[असहयोग आंदोलन]] को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में [[नमक सत्याग्रह]] आंदोलन शुरू कर दिया।
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| ====भारत का विभाजन====
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| {{Main|भारत का विभाजन}}
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| कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और [[मुसलमान|मुसलमानों]] के लिये भारत विभाजन करके [[पाकिस्तान]] की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई. में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय [[लॉर्ड वेवेल]] अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुख्य रूप से [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई. में लॉर्ड वेवेल ने [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण [[मुस्लिम लीग]] के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।
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| {{seealso|भारत का इतिहास (तिथि क्रम)|सरदार पटेल|महात्मा गाँधी}}
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| *[http://www.shangrilagifts.org/hp/indus.html Comparison of Indus Valley Harappan]
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| *[http://ancientscripts.com/indus.html Indus Script]
| |
| *[http://vimitihas.wordpress.com/2008/08/16/sindhu_sabhyata सिंधुघाटी सभ्यता]
| |
| *[http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%83-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A5%81-%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE विलुप्त होती सिन्धु घाटी की सभ्यता]
| |
| *[http://hindi.indiawaterportal.org/node/20398 सिंधु घाटी सभ्यता]
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| *[http://incredible-india.biz/hn/history/ivc सिंधु घाटी सभ्यता]
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| {{लेख प्रगति
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| |आधार=
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| |प्रारम्भिक=
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| |माध्यमिक=माध्यमिक3
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| |पूर्णता=
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| |शोध=
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| }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| {{प्रांगण लेख इतिहास}}
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| ==संबंधित लेख==
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| {{भारत के राज्यों का इतिहास}}
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| __INDEX__
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| {{toc}}
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