"करघा -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Dinkar.jpg |चि...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं | हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं, | ||
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। | दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। | ||
हर ज़िन्दगी किसी न किसी | हर ज़िन्दगी किसी न किसी, | ||
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती | ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है। | ||
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से | ज़िन्दगी ज़िन्दगी से | ||
इतनी जगहों पर मिलती है | इतनी जगहों पर मिलती है, | ||
कि हम कुछ समझ नहीं पाते | कि हम कुछ समझ नहीं पाते | ||
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है। | और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है। | ||
पंक्ति 46: | पंक्ति 46: | ||
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है। | और दुनिया उलझे सूतों का जाल है। | ||
इस उलझन का सुलझाना | इस उलझन का सुलझाना | ||
हमारे लिये मुहाल | हमारे लिये मुहाल है। | ||
मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है, | मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है, | ||
पंक्ति 55: | पंक्ति 55: | ||
बुनकर इसे खूब जानता है। | बुनकर इसे खूब जानता है। | ||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
06:01, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं, |
संबंधित लेख