"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/अभ्यास": अवतरणों में अंतर

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+[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
+[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
-[[जवाहर लाल नेहरू]]
-[[जवाहर लाल नेहरू]]
||[[चित्र:Gopal-Krishna-Gokhle.jpg|right|100px|गोपाल कृष्ण गोखले]]महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य [[गोपाल कृष्ण गोखले]] को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें [[भारत]] का '''ग्लेडस्टोन''' कहा जाता है। 1905 ई. में गोखले ने 'भारत सेवक समाज' की स्थापना की, ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि, वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
||[[चित्र:Gopal-Krishna-Gokhle.jpg|right|100px|गोपाल कृष्ण गोखले]]महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य [[गोपाल कृष्ण गोखले]] को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें [[भारत]] का 'ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। 1905 ई. में गोखले ने 'भारत सेवक समाज' की स्थापना की, ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि, वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]


{किस शासक के काल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन [[कश्मीर]] में हुआ था?
{किस शासक के काल में चतुर्थ [[बौद्ध संगीति]] का आयोजन [[कश्मीर]] में हुआ था?
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-[[अशोक]]
-[[अशोक]]
-काला अशोक
-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
+[[कनिष्क]]
+[[कनिष्क]]
-[[अजातशत्रु]]
-[[अजातशत्रु]]
|| चतुर्थ बौद्ध संगीति लगभग प्रथम शताब्दी ई. में [[कुषाण वंश]] के शासक [[कनिष्क]] के शासनकाल में [[कश्मीर]] के कुण्डलवन में आयोजित की गयी थी, इस संगीत सभा की अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी। इस सभा में [[बौद्ध धर्म]] दो सम्प्रदायों [[हीनयान]] तथा [[महायान]] में विभाजित हो गया था। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कनिष्क]]
||चतुर्थ [[बौद्ध संगीति]] लगभग प्रथम शताब्दी ई. में [[कुषाण वंश]] के शासक [[कनिष्क]] के शासनकाल में [[कश्मीर]] के 'कुण्डलवन' में आयोजित की गयी थी, इस संगीत सभा की अध्यक्षता वसुमित्र ने की। इस सभा में [[बौद्ध धर्म]] दो सम्प्रदायों [[हीनयान]] तथा [[महायान]] में विभाजित हो गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]]


{सर्वप्रथम चारों आश्रमों के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है?
{सर्वप्रथम चारों [[आश्रम|आश्रमों]] के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है?
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+[[जाबालोपनिषद]] से
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-[[मुण्डकोपनिषद]] से
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-[[कठोपनिषद]] से
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||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]] [[यजुर्वेद|शुक्ल यजुर्वेद]] के इस उपनिषद में कुल छह खण्ड हैं।  
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]शुक्ल यजुर्वेद के इस [[उपनिषद]] में कुल छह खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में भगवान [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] और [[ऋषि]] [[याज्ञवल्क्य]] के संवाद द्वारा प्राणविद्या का विवेचन किया गया है। द्वितीय खण्ड में [[अत्रि]] और याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा 'अविमुक्त' क्षेत्र को भृकुटियों के मध्य बताया गया है। तृतीय खण्ड में ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है। चतुर्थ खण्ड में विदेहराज [[जनक]] के द्वारा संन्यास के विषय में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर याज्ञवल्क्य देते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जाबालोपनिषद]]
#प्रथम खण्ड में भगवान [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] और ऋषि [[याज्ञवल्क्य]] के संवाद द्वारा प्राण-विद्या का विवेचन किया गया है।  
#द्वितीय खण्ड में [[अत्रि]] मुनि और याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा 'अविमुक्त' क्षेत्र को भृकुटियों के मध्य बताया गया है।  
#तृतीय खण्ड में ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है।  
#चतुर्थ खण्ड में विदेहराज [[जनक]] के द्वारा संन्यास के विषय में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर याज्ञवल्क्य देते हैं।  
#पंचम खण्ड में अत्रि मुनि संन्यासी के यज्ञोपवीत, वस्त्र, भिक्षा आदि पर याज्ञवल्क्य से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और
#षष्ठ खण्ड में प्रसिद्ध संन्यासियों आदि के आचरण की समीक्षा की गयी है और दिगम्बर परमंहस का लक्षण बताया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जाबालोपनिषद]]  


{निम्न में से किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है?
{निम्न में से किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है?
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-[[राजा राममोहन राय]]
-[[राजा राममोहन राय]]
-[[महात्मा गाँधी]]
-[[महात्मा गाँधी]]
||[[चित्र:Surendranath-Banerjee.jpg|right|120px|सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने [[बंगाल]] के विभाजन का घोर विरोध किया और उसके विरोध में ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया, जिससे वे बंगाल के निर्विवाद रूप से नेता मान लिये गये। वे बंगाल के '''बिना ताज़ के बादशाह''' कहलाने लगे थे। बंगाल का विभाजन 1911 ई. में रद्द कर दिया गया, जो [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] की एक बहुत बड़ी जीत थी। लेकिन इस समय तक देशवासियों में एक नया वर्ग पैदा हो गया था, जिसका विचार था कि [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के वैधानिक आंदोलन विफल सिद्ध हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]
||[[चित्र:Surendranath-Banerjee.jpg|right|120px|सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने [[बंगाल]] के विभाजन का घोर विरोध किया और उसके विरोध में ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया, जिससे वे बंगाल के निर्विवाद रूप से नेता मान लिये गये। वे बंगाल के 'बिना ताज़ के बादशाह' कहलाने लगे थे। बंगाल का विभाजन 1911 ई. में रद्द कर दिया गया, जो [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] की एक बहुत बड़ी जीत थी। लेकिन इस समय तक देशवासियों में एक नया वर्ग पैदा हो गया था, जिसका विचार था कि, [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के वैधानिक आंदोलन विफल सिद्ध हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]


{'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई?
{'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई?
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-सूत्रकाल में
-सूत्रकाल में


{षड्दर्शन का बीजारोपण किस काल में हुआ है?
{[[मलिक काफ़ूर]] को हज़ार दीनारी कहा गया था, क्योंकि-
|type="()"}
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-ऋग्वैदिक काल में
+उसे 1000 दीनार में ख़रीदा गया था।
+उत्तरवैदिक काल में
-वह 1000 सैनिकों का प्रधान था।
-सैन्धव काल में
-उसके पास 100 गाँवों का स्वामित्व प्राप्त था।
-सूत्रकाल में
-वह 1000 दीनार प्रत्येक दिन दान करता था।
||मलिक काफ़ूर मूलतः [[हिन्दू]] जाति का एक हिजड़ा था। उसे नुसरत ख़ाँ ने एक हज़ार दीनार में ख़रीदा था, जिस कारण उसका एक अन्य नाम 'हज़ार दीनीरी' पड़ गया। नुसरत ख़ाँ ने उसे ख़रीदकर 1298 ई. में [[गुजरात]] विजय से वापस जाने पर सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के समक्ष तोहफ़े के रूप में प्रस्तुत किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक काफ़ूर]]


{[[हड़प्पा]] के काल में ताँबे की रथ की खोज हुई थी?
{[[हड़प्पा]] काल में [[ताँबा|ताँबे]] के रथ की खोज हुई थी-
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-कुनाल में
-कुनाल में
-राखी गढ़ी में  
-[[राखीगढ़ी]] में  
+दैमाबाद में  
+[[दैमाबाद]] में
-बनवाली में  
-बनवाली में
||दैमाबाद ([[महाराष्ट्र]]) [[अहमदनगर ज़िला|अहमदनगर ज़िले]] में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] की सहायक प्रवरा नदी के तट पर स्थित है। यह [[सिन्धु सभ्यता]] का अंतिम दक्षिणी स्थल है। दैमाबाद से ताँबे के रथ का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।
||दैमाबाद [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर ज़िला|अहमदनगर ज़िले]] से [[गोदावरी नदी]] की सहायक नदी प्रवरा की घाटी पर स्थित है। यह [[सिन्धु सभ्यता]] का अंतिम दक्षिणी स्थल है। दैमाबाद में [[ताँबा|ताँबे]] की चार वस्तुएँ मिली हैं। रथ चलाते हुए मनुष्य, साँड़, गेंडे और [[हाथी]] की आकृतियाँ, जिनमें प्रत्येक [[ठोस]] [[धातु]] की बनी हैं, उनका वजन कई किलो है। परंतु ये वस्तुएँ उत्खनित स्तरीकृत संदर्भ की हैं, इसमें संदेह है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दैमाबाद]]


{[[हड़प्पा]] वालों को निम्नलिखित में से किसका ज्ञान नहीं था?
{[[हड़प्पा]] वासियों को निम्नलिखित में से किसका ज्ञान नहीं था?
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-कुओं का निर्माण
-कुओं का निर्माण
-खम्भों का निर्माण
-खम्भों का निर्माण
-नलियों का निर्माण
-नालियों का निर्माण
+मेहराब का निर्माण
+मेहराबों का निर्माण


{'राजगृह' में [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने सर्वाधिक निवास किस ऋतु में किया?
{'[[राजगृह]]' में [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने सर्वाधिक निवास किस ऋतु में किया?
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-ग्रीष्म ऋतु
-ग्रीष्म ऋतु
+वर्षा ऋतु
+वर्षा ऋतु
-शीत ऋतु
-शीत ऋतु
-बसन्त ऋतु  
-बसन्त ऋतु


{[[जैन धर्म]] के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे जाना जाता है?
{[[जैन धर्म]] के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे जाना जाता है?
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-[[महावीर|महावीर स्वामी]] को
-[[महावीर|महावीर स्वामी]] को
+[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभदेव]]
+[[ऋषभदेव]]
-[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ]] को
-[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ]] को
-अजितनाथ को
-अजितनाथ को
||[[चित्र:Seated-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-38.jpg|right|100px|आसनस्थ ऋषभनाथ<br /> Seated Rishabhanatha<br /> [[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], [[मथुरा]]]]
||[[चित्र:Seated-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-38.jpg|right|100px|आसनस्थ ऋषभनाथ]]ऋषभदेव के [[पिता]] का नाम 'नाभिराय' होने से इन्हें ‘नाभिसूनु’ भी कहा गया है। इनकी माता का नाम 'मरुदेवी' था। ये आसमुद्रान्त सारे [[भारत]] (वसुधा) के अधिपति थे। इन्हें [[जैन धर्म]] का प्रथम तीर्थंकर माना गया है। [[जैन साहित्य]] में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋषभदेव]]
*इनमें प्रथम तीर्थकर ॠषभदेव हैं। [[जैन|जैन]] साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।
*युगारंभ में इन्होंने प्रजा को आजीविका के लिए कृषि (खेती), मसि (लिखना-पढ़ना, शिक्षण), असि (रक्षा , हेतु तलवार, लाठी आदि चलाना), शिल्प, वाणिज्य (विभिन्न प्रकार का व्यापार करना) और सेवा- इन षट्कर्मों (जीवनवृतियों) के करने की शिक्षा दी थी, इसलिए इन्हें 'प्रजापति', माता के गर्भ से आने पर हिरण्य (सुवर्ण रत्नों) की वर्षा होने से ‘हिरण्यगर्भ’, विमलसूरि-, दाहिने पैर के तलुए में बैल का चिह्न होने से ‘ॠषभ’, धर्म का प्रवर्तन करने से ‘वृषभ’, शरीर की अधिक ऊँचाई होने से ‘बृहद्देव’ एवं पुरुदेव, सबसे पहले होने से ‘आदिनाथ’ और सबसे पहले मोक्षमार्ग का उपदेश करने से ‘आदिब्रह्मा’ कहा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ॠषभनाथ तीर्थकर]]


{[[महावीर|महावीर स्वामी]] 'यती' कब कहलाए?
{[[महावीर|महावीर स्वामी]] 'यती' कब कहलाए?
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-उपर्युक्त में से कोई नहीं
-उपर्युक्त में से कोई नहीं


{'स्यादवान' किस धर्म का मूलाधार था?
{[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] का मूल नाम क्या था?
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-[[बौद्ध धर्म]]
-अबू रैहान
+[[जैन धर्म]]
-इमामुद्दीन रैहान
-[[वैष्णव धर्म]]
+अली गुरशास्प
-[[शैव धर्म]]
-फ़रीद ख़ाँ
||[[चित्र:23rd-Tirthankara-Parsvanatha-Jain-Museum-Mathura-9.jpg|right|100px|[[तीर्थकर पार्श्वनाथ]]<br /> Tirthankara Parsvanatha<br /> [[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], [[मथुरा]] जैन धर्म [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों । 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जैन धर्म]]
||अलाउद्दीन ख़िलजी 1296 से 1316 ई. तक [[दिल्ली]] का सुल्तान था। वह [[ख़िलजी वंश]] के संस्थापक [[जलालुद्दीन ख़िलजी]] का भतीजा और दामाद था। सुल्तान बनने के पहले उसे [[इलाहाबाद]] के निकट कड़ा की जागीर दी गयी। अलाउद्दीन ख़िलजी का बचपन का नाम 'अली गुरशास्प' था। जलालुद्दीन ख़िलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]


{[[महावीर]] के निर्वाण के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ?
{[[महावीर]] के निर्वाण के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ?
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-वज्र स्वामी
-वज्र स्वामी


{आदि जैन ग्रंथों की भाषा क्या थी?
{आदि जैन ग्रंथों की [[भाषा]] क्या थी?
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-[[संस्कृत भाषा]]
-[[संस्कृत भाषा]]
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-[[पालि भाषा]]
-[[पालि भाषा]]
-[[अपभ्रंश भाषा]]
-[[अपभ्रंश भाषा]]
||प्राकृत भाषा भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्त्व कम होने लगा तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं।
||[[प्राकृत भाषा]] भारतीय [[आर्य|आर्यों]] की [[भाषा]] का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्त्व कम होने लगा, तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं- 'अर्धमागधी प्राकृत', 'पैशाची प्राकृत', 'महाराष्ट्री प्राकृत' और 'शौरसेनी प्राकृत'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्राकृत भाषा]]
#अर्धमागधी प्राकृत
#पैशाची प्राकृत
#महाराष्ट्री प्राकृत
#शौरसेनी प्राकृत{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[प्राकृत]]


{[[जैन धर्म]] के पाँचों व्रतों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्रत कौन-सा है?
{[[जैन धर्म]] के पाँचों व्रतों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्रत कौन-सा है?

07:01, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण

इतिहास

1 किस भारतीय ने सर्वप्रथम अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिए सदन में विधेयक प्रस्तुत किया था?

मदन मोहन मालवीय
महात्मा गाँधी
गोपाल कृष्ण गोखले
जवाहर लाल नेहरू

2 किस शासक के काल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर में हुआ था?

अशोक
चन्द्रगुप्त द्वितीय
कनिष्क
अजातशत्रु

3 सर्वप्रथम चारों आश्रमों के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है?

जाबालोपनिषद से
छान्दोग्य उपनिषद से
मुण्डकोपनिषद से
कठोपनिषद से

4 निम्न में से किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है?

बाल गंगाधर तिलक
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
राजा राममोहन राय
महात्मा गाँधी

5 'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई?

ऋग्वैदिक काल में
उत्तरवैदिक काल में
सैन्धव काल में
सूत्रकाल में

6 मलिक काफ़ूर को हज़ार दीनारी कहा गया था, क्योंकि-

उसे 1000 दीनार में ख़रीदा गया था।
वह 1000 सैनिकों का प्रधान था।
उसके पास 100 गाँवों का स्वामित्व प्राप्त था।
वह 1000 दीनार प्रत्येक दिन दान करता था।

7 हड़प्पा काल में ताँबे के रथ की खोज हुई थी-

कुनाल में
राखीगढ़ी में
दैमाबाद में
बनवाली में

8 हड़प्पा वासियों को निम्नलिखित में से किसका ज्ञान नहीं था?

कुओं का निर्माण
खम्भों का निर्माण
नालियों का निर्माण
मेहराबों का निर्माण

9 'राजगृह' में महावीर स्वामी ने सर्वाधिक निवास किस ऋतु में किया?

ग्रीष्म ऋतु
वर्षा ऋतु
शीत ऋतु
बसन्त ऋतु

10 जैन धर्म के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे जाना जाता है?

महावीर स्वामी को
ऋषभदेव
पार्श्वनाथ को
अजितनाथ को

11 महावीर स्वामी 'यती' कब कहलाए?

घर त्यागने के बाद
इन्द्रियों को जीतने के बाद
ज्ञान प्राप्त करने के बाद
उपर्युक्त में से कोई नहीं

12 अलाउद्दीन ख़िलजी का मूल नाम क्या था?

अबू रैहान
इमामुद्दीन रैहान
अली गुरशास्प
फ़रीद ख़ाँ

13 महावीर के निर्वाण के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ?

गोशल
मल्लिनाथ
सुधर्मन
वज्र स्वामी

15 जैन धर्म के पाँचों व्रतों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्रत कौन-सा है?

अमृषा(सत्य)
अहिंसा
अचौर्य (अस्तेय)
अपरिग्रह