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'''नारायण शास्त्री मराठे''' (जन्म- [[8 दिसंबर]], 1877; मृत्यु- [[18 मार्च]], 1956) एक प्रसिद्ध [[मराठी]] विद्वान थे। नारायण शास्त्री ने [[संस्कृत भाषा]] और धर्मशास्त्रों का अध्यपन करने के लिए गृह त्याग दिया।
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==परिचय==
==परिचय==
प्रसिद्ध मराठी विद्वान नारायण शास्त्री मराठे का जन्म 8 दिसंबर, 1877 ई. को [[महाराष्ट्र]] के कोलाबा ज़िले में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर हुई। वे ग्यारह वर्ष के थे तभी उन्होंने संस्कृत भाषा और धर्मशास्त्रों का अध्यपन करने के लिए गृह त्याग दिया। वे कई विद्वानों के पास रहे, पर सर्वाधिक प्रभाव उन पर प्रज्ञानानंद स्वामी का पड़ा। उनके पास रहकर नारायण शास्त्री ने [[वेदांत]] का अध्ययन किया।  
प्रसिद्ध मराठी विद्वान नारायण शास्त्री मराठे का जन्म 8 दिसंबर, 1877 ई. को [[महाराष्ट्र]] के [[कोलाबा ज़िला|कोलाबा ज़िले]] में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर हुई। वे ग्यारह वर्ष के थे तभी उन्होंने संस्कृत भाषा और धर्मशास्त्रों का अध्यपन करने के लिए गृह त्याग दिया। वे कई विद्वानों के पास रहे, पर सर्वाधिक प्रभाव उन पर प्रज्ञानानंद स्वामी का पड़ा। उनके पास रहकर नारायण शास्त्री ने [[वेदांत]] का अध्ययन किया।  
==कार्यकाल==
==कार्यकाल==
====विद्यालय की स्थापना====
नारायण शास्त्री ने अपने गुरु के नाम पर 1906 में 'प्रज्ञा मठ' नामक विद्यालय की स्थापना की। इसमें छात्रों को भारतीय दर्शन की शिक्षा देने की विशेष व्यवस्था थी। बाद में इस संस्था का नाम 'प्रज्ञा पाठशाला' हो गया। [[हिन्दू धर्म]] की विचारधारा का शोध कार्य करने के लिए उनके प्रयत्न से 'धर्म निर्णय मंडल' स्थापित किया गया। इसमें महामहोपाध्याय वी. पी, काणे विद्वानों का भी सहयोग था। 1927 में उन्होंने प्रज्ञा पाठशाला के अंतर्गत 'धर्मकोश कार्यालय' का गठन किया। इस संस्था ने हिन्दुत्व के विविध अंगों से  संबंधित सात खंडों का विशाल ग्रंथ प्रकाशित किया जो अपने क्षेत्र का विश्वकोश स्तरीय प्रकाशन माना जाता है।
नारायण शास्त्री ने अपने गुरु के नाम पर 1906 में 'प्रज्ञा मठ' नामक विद्यालय की स्थापना की। इसमें छात्रों को भारतीय दर्शन की शिक्षा देने की विशेष व्यवस्था थी। बाद में इस संस्था का नाम 'प्रज्ञा पाठशाला' हो गया। [[हिन्दू धर्म]] की विचारधारा का शोध कार्य करने के लिए उनके प्रयत्न से 'धर्म निर्णय मंडल' स्थापित किया गया। इसमें महामहोपाध्याय वी. पी, काणे विद्वानों का भी सहयोग था। 1927 में उन्होंने प्रज्ञा पाठशाला के अंतर्गत 'धर्मकोश कार्यालय' का गठन किया। इस संस्था ने हिन्दुत्व के विविध अंगों से  संबंधित सात खंडों का विशाल ग्रंथ प्रकाशित किया जो अपने क्षेत्र का विश्वकोश स्तरीय प्रकाशन माना जाता है।
इतना काम करने के बाद नारायण शास्त्री मराठे ने 1931 ई. में संन्यास ले लिया। अब वे केवलानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हुए। संन्यास लेने के बाद भी भारतीय शास्त्रों के और हिन्दू दार्शनिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए वे जीवनपर्यंत प्रयत्नशील रहे।  
====सन्यास====
नारायण शास्त्री मराठे ने इतना काम करने के बाद 1931 ई. में संन्यास ले लिया। अब वे केवलानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हुए। संन्यास लेने के बाद भी भारतीय शास्त्रों के और हिन्दू दार्शनिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए वे जीवन पर्यंत प्रयत्नशील रहे।  
==निधन==
==निधन==
प्रसिद्ध मराठी नारायण शास्त्री का निधन 18 मार्च, 1956 को हुआ था।
प्रसिद्ध मराठी नारायण शास्त्री 18 मार्च, 1956 को ब्रह्मलीन हो गए। 


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नारायण शास्त्री मराठे (जन्म- 8 दिसंबर, 1877; मृत्यु- 18 मार्च, 1956) एक प्रसिद्ध मराठी विद्वान थे। नारायण शास्त्री ने संस्कृत भाषा और धर्मशास्त्रों का अध्यपन करने के लिए गृह त्याग दिया।

परिचय

प्रसिद्ध मराठी विद्वान नारायण शास्त्री मराठे का जन्म 8 दिसंबर, 1877 ई. को महाराष्ट्र के कोलाबा ज़िले में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर हुई। वे ग्यारह वर्ष के थे तभी उन्होंने संस्कृत भाषा और धर्मशास्त्रों का अध्यपन करने के लिए गृह त्याग दिया। वे कई विद्वानों के पास रहे, पर सर्वाधिक प्रभाव उन पर प्रज्ञानानंद स्वामी का पड़ा। उनके पास रहकर नारायण शास्त्री ने वेदांत का अध्ययन किया।

कार्यकाल

विद्यालय की स्थापना

नारायण शास्त्री ने अपने गुरु के नाम पर 1906 में 'प्रज्ञा मठ' नामक विद्यालय की स्थापना की। इसमें छात्रों को भारतीय दर्शन की शिक्षा देने की विशेष व्यवस्था थी। बाद में इस संस्था का नाम 'प्रज्ञा पाठशाला' हो गया। हिन्दू धर्म की विचारधारा का शोध कार्य करने के लिए उनके प्रयत्न से 'धर्म निर्णय मंडल' स्थापित किया गया। इसमें महामहोपाध्याय वी. पी, काणे विद्वानों का भी सहयोग था। 1927 में उन्होंने प्रज्ञा पाठशाला के अंतर्गत 'धर्मकोश कार्यालय' का गठन किया। इस संस्था ने हिन्दुत्व के विविध अंगों से संबंधित सात खंडों का विशाल ग्रंथ प्रकाशित किया जो अपने क्षेत्र का विश्वकोश स्तरीय प्रकाशन माना जाता है।

सन्यास

नारायण शास्त्री मराठे ने इतना काम करने के बाद 1931 ई. में संन्यास ले लिया। अब वे केवलानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हुए। संन्यास लेने के बाद भी भारतीय शास्त्रों के और हिन्दू दार्शनिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए वे जीवन पर्यंत प्रयत्नशील रहे।

निधन

प्रसिद्ध मराठी नारायण शास्त्री 18 मार्च, 1956 को ब्रह्मलीन हो गए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 427।


बाहरी कड़ियाँ

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