"वैष्णव जन तो तेने कहिये": अवतरणों में अंतर

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वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड पराई जाणे रे।।
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


पर दृखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे।।
पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।


सकल लोकमां सहुने वंदे, निंदा न करे केनी रे।।
सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।


वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेनी रे।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।


समदृष्टी ने तृष्णा त्यागी, परत्री जेने ताम रे।।
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे।।


मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना मनमां रे।।
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।


रामनाम शुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।


वणलोभी ने कपटरहित छे, काम क्रोध निवार्या रे।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।


भणे नरसैयों तेनु दरसन करतां, कुळ एकोतेर तार्या रे।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
 
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
 
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।
 
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।
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18:40, 27 दिसम्बर 2011 का अवतरण

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वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।

सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।

वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।

जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।

मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।

राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।

वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।

भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

  • गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचा ये भजन गाँधी जी को बहुत प्रिय था।



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