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कर चले हम फ़िदा, जान-ओ-तन साथीयों
संदेशे आते है
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
हमे तद्पाते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है


सांस थमती गई, नब्ज जमती गई,
संदेशे आते है
फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया
हमे तद्पाते है
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
तो चिट्ठी आती है
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
तो पूछ जाती है
मरते मरते रहा बाँकपन साथीयों
के घर कब आओगे..
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है


जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
किसी दिलवाली ने किसी मतवाली ने
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हमे ख़त लिखा है
हुस्न और इश्क दोनो को रुसवा करे
की हमसे पूछा है
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
किसी की सांसो ने किसी की धड़कन ने
बाँध लो अपने सर पर कफ़न साथीयों
किसी की चूड़ी ने किसी के कंगन ने
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
किसी के कजरे ने किसी के गजरे ने
महेकती सुबहो ने मचलती शामो ने
अकेली रातो ने अधूरी बातो ने
तरसती बाहो ने
और पूछा है तरसी निघाहो ने


राह कुर्बानियों की ना वीरान हो
के घर कब आओगे..
तुम सजाते ही रहना नये काफ़िले
लिखो कब आओगे
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
की तुम बिन ये दिल सूना सूना है
जिन्दगी मौत से मिल रही है गले
आज धरती बनी है दुल्हन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...


खेंच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
संदेशे आते है
इस तरफ आने पाये ना रावण कोई
हमे तडपते है
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
तो चिट्ठी आती है
छूने पाये ना सीता का दामन कोई
तो पूछे जाती है
राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथीयों
के घर कब आओगे..
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है
 
मोहब्बत वालो ने हमारे यारो ने
हमे ये लिखा है के हमसे पूछा है
हमारे गांव ने आम की छाओ ने
पुराने पीपल ने बरसते बादल ने
खेत खलियानो ने हरे मैदानो ने
बसंती बेलो ने झूमती बेलो ने
लचकते झूलो ने बेहेकते फूलो ने
चाताक्ति कलियो ने
और पूछा है गांव की गलियो ने
 
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन गांव सूना सूना है
 
संदेशे आते है
हमे तडपते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछे जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है
 
कभी एक ममता की
प्यार की गंगा की
वो चिट्ठी आती है
साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के
खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का
वो टीका काजल का
वो लोरी रातो मे वो नरमी हाथो में
वो चाहत आंखो मे वो चिंता बातो में
बिगड़ना ऊपर से मोहब्बत अन्दर से
करे वो देवी मां
यही हर ख़त मे पूछे मेरी मां
 
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन आंगन सूना सूना है
 
संदेशे आते है
हमे तडपते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछे जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है
 
ए गुजरने वाली हवा बता
मेरा इतना काम करेगी क्या
मेरे गांव जा मेरे दोस्तो मो सलाम दे
मेरी गांव मे है जो वो गली
जहा रहती है मेरी दिलरुबा
उसे मेरे प्यार का जाम दे..
वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरा घर मे है मेरी बूढी मां
मेरे मां के पैरो को छूके
उसे उसके बेटा का नाम दे
आय गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरी मां को मेरा प्रेम दे
उन्हे जाके टी ये पैगाम दे
 
मै वापस आऊंगा..
फिर अपने गांव में
उसीकी छाओ में
की मां के आंचल से
गांव के पीपल से
किसीके काजल से
किया जो वादा था वो निभाऊंगा
मै एक दिन आऊंगा........
</poem>
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* फिल्म : हकीकत
* फिल्म :  
* संगीतकार :  
* संगीतकार :  
* गायक :   
* गायक :   
* रचनाकार : कैफी आज़मी
* रचनाकार :  





21:45, 6 जनवरी 2012 का अवतरण

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संदेशे आते है
हमे तद्पाते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

संदेशे आते है
हमे तद्पाते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

किसी दिलवाली ने किसी मतवाली ने
हमे ख़त लिखा है
की हमसे पूछा है
किसी की सांसो ने किसी की धड़कन ने
किसी की चूड़ी ने किसी के कंगन ने
किसी के कजरे ने किसी के गजरे ने
महेकती सुबहो ने मचलती शामो ने
अकेली रातो ने अधूरी बातो ने
तरसती बाहो ने
और पूछा है तरसी निघाहो ने

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये दिल सूना सूना है

संदेशे आते है
हमे तडपते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछे जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

मोहब्बत वालो ने हमारे यारो ने
हमे ये लिखा है के हमसे पूछा है
हमारे गांव ने आम की छाओ ने
पुराने पीपल ने बरसते बादल ने
खेत खलियानो ने हरे मैदानो ने
बसंती बेलो ने झूमती बेलो ने
लचकते झूलो ने बेहेकते फूलो ने
चाताक्ति कलियो ने
और पूछा है गांव की गलियो ने

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन गांव सूना सूना है

संदेशे आते है
हमे तडपते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछे जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

कभी एक ममता की
प्यार की गंगा की
वो चिट्ठी आती है
साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के
खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का
वो टीका काजल का
वो लोरी रातो मे वो नरमी हाथो में
वो चाहत आंखो मे वो चिंता बातो में
बिगड़ना ऊपर से मोहब्बत अन्दर से
करे वो देवी मां
यही हर ख़त मे पूछे मेरी मां

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन आंगन सूना सूना है

संदेशे आते है
हमे तडपते है
तो चिट्ठी आती है
तो पूछे जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

ए गुजरने वाली हवा बता
मेरा इतना काम करेगी क्या
मेरे गांव जा मेरे दोस्तो मो सलाम दे
मेरी गांव मे है जो वो गली
जहा रहती है मेरी दिलरुबा
उसे मेरे प्यार का जाम दे..
वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरा घर मे है मेरी बूढी मां
मेरे मां के पैरो को छूके
उसे उसके बेटा का नाम दे
आय गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरी मां को मेरा प्रेम दे
उन्हे जाके टी ये पैगाम दे

मै वापस आऊंगा..
फिर अपने गांव में
उसीकी छाओ में
की मां के आंचल से
गांव के पीपल से
किसीके काजल से
किया जो वादा था वो निभाऊंगा
मै एक दिन आऊंगा........

  • फिल्म :
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