"क़ुली क़ुतुबशाह": अवतरणों में अंतर
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'''कुली कुतुबशाह''' एक तुर्क सरदार था, जिसने [[गोलकुंडा]] में [[क़ुतुबशाही वंश]] की स्थापना की थी। वह [[बहमनी वंश]] के सुल्तान [[मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय|मुहम्मदशाह तृतीय]] (1463-1482) का नौकर था, किन्तु अपनी सूझबूझ और स्वामीभक्ति के कारण उसने शीघ्र ही उच्च पद प्राप्त कर लिया था। 90 वर्ष की उम्र में क़ुली क़ुतुबशाह की हत्या उसके पुत्र जमशेद ने कर दी और सिंहासन पर अधिकार कर लिया। | '''कुली कुतुबशाह''' (1518-1543 ई.) एक तुर्क सरदार था, जिसने [[गोलकुंडा]] में [[क़ुतुबशाही वंश]] की स्थापना की थी। वह [[बहमनी वंश]] के सुल्तान [[मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय|मुहम्मदशाह तृतीय]] (1463-1482) का नौकर था, किन्तु अपनी सूझबूझ और स्वामीभक्ति के कारण उसने शीघ्र ही उच्च पद प्राप्त कर लिया था। 90 वर्ष की उम्र में क़ुली क़ुतुबशाह की हत्या उसके पुत्र जमशेद ने कर दी और सिंहासन पर अधिकार कर लिया। | ||
*कुली कुतुबशाह सुल्तान मुहम्मदशाह तृतीय के वज़ीर मुहम्मद गवाँ का विशेष कृपापात्र बन गया था। | *कुली कुतुबशाह सुल्तान मुहम्मदशाह तृतीय के वज़ीर मुहम्मद गवाँ का विशेष कृपापात्र बन गया था। |
09:46, 26 जनवरी 2012 का अवतरण
कुली कुतुबशाह (1518-1543 ई.) एक तुर्क सरदार था, जिसने गोलकुंडा में क़ुतुबशाही वंश की स्थापना की थी। वह बहमनी वंश के सुल्तान मुहम्मदशाह तृतीय (1463-1482) का नौकर था, किन्तु अपनी सूझबूझ और स्वामीभक्ति के कारण उसने शीघ्र ही उच्च पद प्राप्त कर लिया था। 90 वर्ष की उम्र में क़ुली क़ुतुबशाह की हत्या उसके पुत्र जमशेद ने कर दी और सिंहासन पर अधिकार कर लिया।
- कुली कुतुबशाह सुल्तान मुहम्मदशाह तृतीय के वज़ीर मुहम्मद गवाँ का विशेष कृपापात्र बन गया था।
- उसकी कृपादृष्टि होने के कारण वह पदोन्नति करके बहमनी राज्य के पूर्वी भाग अर्थात् गोलकुंडा का हाकिम नियुक्त हो गया।
- 1481 ई. में अपने संरक्षक मुहम्मद गवाँ का वध कर दिये जाने पर कुली कुतुबशाह ने बीदर के दरबार से नाता तोड़ लिया।
- बाद के दिनों में उसने 1518 ई. में अपने को गोलकुंडा का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया।
- एक शासक के रूप में कुली कुतुबशाह ने 1543 ई. तक शासन किया।
- उस समय जब उसकी अवस्था 90 वर्ष की हो चुकी थी, उसके पुत्र जमशेद ने उसकी हत्या कर दी और राजगद्दी पर अधिकार कर लिया।
- कुतुबशाही वंश के शासकों ने गोलकुंडा पर 1687 ई. तक राज किया।
- 1687 ई. में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने [[गोलकुंडा] को जीत लिया और उसे मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 97 |