"बुंदेलखंड ओरछा के बुंदेला": अवतरणों में अंतर

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इन्द्रजीत का भाई वीरसिंह देव (जिसे मुसलमान लेखकों ने नाहरसिंह लिखा है) सदैव मुसलमानों का विरोध किया करता था। उसे कई बार दबाने की चेष्टा की गई पर वह असफल ही रही। वीरसिंहदेव ने [[सलीम]] का [[अबुलफज़ल]] को मारने में पूरा सहयोग किया था, इसलिए वह सलीम के शासक बनते ही [[बुंदेलखंड]] का महत्त्वपूर्ण शासक बना। [[जहाँगीर]] ने इसकी चर्चा अपनी डायरी में की है।
इन्द्रजीत का भाई वीरसिंह देव (जिसे मुसलमान लेखकों ने नाहरसिंह लिखा है) सदैव मुसलमानों का विरोध किया करता था। उसे कई बार दबाने की चेष्टा की गई पर वह असफल ही रही। वीरसिंहदेव ने [[सलीम]] का [[अबुलफज़ल]] को मारने में पूरा सहयोग किया था, इसलिए वह सलीम के शासक बनते ही [[बुंदेलखंड]] का महत्त्वपूर्ण शासक बना। [[जहाँगीर]] ने इसकी चर्चा अपनी डायरी में की है।


ओरछा में जहाँगीर महल तथा अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर वीरसिंह देव (1605 ई. - 1627 ई.) के शासनकाल में ही बने थे। जुझारसिंह बड़े पुत्र थे, उन्हें गद्दी दी गई और शेष 11 भाइयों को जागीरें दी गई थीं। सन 1633 ई. में जुझारसिंह ने गौड़ राजा प्रेमशाह पर आक्रमण करके [[चौरागढ़]] को जीता था परंतु [[शाहजहाँ]] नें प्रत्याक्रमण किया और ओरछा खो बैठे। उन्हें दक्षिण की ओर भागना पड़ा था। वीरसिंह के बाद ओरछा के शासकों में देवीसिंह और पहाड़सिहं का नाम लिया जाता है परंतु ये अधिक समय तक राज न कर सके।
ओरछा में जहाँगीर महल तथा अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर वीरसिंह देव (1605 ई. - 1627 ई.) के शासनकाल में ही बने थे। जुझारसिंह बड़े पुत्र थे, उन्हें गद्दी दी गई और शेष 11 भाइयों को जागीरें दी गई थीं। सन् 1633 ई. में जुझारसिंह ने गौड़ राजा प्रेमशाह पर आक्रमण करके [[चौरागढ़]] को जीता था परंतु [[शाहजहाँ]] नें प्रत्याक्रमण किया और ओरछा खो बैठे। उन्हें दक्षिण की ओर भागना पड़ा था। वीरसिंह के बाद ओरछा के शासकों में देवीसिंह और पहाड़सिहं का नाम लिया जाता है परंतु ये अधिक समय तक राज न कर सके।


वीरसिंह के उपरांत चम्पतराय प्रताप का इतिहास प्रसिद्ध है। जब उन्होंने [[औरंगज़ेब]] की सहायता की थी तब उन्हें ओरछा से जमुना तक का प्रदेश जागीर में दिया गया था। चम्पतराय ने दिल्ली दरबार के उमराव होते हुए भी बुंदेलखंड को स्वाधीन करने का प्रयत्न किया और वे औरंगज़ेब से ही भिड़ गए थे। चम्पतराय ने सन 1664 में आत्महत्या कर ली। ओरछा दरबार का प्रभाव यहाँ से शून्य हो जाता है।
वीरसिंह के उपरांत चम्पतराय प्रताप का इतिहास प्रसिद्ध है। जब उन्होंने [[औरंगज़ेब]] की सहायता की थी तब उन्हें ओरछा से जमुना तक का प्रदेश जागीर में दिया गया था। चम्पतराय ने दिल्ली दरबार के उमराव होते हुए भी बुंदेलखंड को स्वाधीन करने का प्रयत्न किया और वे औरंगज़ेब से ही भिड़ गए थे। चम्पतराय ने सन् 1664 में आत्महत्या कर ली। ओरछा दरबार का प्रभाव यहाँ से शून्य हो जाता है।


== छत्रसाल का नेतृत्व==
== छत्रसाल का नेतृत्व==
इसी के बाद [[छत्रसाल]] के नेतृत्व में पन्ना दरबार उन्नति करता है। ओरछा गज़ेटियर के अनुसार मुग़ल शासकों ने चम्पतराय के परिवार को गद्दी न दी और जुझारसिंह के भाई पहाड़सिंह को शासक नियुक्त किया था। सन 1707 ई. सें औरंगज़ेब के मरने के बाद [[बहादुर शाह ज़फ़र]] गद्दी पर बैठा। छत्रसाल से इसकी खूब बनी। इस समय [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] का भी ज़ोर बढ़ गया था।
इसी के बाद [[छत्रसाल]] के नेतृत्व में पन्ना दरबार उन्नति करता है। ओरछा गज़ेटियर के अनुसार मुग़ल शासकों ने चम्पतराय के परिवार को गद्दी न दी और जुझारसिंह के भाई पहाड़सिंह को शासक नियुक्त किया था। सन् 1707 ई. सें औरंगज़ेब के मरने के बाद [[बहादुर शाह ज़फ़र]] गद्दी पर बैठा। छत्रसाल से इसकी खूब बनी। इस समय [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] का भी ज़ोर बढ़ गया था।


छत्रसाल स्वयं कवि थे। [[छतरपुर]] इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कलाप्रेमी और भक्त के रूप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग [[हिरदेशाह]], दूसरा [[जगतराय]] और तीसरा [[पेशवा]] को मिला। छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन 1731 में हुई थी।
छत्रसाल स्वयं कवि थे। [[छतरपुर]] इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कलाप्रेमी और भक्त के रूप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग [[हिरदेशाह]], दूसरा [[जगतराय]] और तीसरा [[पेशवा]] को मिला। छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन् 1731 में हुई थी।


*प्रथम हिस्से में हिरदेशाह को [[पन्ना]], [[मऊ]], [[गढ़ाकोटा]], [[कालिंजर]], [[शाहगढ़]] और उसके आसपास के इलाके मिले।
*प्रथम हिस्से में हिरदेशाह को [[पन्ना]], [[मऊ]], [[गढ़ाकोटा]], [[कालिंजर]], [[शाहगढ़]] और उसके आसपास के इलाके मिले।

14:01, 6 मार्च 2012 का अवतरण

बुंदेलखंड के इतिहास में ओरछा का बुंदेला भी प्रमुख है। कलिं का क़िला कीर्तिसिंह चन्देल के अधिकार में था। शेरशाह ने इस पर जब आक्रमण किया तो भारतीचन्द ने कीर्तिसिंह की सहायता ली थी। शेरशाह युद्ध में मारा गया और उसके पुत्र सलीमशाह को दिल्ली जाना पड़ा।

भारतीचन्द के उपरांत मधुकरशाह (1554 ई.-1592 ई.) गद्दी पर बैठा था। स्वतंत्र ओरछा राज्य की स्थापना इसके बाद के समय में हुई थी। अकबर के बुलाने पर जब वे दरबार में नहीं पहुँचा तो ओरछा पर चढ़ाई करने लिए सादिख खाँ को भेजा गया था। युद्ध में मधुकरशाह हार गए। मधुकरशाह के आठ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़े पुत्र रामशाह के द्वारा बादशाह से क्षमा याचना करने पर उन्हें ओरछा का शासक बनाया गया था। उनके छोटे भाई इन्द्रजीक राज्य का प्रबन्ध किया करते थे। केशवदास नामक प्रसिद्ध कवि इन्हीं के दरबार में थे।

इन्द्रजीत का भाई वीरसिंह देव (जिसे मुसलमान लेखकों ने नाहरसिंह लिखा है) सदैव मुसलमानों का विरोध किया करता था। उसे कई बार दबाने की चेष्टा की गई पर वह असफल ही रही। वीरसिंहदेव ने सलीम का अबुलफज़ल को मारने में पूरा सहयोग किया था, इसलिए वह सलीम के शासक बनते ही बुंदेलखंड का महत्त्वपूर्ण शासक बना। जहाँगीर ने इसकी चर्चा अपनी डायरी में की है।

ओरछा में जहाँगीर महल तथा अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर वीरसिंह देव (1605 ई. - 1627 ई.) के शासनकाल में ही बने थे। जुझारसिंह बड़े पुत्र थे, उन्हें गद्दी दी गई और शेष 11 भाइयों को जागीरें दी गई थीं। सन् 1633 ई. में जुझारसिंह ने गौड़ राजा प्रेमशाह पर आक्रमण करके चौरागढ़ को जीता था परंतु शाहजहाँ नें प्रत्याक्रमण किया और ओरछा खो बैठे। उन्हें दक्षिण की ओर भागना पड़ा था। वीरसिंह के बाद ओरछा के शासकों में देवीसिंह और पहाड़सिहं का नाम लिया जाता है परंतु ये अधिक समय तक राज न कर सके।

वीरसिंह के उपरांत चम्पतराय प्रताप का इतिहास प्रसिद्ध है। जब उन्होंने औरंगज़ेब की सहायता की थी तब उन्हें ओरछा से जमुना तक का प्रदेश जागीर में दिया गया था। चम्पतराय ने दिल्ली दरबार के उमराव होते हुए भी बुंदेलखंड को स्वाधीन करने का प्रयत्न किया और वे औरंगज़ेब से ही भिड़ गए थे। चम्पतराय ने सन् 1664 में आत्महत्या कर ली। ओरछा दरबार का प्रभाव यहाँ से शून्य हो जाता है।

छत्रसाल का नेतृत्व

इसी के बाद छत्रसाल के नेतृत्व में पन्ना दरबार उन्नति करता है। ओरछा गज़ेटियर के अनुसार मुग़ल शासकों ने चम्पतराय के परिवार को गद्दी न दी और जुझारसिंह के भाई पहाड़सिंह को शासक नियुक्त किया था। सन् 1707 ई. सें औरंगज़ेब के मरने के बाद बहादुर शाह ज़फ़र गद्दी पर बैठा। छत्रसाल से इसकी खूब बनी। इस समय मराठों का भी ज़ोर बढ़ गया था।

छत्रसाल स्वयं कवि थे। छतरपुर इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कलाप्रेमी और भक्त के रूप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग हिरदेशाह, दूसरा जगतराय और तीसरा पेशवा को मिला। छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन् 1731 में हुई थी।


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