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दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। [[चंद्रशेखर आज़ाद]] के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में 'सेंट्रल असेंबली' में बम फेंकने के लिए जब 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' (एचएसआरए) की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगतसिंह ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आज़ाद ने उन्हें इज़ाज़त नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत ज़रूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर ज़िंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगतसिंह ने आज़ाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे। | दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। [[चंद्रशेखर आज़ाद]] के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में 'सेंट्रल असेंबली' में बम फेंकने के लिए जब 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' (एचएसआरए) की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगतसिंह ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आज़ाद ने उन्हें इज़ाज़त नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत ज़रूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर ज़िंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगतसिंह ने आज़ाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे। |
14:06, 6 मार्च 2012 का अवतरण
शहीद सुखदेव
15 मई, 1907 को पंजाब के लायलपुर, जो अब पाकिस्तान का फैसलाबाद है, में जन्मे सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही सन् में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।
दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में 'सेंट्रल असेंबली' में बम फेंकने के लिए जब 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' (एचएसआरए) की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगतसिंह ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आज़ाद ने उन्हें इज़ाज़त नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत ज़रूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर ज़िंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगतसिंह ने आज़ाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे।
अगले दिन जब सुखदेव बैठक में आए तो उनकी आंखें सूजी हुई थीं। वह भगत को ताना मारने की वजह से सारी रात सो नहीं पाए थे। उन्हें अहसास हो गया था कि गिरफ्तारी के बाद भगतसिंह की फांसी निश्चित है। इस पर भगतसिंह ने सुखदेव को सांत्वना दी और कहा कि देश को कुर्बानी की ज़रूरत है। सुखदेव ने अपने द्वारा कही गई बातों के लिए माफी मांगी और भगतसिंह इस पर मुस्करा दिए। भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहा करते थे।
भारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को हम सब की ओर से शत शत नमन !!
वन्दे मातरम !!
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- जन्मदिन पर विशेष :- सुखदेव को अंग्रेज़ों ने दी बिना जुर्म की
- सुखदेव: संक्षिप्त जीवन परिचय
- बेगुनाह होने के बावजूद दी गई सुखदेव को फांसी
- आज़ादी के मतवाले सुखदेव
संबंधित लेख
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